

लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी
लखनऊ। क्यों बड़ी तेज़ी से बदल रहा है देशभर का सियासी मिज़ाज। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जिस तरह सियासी नाटक को दरकिनार किया गया है उससे बहुत कुछ साफ़ हो गया है जैसे कपड़ों के रंग से पहचाना शमशान क़ब्रिस्तान बजरंग दल (बद) को बजरंग बली से जोड़ना इसी तरह के आधार हीन जुमलों का इस्तेमाल कर चुनाव को मुद्दों से हटा कर जीत लेना और फिर तर्कहीनता की सभी हदें पार करते हुए कहना कि जनता ने मोदी की भाजपा को कुछ भी करने के लिए अपना समर्थन दिया है महंगाई भ्रष्टाचार बेरोज़गारी बिगड़ती अर्थ व्यवस्था बड़े मुद्दे हैं और मोदी की भाजपा इन गंभीर मुद्दों पर बातचीत नहीं करना चाहतीं हैं लेकिन कर्नाटक में मोदी की भाजपा इस तरह के नाटकों को दरकिनार कर मुद्दों पर चुनाव किया हैं यही कारण रहा कि मुद्दों से भागने वाली मोदी की भाजपा कर्नाटक में चुनाव बहुत बुरी तरह हारी बल्कि तीस सीटों पर ज़मानतें भी ज़ब्त हुई जिसको गोदी मीडिया ने हाईलाइट नहीं किया हैं।
ख़ैर बदलें सियासी मिज़ाज को मोदी की भाजपा क्या समझ रहीं हैं और यही वजह है कि वह लोकसभा के आमचुनावों को चार राज्यों के साथ चुनाव कराने की बात सियासी गलियारों में बहुत तेज़ी से फैल रही हैं।मोदी की भाजपा को डर सता रहा है कि कहीं राज्यों के चुनावों में हार न हो जाए उससे बचने के उपायों पर विचार किया जा रहा है इसकी सबसे बड़ी वजह है कि मध्यप्रदेश ,छत्तीसगढ़ , राजस्थान और तेलंगाना में चुनाव होने प्रस्तावित है इन राज्यों से जो शुरूआती सर्वों रिपोर्ट आ रही हैं उसमें मोदी की भाजपा की सियासी सेहत ठीक नहीं दर्शायी जा रही हैं तीन राज्य मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ व राजस्थान में कांग्रेस की हालत बहुत मज़बूत बतायी जा रही हैं और चौथे राज्य तेलंगाना में मोदी की भाजपा मुक़ाबले में ही नहीं हैं वहाँ के चंद्रशेखर राव की पार्टी बीएसआर का मुक़ाबला कांग्रेस से हैं और वहाँ भी कांग्रेस बहुत मज़बूत बतायी जा रही हैं यही सब देख उससे भयभीत मोदी की भाजपा डरी-डरी सहमी-सहमी नज़र आ रही हैं हालाँकि अपनी इस घबराहट को वह दर्शाना नहीं चाहती हैं अंदर ही अंदर वह इसकी तैयारी कर रही हैं।
2019 के आमचुनाव में मोदी की भाजपा को मिले मतों और विपक्ष के मतों पर ग़ौर करने के बाद सियासी समीकरण बदलते दिखाई दे रहे हैं मोदी की भाजपा को 22 करोड़ 90 लाख वोट मिले थे और कांग्रेस को 11 करोड़ 94 लाख वोट मिले थे इन आँकड़ों से लगता है कि मोदी की भाजपा के सामने कांग्रेस कहीं भी नहीं टिकती हैं बहुत अंतर है दोनों के बीच लगभग आधे का फ़र्क़ है लेकिन इसमें राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा के बाद कांग्रेस के वोटबैंक में बहुत तेज़ी से बढ़ोतरी होती दिख रही है फिर भी वह इतनी तो नहीं कही जा सकती हैं कि वह मोदी की भाजपा को मिले मतों के बराबर या उससे अधिक आकर खड़ी हो गई हैं अभी ऐसा तो नहीं लगता है चुनाव आते आते ये हो जाए इससे इंकार नहीं किया जा सकता है।
