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Eight years of Narendra Modi government: महंगाई का सेहरा मोदी जी को दिया जाए या विपक्ष की नालायकियत को !

Shiv Kumar Mishra
26 May 2022 12:19 PM GMT
Eight years of Narendra Modi government: महंगाई का सेहरा मोदी जी को दिया जाए या विपक्ष की नालायकियत को !
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शिवानंद तिवारी

Eight years of Narendra Modi government: प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र भाई मोदी ने आज आठ बरस पूरा कर लिया. लेकिन आठ वर्षों के शासन के बाद भी आज उनकी सरकार के सामने कोई चुनौती नहीं दिखाई दे रही है. 2014 के अपने चुनाव अभियान में मोदी जी ने बेरोजगार युवकों और कृषकों से जो वादा किया था उनमें से कोई वादा पूरा नहीं हुआ. उल्टे आज देश में गरीबी, बेरोजगारी और महंगाई चरम पर है. मोदी जी के शासनकाल में अमीरों की अमीरी में वृद्धि हुई है. गरीबों और अमीरों के बीच खाई में अभूतपूर्व रूप से चौड़ी हुई है. इतनी बड़ी गैर बराबरी देश में कभी नहीं थी. कोरोना जैसे महा संकट काल में गरीबों पर विपत्ति का पहाड़ टूटा. लाखों गरीब श्रमिकों का महानगरों से पलायन और उनकी दुरुह यात्रा का दृश्य भूले नहीं भुलाया जाता है. कोरोना काल में देश के स्वास्थ्य व्यवस्था की कलई उतर गई. ऑक्सीजन के अभाव में छटपटाते हुए लोगों को देखना डरावना था. नदियों में तैरती लाशें, अभी भी याद आती हैं. कितने लोग काल के गाल में समा गए इसकी संख्या को लेकर आज भी विवाद बना हुआ है.

अचानक लिया गया नोटबंदी का निर्णय और उसके बाद कोरोना की मार ने देश की अर्थव्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर दिया. हमारे देश की अर्थव्यवस्था का आधार बड़े-बड़े कल कारखाने नहीं है. बड़े कल कारखानों में जिन्हें संगठित क्षेत्र कहा जाता है, उनमें तो देश के श्रम बल का मात्र चार पांच फीसद ही लगा हुआ है. बाकी श्रम बल तो कृषि और असंगठित क्षेत्र में लगा हुआ है. कोरोना का काल में छोटे-मोटे कल कारखाने बड़े पैमाने पर बंद हुए. अभी भी गाड़ी बेपटरी है. विशेषज्ञ बता रहे हैं और अपने अगल-बगल हम देख रहे हैं कि बेरोजगारी चरम पर है. मंगाई का वही हाल है. लेकिन आश्चर्य है कि इसी दरमियान अरबपतियों की संख्या में भी वृद्धि हुई. उनकी आमदनी में भारी इजाफा हुआ. इन सबके बावजूद भी प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी जी की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं दिखाई दे रही है.

इसका सेहरा मोदी जी को दिया जाए या विपक्ष की नालायकियत को ! मुझे याद है उन दिनों जब मैं नीतीश कुमार के साथ था. जदयू की ओर से राज्यसभा का सदस्य था. तब 2013 में राजगीर में दो दिनों का कार्यकर्ता शिविर हुआ था. उस समय तक मोदी जी प्रधानमंत्री के दावेदार के रूप में उभरने लगे थे. किस बिरादरी के हैं. वह बिरादरी पिछड़ी है या अति पिछड़ी इस पर भी चर्चा होने लगी थी. उस शिविर में मैंने कहा था कि नरेंद्र मोदी को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए. चाय बेचने से जिस आदमी ने अपनी जिंदगी की शुरुआत की थी वह आज प्रधानमंत्री की कुर्सी का सशक्त दावेदार है. इसलिए इसको हल्के में लेना भारी भूल होगी. वह बहुत मजबूत मिट्टी का बना हुआ है. इसलिए मेरे जैसे व्यक्ति को उससे डर लगता है. क्योंकि आर एस एस की विचारधारा उसके रग रग में बह रही है.

इस विचारधारा का आदमी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठेगा और उसको लागू करने की कोशिश करेगा तो देश की एकता छिन्न-भिन्न हो जाएगी. ऐसा नहीं है कि मोदी जी आर एस एस के पहले व्यक्ति होंगे जो प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठ सकते हैं. इनके पूर्व अटल बिहारी वाजपेयी जी भी आर एस एस के ही स्वयंसेवक थे. लेकिन अटल जी जब लोकसभा में गए थे उस समय देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु हुआ करते थे. उस समय नेहरू जी का जलवा था. नेहरू जी ने अटल जी की पीठ थपथपाई थी. उनमें भविष्य के नेता का गुण देखा था. इसलिए जब अटल जी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे तो उनके सामने पंडित जवाहरलाल नेहरू की छवि थी. ऐसा कोई तजुर्बा नरेंद्र मोदी जी का नहीं है.

शिविर के मेरे उस भाषण को नीतीश जी ने बुरा माना था. पार्टी उनकी थी. 2014 में जब राज्यसभा में मेरा पहला कार्यकाल समाप्त हुआ तो उन्होंने उसको बढ़ाया नहीं बल्कि अपनी पार्टी से ही मुझे निष्कासित कर दिया. याद होगा नरेंद्र मोदी जी जब 2014 के अपने चुनाव अभियान में निकले थे तो उन्होंने देश की जनता को क्या क्या सपने दिखाए थे. उस समय किया गया उनका कोई भी वादा जमीन पर नहीं उतरा. उल्टे देश का ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो रहा है. तरह तरह के तनाव से देश गुजर रहा है. संवैधानिक मूल्यों की धज्जी उड़ाई जा रही है. लोकतंत्र सिकुड़ता जा रहा है. लेकिन इन सबके बावजूद मोदी जी के सामने कोई चुनौती नहीं है. इसका सेहरा मोदी जी को दिया जाए या प्रतिपक्ष के नालायकियत को ?

मुझे तो लगता है इसका सेहरा हम लोग जो, प्रतिपक्ष में हैं, उनको ही दिया जाना चाहिए. हम अपनी राजनीति जिस ढंग से चला रहे हैं उससे मोदी जी के सामने हम चुनौती क्या खड़ा करेंगे बल्कि हमारी राजनीति उनकी मददगार ही साबित हो रही है. सबके बावजूद मैं निराशावादी नहीं हूं. शून्य प्रकृति के नियम के प्रतिकूल है. देश के युवा, किसान और मेहनतकस जनता निश्चित रूप से एक मजबूत विकल्प पेश करेगी.

लेखक पूर्व राज्यसभा सांसद है

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