राजनीति

Lok Sabha Election Special: जयंत चौधरी कांग्रेस से मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं

Shiv Kumar Mishra
30 May 2023 9:36 AM GMT
Lok Sabha Election Special: जयंत चौधरी कांग्रेस से मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं
x

तौसीफ कुरैशी

लखनऊ। सपा कंपनी के लिए उत्तर प्रदेश में इस तरह के हालात हैं कि वह कांग्रेस से गठबंधन करे जब मरी और न करें जब मरी क्योंकि ऐसा प्रतीत हो रहा है कि मुसलमान ने कांग्रेस में जाने का फ़ैसला कर लिया है उत्तर प्रदेश में विपक्षी एकता के मसले पर कांग्रेस से लगातार दूरी बनाने की कोशिश कर रहे सपा कंपनी के सीईओ अखिलेश यादव पर अब अपना फैसला बदलने का दबाव बढ़ने लगा है,राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के मुखिया जयंत चौधरी ही कांग्रेस से तालमेल करने को अखिलेश यादव पर दबाव बनाने में लगे हैं,रालोद का सपा के साथ यूपी में और कांग्रेस के साथ राजस्थान में चुनावी तालमेल है,इसके अलावा कांग्रेस ने हरियाणा में भी रालोद से चुनावी तालमेल करने की पहल की है।

कर्नाटक के चुनावों के बाद बदली सियासत में जयंत चौधरी चाहते हैं कि यूपी में भी अब कांग्रेस के साथ चुनावी तालमेल करते हुए रालोद और सपा लोकसभा का चुनाव लड़े। खासतौर से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इन तीनों दलों का गठबंधन ही मोदी की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से चुनाव लड़े. जयंत चौधरी को इस चुनावी तालमेल से पश्चिम यूपी में लाभ होता दिखता है, इस लिए वह अखिलेश यादव को यह समझाने में लगे हैं कि अगर कांग्रेस को साथ नहीं लिया गया तो मुसलमान सपा को छोड़ सीधे कांग्रेस में चला जाएगा इस मामले में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव भी उनको यही समझा रहे है। जयंत कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं रालोद के प्रदेश अध्यक्ष रामाशीष राय के अनुसार, अगले महीने बिहार में विपक्षी एकता को लेकर होने वाली बैठक में इस मामले पर भी चर्चा होगी। और चर्चा का सकारात्मक परिणाम भी सामने आएगा।

रामाशीष कहते हैं, यूपी में रालोद और सपा का मजबूत तालमेल है,छोटे मोटे लाभ के लिए जयंत और अखिलेश एक दूसरे पर दबाव नहीं बनाते , और दोनों दलों के नेताओं की आपस में दोस्ती भी है,यही वजह है कि तमाम प्रयासों के बाद भी मोदी की भाजपा के बड़े नेता जयंत चौधरी को अपने पाले में ला नहीं सके।सपा कंपनी के सीईओ अखिलेश यादव यह जानते हैं, कि जयंत चौधरी कांग्रेस के साथ सीधे भी चले जाएँगे सपा के बग़ैर कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी रालोद से चुनावी तालमेल करके पश्चिम यूपी में चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं, इसके बाद भी अखिलेश यादव बार-बार यह कह रहे हैं कि कांग्रेस के साथ लोकसभा चुनाव सपा नहीं लड़ेगी. यही नहीं विधान परिषद के चुनावों में भी अखिलेश यादव ने कांग्रेस के नेताओं से सपा प्रत्याशी का समर्थन करने के लिए बात तक नहीं की, इसके अलावा राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से भी अखिलेश यादव ने दूरी बनाए रखी सियासी जानकारों कहना है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा में शामिल नहीं होने के लिए मोदी की भाजपा का भी दबाव था आय से अधिक संपत्ति के मामले में सरकारी तोता सीबीआई के द्वारा क्लीन चिट आदि बहुत सी मजबूरियाँ होती हैं सियासी प्राइवेट कंपनियों की। अखिलेश यादव के इस रुख से साफ है कि वह कांग्रेस का साथ नहीं चाहते हैं,वह चाहते हैं कि चाहें मोदी की भाजपा जीत जाए लेकिन मुसलमानों पर हमारा एका अधिकार रहना ज़रूरी हैं चाहें हम (सपा कंपनी) मुसलमानों के मुद्दों पर ख़ामोश रहे मुसलमान परेशानी में रहें लेकिन खामोशी की चादर ओढ़े हुए उनका वोटबैंक हमारा रहना चाहिए परन्तु अब यह संभव नहीं है।

