राजनीति

मोदी के सामने आए अगर खरगे तो बीजेपी का कितना होगा नुकसान?

Shiv Kumar Mishra
25 Dec 2023 8:05 AM GMT
मोदी के सामने आए अगर खरगे तो बीजेपी का कितना होगा नुकसान?
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How much will BJP suffer if Kharge comes face to face with Modi?

19 दिसंबर को हुई इंडिया गठबंधन की बैठक में ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम प्रस्तावित किया है. जिस पर बहस छिड़ी है कि अगर वास्तव में विपक्ष ऐसा करता है तो क्या इंडिया गठबंधन की यह चाल बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकती है. साथ ही आने वाले समय में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का दूसरा संस्करण भी निकलने की तैयारी है.

सूत्रों के मुताबिक राहुल गांधी की पूर्व से पश्चिम में निकलने वाली भारत जोड़ो यात्रा जनवरी महीने में निकल सकती है. भारत जोड़ो यात्रा का ऐसे समय में निकलना जब अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन होगा, क्या सफल रहेगी. ऐसे ही कुछ प्रश्न हैं जिनके बारे में न्यूज तक ने बात की है सी-वोटर के संस्थापक और राजनैतिक विश्लेषक यशवंत देशमुख और तक चैनल्स के मैनेजिंग एडिटर मिलिंद खांडेकर से.

पीएम मोदी के सामने अगर उतरेंगे खड़गे तो बीजेपी को कितना नुकसान?

विपक्षी इंडिया गठबंधन में शामिल नेताओं ने प्रधानमंत्री के पद के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम आगे किया है. एक दलित प्रधानमंत्री उम्मीदवार के तौर पर, क्या यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बड़ी चुनौती हो सकती है? इस पर यशवंत देशमुख कहते हैं कि यह बड़ी चुनौती तो नहीं है. यशवंत कहते हैं कि हां यह चुनौतीपूर्ण हो जरूर सकता है. क्योंकि, एक दलित उम्मीदवार के सामने एग्रेसिव कैंपेन करना आसान नहीं होगा.

इस पर तक चैनल्स के मैनेजिंग एडिटर मिलिंद खांडेकर कहते हैं कि इसके पीछे की राजनीति समझनी होगी. वह कहते हैं कि क्या ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल की इसके पीछे कोई राजनैतिक कैलकुलेशन है कि खड़गे को मोदी के सामने खड़ा करने से मोदी को हराया जा सकता है. इसके बजाय उनकी यह मंशा रही कि राहुल गांधी को मौका ना मिले, या नीतीश कुमार सामने ना आ जाएं.

मिलिंद कहते हैं कि अभी तक इंडिया गठबंधन का कोई संयोजक भी नहीं बना है. क्योंकि, इंडिया गठबंधन में शामिल दलों का मानना है कि संयोजक बनाने से झगड़ा हो सकता है. इसलिए इस पर अभी तक फैसला ही नहीं लिया गया है. मिलिंद कहते हैं कि खड़गे के ऊपर राहुल गांधी का नाम लाने में दिक्कत हो सकती है. वहीं ममता और केजरीवाल के बयानों से मुझे आंतरिक राजनीति ज्यादा नजर आ रही है, बजाय इसके कि हम मोदी को हरा देंगे.

विपक्षी इंडिया गठबंधन में कौन है प्रधानमंत्री की रेस में आगे

एबीपी सी-वोटर ने इंडिया गठबंधन में शामिल नेताओं को प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी में कौन आगे और लोकप्रिय है इसे लेकर एक सर्वे किया है. इस सर्वे में राहुल गांधी 27 फीसदी, खड़गे 14 फीसदी, केजरीवाल 12 फीसदी, नीतीश 10 फीसदी और ममता को 08 फीसदी लोगों ने पसंद किया है. सर्वे में तो इंडिया गठबंधन में राहुल गांधी लोकप्रियता के मामले में खड़गे के ऊपर है. तो खड़गे चुनावों में राहुल से ज्यादा कैसे प्रभावी होंगे?

इस पर यशवंत कहते हैं कि गांधी परिवार के बिना कांग्रेस की धुरी आगे बढ़ नहीं पा रही है. उनकी लायबिलिटी ही उनका एसेट है, और उनका एसेट ही उनकी लायबिलिटी है. राहुल गांधी कांग्रेस की डिफॉल्ट सेटिंग में फिट हैं, उनका नाम कोई आगे करे या न करे उनका नाम उस रेस में रहता है.

