राजनीति

"सीमांत गांधी" के नाम से मशहूर महान स्वतंत्रता सेनानी ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान

Ansar Imran SR
21 Jan 2024 12:50 PM GMT
सीमांत गांधी के नाम से मशहूर महान स्वतंत्रता सेनानी ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान
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Khan Abdul Ghaffar Khan, the great freedom fighter and popularly known as Frontier Gandhi

ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान महान स्वतंत्रता सेनानी जिनको सीमांत गांधी (सरहदी गांधी) के नाम से साड़ी दुनिया पहचानती है। उनका जन्म मौजूदा समय के पेशावर, पाकिस्तान में 1890 में हुआ था। उनको दुनिया अपने कार्य और निष्ठा के कारण "बच्चा खाँ" तथा "बादशाह खान" के नाम से पुकारती थी।

वे भारतीय उपमहाद्वीप में अंग्रेज शासन के विरुद्ध अहिंसा के प्रयोग के लिए जाने जाते है। एक समय उनका लक्ष्य संयुक्त, आज़ाद और धर्मनिरपेक्ष भारत था। इसके लिये उन्होने 1930 में खुदाई खिदमतगार नाम के संग्ठन की स्थापना की। यह संगठन "सुर्ख पोश" (लाल कुर्ती दल ) के नाम से भी जाने जाता है।

भारत रत्न से सम्मानित

खान अब्दुल गफ्फार खान को 14 अगस्त 1987 में भारत रत्न दिया गया था। वे पहले गैर-भारतीय थे, जिन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा गया था। खान अब्‍दुल गफ्फार खान को उनके पिता ने विरोध के बावजूद उनकी पढ़ाई मिशनरी स्कूल में कराई थी। आगे की पढ़ाई के लिए वे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में गए।

20 साल की उम्र में उन्होंने अपने गृहनगर उत्मान जई में एक स्कूल खोला जो थोड़े ही महीनों में चल निकला मगर अंग्रेजी हुकूमत ने उनके स्कूल को 1915 में प्रतिबंधित कर दिया। अगले 3 साल तक उन्होंने पश्तूनों को जागरूक करने के लिए सैकड़ों गांवों की यात्रा की थी। कहा जाता है कि इसके बाद लोग उन्हें ‘बादशाह खान’ नाम से पुकारने लगे थे।

अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष और खुदाई खिदमतगार

नमक सत्याग्रह के दौरान गफ्फार खान को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके विरोध में खुदाई खिदमतगारों के एक दल ने प्रदर्शन किया। अंग्रेजों ने इन निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाने का आदेश दिया, जिसमें 200 से ज्यादा लोग मारे गए।

बात 1919 की है, पेशावर में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया था। इस पर अब्दुल गफ्फार खान ने शांति का प्रस्ताव पेश कर दिया, जिसके कारण अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और कई झूठे आरोप लगाए। हालांकि गवाह कोई नहीं मिला, फिर भी 6 महीने के लिए उन्हें जेल भेज दिया गया।

जेल से रिहा हुए तो खुदाई खिदमतगार नामक संगठन के जरिये से राजनीतिक आंदोलन का रुख कर लिया। देश की आजादी की लड़ाई के दौरान उनकी मुलाकात 1928 में महात्मा गांधी जी से हुई तो उनके मुरीद हो गए। गांधीजी की अहिंसा की राजनीति उन्हें खूब पसंद थी। विचार मिले तो वह गांधी जी के खास होते गए और कांग्रेस का हिस्सा बन गए।

भारत के बंटवारे के मुखर विरोधी

जब ऑल इंडिया मुस्लिम लीग भारत के बंटवारे पर अड़ी हुई थी, तब खान अब्दुल गफ़्फ़ार ने इसका डट कर विरोध किया था। जून 1947 में उन्होंने पश्तूनों के लिए पाकिस्तान से एक अलग देश की मांग की, लेकिन ये मांग नहीं मानी गई। बंटवारे के बाद वे पाकिस्तान चले गए।

पाकिस्तान सरकार की नज़र में दुश्मन

पाकिस्तान सरकार उन्हें हमेशा अपना दुश्मन समझती थी, इसलिए वहां उन्हें कई साल जेल में रखा गया। उन्होंने आज़ादी के बाद भी जिंदगी के 40 साल जेल और नजरबंदी में गुजारे थे। 1988 में हाउस अरेस्ट के दौरान पाकिस्तान में ही उनका निधन हो गया था। उनकी अंतिम इच्छानुसार उन्हें जलालाबाद अफ़ग़ानिस्तान में दफ़नाया गया था।

देश का बंटवारा होने के बाद उनका संबंध भारत से लगभग टूट सा गया था किंतु वे देश के विभाजन से आखिरी समय तक किसी प्रकार सहमत न हो सके। इसलिए पाकिस्तान से उनकी विचारधारा हमेशा अलग ही रही थी। पाकिस्तान के विरूद्ध उन्होंने स्वतंत्र पख्तूनिस्तान आंदोलन आजीवन जारी रखा था।

"आपने हमें भेड़ियों के सामने फेंक दिया"

देश के बंटवारे के समय महात्मा गांधी ने 'सरहदी गांधी' खान अब्दुल गफ्फार खान को यह आश्वासन दिया था कि "यदि आप के साथ अन्याय हुआ या आपका दमन हुआ तो भारत आपके लिए लड़ेगा।"

मगर हकीकत में ऐसा नहीं हो पाया था। देश के बंटवारे के समय पख्तूनिस्तान के शासक ने भारत के साथ रहने की इच्छा प्रकट की थी मगर उनके आग्रह को भारत सरकार ने ठुकरा दिया था। उसके बाद गफ्फार खान ने गांधी जी से कहा था कि "आपने हमें भेड़ियों के सामने फेंक दिया।"

आज़ादी के बाद भारत दौरा

जब 1969 में खान अब्दुल गफ्फार खान उर्फ बादशाह खान भारत आए थे तो उस समय भी उन्होंने उस बात की याद दिलाई कि किस तरह कांग्रेस नेतृत्व ने हमारे साथ धोखा किया। बादशाह खान ने कहा कि 'यदि कांग्रेस ने हमें थोड़ा भी इशारा किया होता कि वह हमें छोड़ देगी तो हम अंग्रेजों से या जिन्ना से अपने प्रदेश के लिए बहुत फायदेमंद शर्तें खुद ही मनवा लेते।

किंतु कांग्रेस ने हमें भेड़ियों के सामने फेंक दिया है। ब्रिटिश सरकार ने हमें कांग्रेस से अलग करने की बहुत कोशिश की थी मगर हमने कांग्रेस छोड़ने से इनकार कर दिया था। उन्होंने हमसे यहां तक कहा कि यदि हम कांग्रेस से अलग हो जाएंगे तो वे हमें दूसरे राज्यों की तुलना में अधिक अधिकार देंगे लेकिन हम नहीं माने थे। हम दो चेहरे वाले धोखेबाज नहीं थे। हमने उनसे साफ कह दिया कि हम अपने साथियों को दगा नहीं देंगे।'

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