राजनीति

शिवराज की उपेक्षा और अपमान की असली वजह ?

अरुण दीक्षित
28 Sep 2023 5:59 AM GMT
शिवराज की उपेक्षा और अपमान की असली वजह ?
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खुद को सबसे ज्यादा संस्कारवान बताने वाली पार्टी के राज में।उसमें इस तरह की घटनाएं सवाल तो उठाती हैं!

25 सितम्बर को भोपाल यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सार्वजनिक उपेक्षा के बाद यह सवाल सबकी जुबान पर है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ?क्यों प्रधानमंत्री ने लाखों कार्यकर्ताओं के सामने न तो शिवराज सिंह का नाम लिया और न ही उनकी किसी जनहित वाली योजना का जिक्र किया?सब यह मान रहे हैं कि आजाद भारत में इस तरह का व्यवहार विरोधी दलों के नेताओं ने भी सार्वजनिक रूप से एक दूसरे के साथ अभी तक नही किया।फिर नरेंद्र मोदी और शिवराज सिंह तो एक ही दल के हैं।साथ ही समकालीन भी।तकनीकी दृष्टि से देखें तो शिवराज सिंह चौहान चुनावी राजनीति में मोदी से बहुत वरिष्ठ हैं।वे 1990 में विधायक बन गए थे।जबकि मोदी करीब 11 साल बाद 2001 में विधानसभा पहुंचे थे।

दोनों में संबंध भी सौहार्दपूर्ण ही रहे हैं।हालांकि 2014 में लालकृष्ण आडवाणी ने मोदी के साथ शिवराज सिंह का नाम भी प्रधान मंत्री पद के योग्य बीजेपी नेताओं की सूची में गिनाया था।लेकिन मोदी के प्रधानमंत्री बन जाने के बाद शिवराज सिंह ने धीरे धीरे मोदी के सामने आत्मसमर्पण सा कर दिया था।पिछले कुछ सालों से तो वे मोदी को भारत के लिए भगवान की देन ही बता रहे हैं।कभी भी उनका रास्ता काटने की कोशिश तो दूर उधर देखने की कोशिश तक नही की।

तो फिर अचानक ऐसा क्या हुआ जो नरेंद्र मोदी ने पार्टी के लाखों कार्यकर्ताओं के सामने भोपाल में शिवराज का नाम लेना भी जरूरी नहीं समझा?हालांकि वे अमित शाह के जरिए यह बात पहले ही साफ करवा चुके थे कि शिवराज अगले मुख्यमंत्री नहीं होंगे।लेकिन प्रदेश की पहली बड़ी चुनावी सभा में सामान्य शिष्टाचार का भी निर्वहन न किया जाना एक बड़ा सवाल बन गया है। जिसका उत्तर अब प्रदेश का हर बीजेपी कार्यकर्ता जानना चाहता है।

हालांकि मोदी के मन की बात भगवान के अलावा शायद ही कोई जानता हो।लेकिन बीजेपी के "सूत्र" ये मान रहे हैं कि मोदी की नाराजगी की वजह शिवराज के करीब 17 साल के कार्यकाल के दौरान उभरे विवाद या जनता की नाराजगी नही है।दरअसल मोदी शिवराज द्वारा उनके समानांतर रेखा खींचे जाने की कोशिश से नाखुश हैं।पिछले कुछ सालों में शिवराज सिंह ने व्यक्तिगत प्रचार और इमेज बिल्डिंग के लिए मोदी की तर्ज पर अपना निजी प्रचार तंत्र खड़ा किया!उन्होंने निजी एजेंसियों की सेवा ली।चुपचाप मोदी का अनुसरण किया।उन्होंने अपनी कुछ योजनाओं का प्रचार तो पूरी दुनिया में कराया।

मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर बनवाने का श्रेय हासिल किया है।काशी में विश्वनाथ कारीडोर बनवा कर उन्होंने अपना नाम इतिहास में दर्ज कराया है।इस बीच शिवराज ने भी अपने राज्य में मठ मंदिरों के पुनर्निमाण की शुरुआत की।सबसे पहले उन्होंने काशी की तरह उज्जैन में महाकाल के महालोक का निर्माण शुरू कराया।चुनावी लाभ लेने के लिए इसके पहले चरण का उद्घाटन भी नरेंद्र मोदी से ही कराया।इस महालोक की चर्चा दुनिया भर में हुई।हालांकि बाद में घटिया निर्माण की वजह से बदनामी भी पूरी दुनियां में हुई।इससे मोदी नाराज हुए।

शिवराज महाकाल के महालोक तक ही नही रुके।उन्होंने राज्य में कई जगहों पर देवी देवताओं के लोक बनवाने का काम शुरू किया।रामराजा लोक,देवी लोक,परशुराम लोक,रैदास मंदिर आदि प्रमुख धार्मिक परियोजनाएं प्रदेश में चल रही हैं।देश में चलाए जा रहे भगवा अभियान में इन सभी की व्यापक चर्चा भी हो रही है।

इन सब में सबसे ज्यादा अहम है ओंकारेश्वर में नर्मदा के तट पर आदि शंकराचार्य की 108 फिट ऊंची प्रतिमा की स्थापना। करीब ढाई हजार करोड़ रुपए की लागत से ओंकारेश्वर पर्वत पर बने एकात्म परिसर में स्थापित यह प्रतिमा दुनियां में शंकराचार्य की सबसे ऊंची प्रतिमा है।अभी एक सप्ताह पहले 19 सितम्बर को ही शिवराज सिंह ने इस प्रतिमा का भव्य सरकारी समारोह में अनावरण किया था।

हालांकि पहले खुद प्रधानमंत्री शंकराचार्य की प्रतिमा का अनावरण करने वाले थे।लेकिन वे नही आए।कारण क्या रहा वही जाने।

कहा यह जा रहा है कि मोदी नर्मदा के तट पर शंकराचार्य की विशाल प्रतिमा लगाए जाने से खुश नहीं थे।यह अलग बात है कि शिवराज पार्टी के एजेंडे पर ही काम कर रहे थे।लेकिन इस प्रतिमा की तुलना मोदी द्वारा गुजरात में लगवाई गई सरदार पटेल की विशाल प्रतिमा से किया जाना उन्हें अच्छा नही लगा।नर्मदा के तट पर पटेल के प्रतिमा स्थल को उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कराया है।जबकि ओंकारेश्वर में ज्योतिर्लिंग होने की वजह से यहां पूरे साल तीर्थ यात्री आते रहते हैं।ऐसा माना जा रहा है कि शंकराचार्य की प्रतिमा पटेल की प्रतिमा को प्रभावित करेगी।

इसके अलावा शिवराज सिंह की बहुचर्चित लाड़ली बहना योजना से भी मोदी खुश नही हैं।शिवराज अचानक यह योजना लाए।इसे कहे समय पर लागू भी किया।भले ही सरकार का बजट चरमरा गया है लेकिन पूरे देश में इसका प्रचार हुआ।साथ में शिवराज भी चर्चा में आए। उनकी इस योजना की तर्ज पर एक अलग योजना कर्नाटक में लागू करने का ऐलान करके कांग्रेस ने विधानसभा का चुनाव जीत लिया।वह हार मोदी के लिए बड़ा झटका मानी गई।

लाड़ली लक्ष्मी योजना के तहत महिलाओं को 1250 रुपए हर महीने देने के साथ साथ शिवराज ने उन्हें गैस का सिलेंडर भी 450 रुपए में देना शुरू कर दिया है।मोदी ने गैस सिलेंडर के दाम घटा कर 900 रुपए किये वहीं शिवराज ने उसे 450 का कर दिया।इस मामले में भी उनकी चर्चा मोदी से ज्यादा हुई।

उधर राजस्थान में अशोक गहलोत ने ऐसी ही योजनाएं लागू करके बीजेपी और मोदी के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी।हालांकि शिवराज अपनी और बीजेपी की जीत के लिए ये सब कर रहे थे लेकिन मोदी ने इसे प्रतिस्पर्धा मान लिया।