वोट शेयर के बावजूद सीटें हासिल करना बड़ी चुनौती

राहुल गांधी ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) की बैठक में कहा है कि हमने अपना 40 फीसदी वोट रिटेन किया है, अगर यही वोट हम 2024 के चुनाव में भी रिटेन कर लेते हैं तो बड़ी बात होगी. क्योंकि विधानसभाओं के मुकाबले लोकसभा में वोट शेयर का गैप बढ़ जाता है. इस पर यशवंत देशमुख कहते हैं कि जिन 100 सीटों पर बीजेपी है ही नहीं, वहां तो बीजेपी है ही नहीं, वहां तो कांग्रेस और अन्य विपक्षों के बीच की लड़ाई है. जैसे केरल जैसे राज्य में कांग्रेस जीते या लेफ्ट फ्रंट जीते, उससे केंद्र की राजनीति पर कुछ फर्क पड़ना नहीं है.

आगे वह कहते हैं कि राजस्थान जैसे राज्य में कांग्रेस का वोट शेयर 40 से घटकर 35 रह जाता है या 40 भी रहता है, तो उसका इलेक्टोरल इंपैक्ट शून्य है. क्योंकि बीजेपी अगर 60 फीसदी का वोट शेयर टच करती है और राजस्थान की 25 की 25 सीटें जीत लेती है. तो उस 40 फीसदी और 35 फीसदी वोट शेयर का आप क्या करेंगे. उसकी उपयोगिता क्या रहेगी, अगर उसे आप सीटों में नहीं बदल पाते हैं.

राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का असर

राहुल गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का आंकड़ा देखें तो वह दिखाता है कि जनवरी 2022 में प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता 53 फीसदी थी, वहीं राहुल गांधी की 7 फीसदी थी. 6 महीने बाद अगस्त 2022 में प्रधानमंत्री मोदी वहीं थे और राहुल गांधी 7 से 9 पर पहुंच गए. जनवरी 2023 में पीएम मोदी फिर 53 पर ही रहे लेकिन राहुल 14 फीसदी पर पहुंच गए. अगस्त 2023 में मोदी 52 पर पहुंचे और राहुल का ग्राफ बढ़कर 16 फीसदी पर पहुंच गया. तो क्या राहुल गांधी की लोकप्रियता का असर सीटों पर भी दिख सकता है?

राहुल गांधी अपनी खोई हुई लोकप्रियता को वापस पा रहे हैं. 2019 के चुनाव के समय तक राहुल गांधी की लोकप्रियता करीब 19-20 फीसदी थी. उसके बाद वह घटते-घटते 7-9 फीसदी पर पहुंच गई. अब भारत जोड़ो यात्रा से वह रिपेयरिंग शुरू हुई. रिपेयरिंग होते-होते वह 16 फीसदी और 18 फीसदी पर पहुंचते दिख रहे हैं. कांग्रेस का जो 20 फीसदी वोट शेयर रहा है उनके खराब से खराब समय में भी, राहुल गांधी की लोकप्रियता और गांधी परिवार की लोकप्रियता भी उसी के बराबर ही है.

अगर राहुल गांधी को इंडिया अलायंस की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया जाता है तो विपक्षी वोटर के लिए यह आसान होगा कि राहुल गांधी उनके भी उम्मीदवार हैं. वह कहते हैं कि राहुल गांधी जी की व्यक्तिगत रेटिंग बढ़ना उनकी खोई हुई जागीर को वापस लाने की कोशिश है. लेकिन इससे यह बात संपादित नहीं होती कि वो नरेंद्र मोदी की टक्कर में या उसके आस-पास भी कहीं पहुंच पाए हैं.

क्या असर छोड़ पाएगी राहुल की पूर्व से पश्चिम की भारत जोड़ो यात्रा

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की खबरें पूर्व से पश्चिम की आई हैं. अरुणाचल और मणिपुर से शुरू की जाए और गुजरात में खत्म की जाए.