जब हम इसकी और गहराइयों से समीक्षा करते हैं तो चौंकाने वाले सवाल खड़े दिखते हैं जैसे 23-6-23 को जो दल बिहार की राजधानी पटना में विपक्ष की एकजुटता के नाम पर पहुँचने की अपनी सहमति दे चुकें हैं उनमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यू,अखिलेश यादव की सपा , तेजस्वी यादव के राष्ट्रीय जनता दल ,जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोकदल , शरद पवार की एनसीपी, ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस , हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा, उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना, एम के स्टैलिन डीएमके तमिलनाडु की पार्टी, डी राजा सीपीएम, व सीपीआई से सीताराम येचुरी सहित दलों के आने की तैयारियाँ ज़ोरों से चल रही हैं अब ये सवाल खड़ा हो गया है कि 2019 में इन 11 दलों को कितने वोट मिले थे इन सभी लो को भी 11 करोड़ वोट मिले थे अब अगर इन्हें कांग्रेस को मिले मतों में जोड़ दिया जाए तो वह संख्या मोदी की भाजपा को मिले मतों से अधिक जा कर खड़े हो जाती हैं।
जो दल विपक्ष की पटना बैठक में शामिल नहीं हो रहे हैं उनमें यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की बहुजन समाज पार्टी , आंध्र प्रदेश की तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) ,वाई एस जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस , नवीन पटनायक की बीजू जनता दल सहित दलों को मिले मतों की संख्या 6 करोड़ 30 लाख वोट मिले थे।महाराष्ट्र की वंचित बहुजन अगाड़ी पार्टी , तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की पार्टी बीआरएस तेलंगाना दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पाटी (आप) कर्नाटक के एच डी स्वामी की पार्टी जनता दल (एस) इनको मिले मतों की संख्या एक करोड़ 71 लाख रही थी।तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके , रामविलास पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी आसाम की पार्टी असम गण परिषद और यूपी की पार्टी अपना दल को मिले मतों की संख्या लगभग एक करोड़ पचास लाख रही थी।
इन आँकड़ों से साफ़ झलक रहा है कि मोदी की भाजपा के लिए विपक्ष की एकता ख़तरे की घंटी मानी जा रही हैं सियासी जानकारों का कहना है कि वोटों की इस गोल बंदी में मोदी की भाजपा असहज स्थिति में दिखाई दे रही हैं और अगर कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा (टू ) शुरू हुई तो हालात और बदलेंगे राहुल गांधी की यात्रा से मोदी की भाजपा डर गई हैं पहले इसका यात्रा का बहुत मज़ाक़ बनाया गया लेकिन अब इस यात्रा का नाम लेने भर से बुख़ार हो जाता हैं और वह नहीं चाहती कि राहुल गांधी की यात्रा टू शुरू हो पाए उससे पहले ही राज्यों के साथ आम चुनावों का ऐलान कर दिया जाए और दो राज्य महाराष्ट्र और हरियाणा को भी शामिल कर लिया जाए इससे कांग्रेस सहित सभी विपक्षियों को तैयारियाँ करने का मौक़ा नहीं मिलेगा।
मोदी की भाजपा को मिले मतों में बीस प्रतिशत वोट साम्प्रदायिकता को पसंद करने वाला वोट हैं सत्रह अठारह प्रतिशत वोट गुजरात मॉडल जो था ही नहीं गोदी मीडिया द्वारा बनाया गया था और भ्रष्टाचार के विरोध वाला एवं जुमलों से प्रभावित होकर गया था उस वोट में मोदी की भाजपा की द्वारा फैलाई जा रही नफ़रत और झूठे प्रचार से ऊब चुका है उसमें उदासीनता का माहौल बन रहा तभी तो कर्नाटक में बजरंगबली जैसे किसी भी सियासी नाटक ने काम नहीं किया हैं मोदी की भाजपा को सबसे ज़्यादा नुक़सान उन प्रदेशों में होने का डर है जहां उसने सर्वाधिक प्रदर्शन किया था अब वहाँ नुक़सान होता दिख रहा है और उस नुक़सान की पूर्ति किसी और प्रदेश में होती नज़र नहीं आ रही हैं यही उसकी परेशानी का सबब बन रही हैं।