इसी वजह से उन्होंने अगले मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज का नाम पीछे करा दिया था।खुद अमित शाह ने भोपाल में यह कहा था कि मध्यप्रदेश में बीजेपी सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लडेगी और दिल्ली की लड़ाई मोदी के नेतृत्व में ही लड़ी जाएगी।

हालांकि अटकलों के बाद भी शिवराज को मुख्यमंत्री की कुर्सी से उतारा नही गया।और वे नाम घोषित न किए जाने के बाद भी पूरी ताकत से लगे रहे।उन्होंने प्रदेश की जनता से अपने लिए पांचवा कार्यकाल भी मांगा।जीत सुनिश्चित करने के लिए सरकारी खजाने से दोनो हाथों से रेवड़ियां भी बांट रहे हैं।

कहा जा रहा है कि जब शिवराज ने इशारों को नही समझा तब नरेंद्र मोदी ने प्रदेश के लाखों भाजपा कार्यकर्ताओं के सामने उन्हें समझा दिया।दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर आयोजित कार्यकर्ता सम्मेलन में उन्होंने मंच पर मौजूद शिवराज सिंह का पूरे भाषण में नाम तक नही लिया।

अपने करीब एक घंटे के भाषण में महिला आरक्षण विधेयक सहित अपनी सरकार की महिलाओं से जुड़ी सभी योजनाओं पर विस्तार से बात की।लेकिन न तो उन्होंने शिवराज की लाड़ली लक्ष्मी योजना का जिक्र किया और न ही उन्हें 450 रुपए में दिए जा रहे रसोई गैस सिलेंडर की बात की।आदि शंकराचार्य की ऐतिहासिक प्रतिमा पर भी वे कुछ नही बोले।सिर्फ अपनी सरकार और अपनी योजनाओं पर बात करके लौट गए।यही नहीं उन्होंने देर शाम दिल्ली से पार्टी प्रत्याशियों की जो दूसरी सूची जारी की उसने रही सही कसर पूरी कर दी।

देश के लोकतांत्रिक इतिहास में यह पहला मौका है जब किसी प्रधानमंत्री ने मंच पर मौजूद अपने ही दल के वरिष्ठतम मुख्यमंत्री का नाम तक नहीं लिया।अपने राजनीतिक विरोधियों के साथ उनका सलूक पूरी दुनियां ने देखा है और रोज देख रही है।लेकिन अपने ही दल के वरिष्ठतम मुख्यमंत्री के साथ ऐन चुनाव के समय उनके इस व्यवहार ने पार्टी कार्यकर्ताओं को चौंका दिया है। मोदी को लेकर जो बातें वे पिछले साढ़े नौ साल से सुनते आए थे, उनका साक्षात उदाहरण भी उन्होंने देख लिया।वे भी यह मान रहे हैं कि भले ही अब शिवराज का चेहरा उतना चमकदार नही रहा।पर ऐसा व्यवहार तो नही ही किया जाना चाहिए था।लेकिन यह बात आज मोदी से कहे कौन?

उधर तमाम बाधाओं के बाद भी पूरी ताकत से चुनावी मैदान में जुटे शिवराज सिंह ने अब संकेत को समझ लिया है।शायद यही वजह होगी कि इस घटना के अगले दिन ही उन्होंने अपने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद इस तरह का भाषण दिया जिसे उनके विदाई का संकेत माना जा रहा है।

नेता और सरकारें तो आती जाती रहती हैं।दलों और व्यक्तियों में मतभेद भी रहते हैं।मतभेद मनभेद में बदलते दिखाई दें,वह भी एक ही दल के समकालीन नेताओं के बीच,ऐसा शायद पहले कभी नही हुआ होगा।

हां मुगलों और राजे रजवाड़ों का इतिहास ऐसी घटनाओं से भरा पड़ा है।उनमें गद्दी के लिए बेटे द्वारा बाप की और भाई द्वारा भाई की हत्या एक आम बात थी।पर हम तो अब दुनियां के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं।उसमें भी खुद को सबसे ज्यादा संस्कारवान बताने वाली पार्टी के राज में।उसमें इस तरह की घटनाएं सवाल तो उठाती हैं!

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