इस पर यशवंत कहते हैं कि उन्होंने क्या विचार कर के यह प्लान किया है. लेकिन, अगर आप मैप देखें तो उन्हें पूर्व में ज्यादा प्रतिक्रिया मिलेगी. वह कहते हैं कि नॉर्थ-ईस्ट में विपक्ष की पर्याप्त मात्रा है. वहां उन्हें थोड़ा बहुत सपोर्ट तो मिलेगा. असम कांग्रेस के लिए एक अहम राज्य रहा है. वहां पर वोट शेयर भी ठीक-ठाक है कांग्रेस का. यहां पर भी यात्रा को सपोर्ट मिलेगा. लेकिन उनको जो बड़ा बूस्ट मिलेगा वह ममता बनर्जी की सीमा में जाकर मिलेगा. बिहार में तेजस्वी यादव की सीमा में घुसने के बाद मिलेगा. ये दो बड़े बूस्ट वाले एरिया हैं. वहीं उत्तर प्रदेश में यात्रा आती है और समाजवादी पार्टी पूरा जोर लगाती है, तो वहां पर भी अच्छा सहयोग मिलेगा.

यशवंत कहते हैं कि वह अपनी भारत जोड़ो यात्रा उन जगहों से शुरू कर रहे हैं जहां उन्हें भरपूर समर्थन मिल सकता है. लेकिन, समाप्ति वह उन जगहों पर करेंगे. जहां पर नरेंद्र मोदी की लीडरशिप को दूर दूर तक किसी भी किस्म का कोई चैलैंज नहीं है. चुनाव के करीब आप अपनी यात्रा जहां खत्म करेंगे, वह मोरल बढ़ाने वाला होगा या मोरल घटाने वाला, यह देखना होगा.

वहीं भारत जोड़ो यात्रा को लेकर मिलिंद कहते हैं कि अभी इसकी कोई तारीख तो नहीं आई है. लेकिन, एक तारीख जो चल रही है वह है 14 या 15 जनवरी, वहीं फरवरी के अंत में इसको समाप्त कर दिया जाएगा. इस बार यह पैदल न होने की बजाय हाइब्रिड यात्रा होगी. CWC में एक बात उठाई गई कि जब हमारी यह यात्रा चल रही होगी उस समय राम मंदिर का भी पीक होगा. क्योंकि, 22 जनवरी को राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होगी. इस बीच में शायद यात्रा को प्रमुखता नहीं मिले.

इस पर यशवंत कहते हैं कि यह बिलकुल बाजिब चिंता है. वह कहते हैं कि राम मंदिर के लिए एक मैसिव अंडर करेंट इस मुल्क में है. इसको नकारना शुतुरमुर्ग होना है. यह कहना कि इसे लेकर लोगों में उत्साह नहीं है, यह राजनैतिक नासमझी होगी. इसलिए अगर राहुल के आस पास के लोग इस बात को समझ रहे हैं तो यह उनके लिए बेहतर है.

वहीं यशवंत यह कहकर भी अपना ध्यान अपनी तरफ खींचते हैं कि “भारत जोड़ो यात्रा 2 के दौरान यह सवाल भी रहेगा कि जो नैरेटिव राहुल ने अपनी पहली यात्रा के दौरान गढ़ा था. साथ ही जिस सेक्युलिरज्म को राहुल अपना सेंट्रल पॉइंट ऑफ डिबेट लेकर चल रहे हैं. उस नैरेटिव से राम मंदिर के उद्घाटन के आस-पास कांग्रेस या कांग्रेस के सहयोगियों को लाभ होगा या नहीं होगा. यह एक टेड़ा सवाल है.

यशवंत कहते हैं कि यह बहुत जरूरी होता है कि हम किस समय किस बात को कर रहे हैं. यदि हम सेक्युलिरज्म के तान को ऐसे समय में छेड़ रहे हैं जब अगला राम मंदिर को बनाने नहीं, बल्कि राम मंदिर का उद्घाटन करने जा रहा है. तो यह कांग्रेस के लिए बेसुरा तान साबित हो सकता है. आखिर में यशवंत देशमुख कहते हैं कि “विपक्ष के सारे ही नेता यह समझ चुके हैं कि वह प्रो मुस्लिम के साथ तो सत्ता जीत सकते हैं लेकिन, एंटी हिंदू इमेज के साथ सत्ता नहीं जीत सकते.

साभार न्यूज तक

Shiv Kumar Mishra

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