यूपी में कांग्रेस मज़बूत होने से सपा कंपनी के सियासी शेयर बाज़ार धड़ाम हो जाएगा इसका उन्हें पक्का यक़ीन है और यह सही भी है सपा कंपनी से मुसलमानों का किनारा करना सपा कंपनी की सियासी मौत हैं।इसी लिए सपा कंपनी के सीईओ अखिलेश यूपी में कांग्रेस के साथ दूरी बनाकर चल रहे हैं. और वह ममता बनर्जी की तर्ज पर यह सोच रहे हैं कि जिस राज्य में जो दल मजबूत है, वहां पर उस दल के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाए. इसलिए यूपी में कांग्रेस नेता सपा को समर्थन करे. ताकि यूपी में सपा मुस्लिम राजनीति पर अपनी पकड़ बनाए रखे.जबकि मुसलमान कांग्रेस के साथ जाने का मन बना चुका है निकाय चुनावों में मुसलमानों ने यें संकेत दे दिया है चार मेयर सीटों पर कांग्रेस नंबर दो पर रही हैं कांग्रेस के साथ चुनावी तालमेल करके चुनाव लड़ने पर सपा का मुस्लिम वोटबैंक खिसक सकता है यही डर अखिलेश को हैं लेकिन इस सोच से जयंत चौधरी पूरी तरह सहमत नहीं है. उनका कहना है कि यूपी के पश्चिम यूपी, मध्य यूपी और पूर्वांचल के लोग एक ही तरह से वोट नहीं डालते. पश्चिम यूपी में मुस्लिम और जाट समाज भाजपा से खफा है और वह कांग्रेस को इस वक्त पसंद कर रहा है. ऐसे में कांग्रेस के साथ मिलकर पश्चिम यूपी में चुनाव लड़ना सपा और रालोद दोनों को लाभ पहुंचाएगा. और अगर कांग्रेस को साथ नहीं लिया गया तो मुस्लिम समाज का वोट पूरी तरह से कांग्रेस को चला जाएगा और सपा और रालोद दोनों को ही इसका नुकसान होगा।कांग्रेस का साथ रालोद के लिए रहा था मुफ़ीद रामाशीष राय के अनुसार पश्चिम यूपी की 22 लोकसभा सीटों पर मुस्लिम और जाट समुदाय का वोट अहम रोल निभाता है।इसलिए जयंत चौधरी पश्चिम यूपी में सपा के साथ ही कांग्रेस को भी गठबंधन में लेकर चुनावी मैदान में उतरना चाहते हैं क्योंकि रालोद का राजनीतिक आधार पश्चिमी यूपी में ही है. सपा का कोर वोटबैंक यादव पश्चिमी यूपी में नहीं है, और अगर हो भी तो वह सियासी हिन्दू होने में देर नहीं करता है इसके कई चुनाव प्रमाण है इसी वजह से जयंत कांग्रेस से भी तालमेल करने के लिए अखिलेश को समझा रहे हैं।वह अखिलेश यादव को यह भी बता रहे हैं कि बीते दिनों हुए निकाय चुनाव में मुस्लिम वोटों के बंटवारे का सीधा लाभ भाजपा को हुआ है।

मेरठ, सहारनपुर सहित कई निगमों में सपा की हार हुई।इस हार की वजह से कई मुस्लिम विधायक कांग्रेस के साथ जाकर लोकसभा चुनाव लड़ने की सोच रहे हैं।रामाशीष का कहना है कि सपा-रालोद और कांग्रेस मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ते हैं तो वर्ष 2009 की तरह ही पश्चिमी यूपी से भाजपा का सफाया कर सकते हैं. तब रालोद कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी और पांच सीटें जीती थी. जबकि कांग्रेस ने गाजियाबाद, मुरादाबाद, बरेली सहित तब यूपी की 22 सीटों पर जीत हासिल की थी।तब जाट और मुस्लिम मतदाताओं ने कांग्रेस-रालोद गठबंधन के पक्ष में एकजुट होकर मतदान किया था, जिसके चलते ये गठबंधन बेहतर प्रदर्शन करने में सफल रहा था।इस लोकसभा चुनावों में भी ऐसा ही हो सकता है, इस सोच के तहत जयंत चौधरी अब अपने दोस्त अखिलेश यादव पर कांग्रेस से चुनावी तालमेल करने के लिए दबाव बना रहे हैं.

रामाशीष राय को यह उम्मीद है कि अखिलेश यादव सियासी गणित को समझते हुए कांग्रेस से दूरी बनाना छोड़कर उसके साथ मिलकर चुनाव लड़ने पर सहमत हो जाएंगे।और अगर मोदी की भाजपा के दबाव में सपा कंपनी के सीईओ ने कांग्रेस से दूरी बनाए रखी तो मुसलमान सीधे तौर पर कांग्रेस में चला जाएगा और सपा कंपनी के सीईओ को अपनी सियासी ज़मीन पता चल जाएगी जिस ममता बनर्जी की बात कर रहे हैं उसके सुर भी बदल गए हैं वहाँ भी मुसलमान वोटबैंक की लड़ाई है ममता बनर्जी ने एक रणनीति के तहत मोदी की भाजपा को मुख्य विपक्ष की भूमिका में ला कर खड़ा कर दिया ताकि मुसलमान वोटर इधर-उधर भागने की कोशिश न करें लेकिन मुसलमानों ने औरंगाबाद ज़िले की विधानसभा उप चुनाव में कांग्रेस ने अभी बहुत बड़ी जीत दर्ज की है यह ज़िला मुस्लिम बहुल हैं और भी दलील है जिससे ममता बनर्जी की अक़्ल ठिकाने आ गई हैं बबुआ की भी आ जाएगी।मुसलमानों के वोटबैंक पर सियासत करने वाले सियासी कंपनियों को बहुत कुछ सोचना पड़ेगा तब वह सियासी गलियारों में चल बढ़ सकते हैं अन्यथा नहीं।

Next Story