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जब भी प्रेस वाले मुख्यमंत्री से यह सवाल करते कि क्या आपकी सचिन पायलट से अनबन चल रही है, अशोक गहलोत का जवाब होता था कि ये सारी बाते निराधार है । लेकिन बाद में उन्ही ने पायलट को नकारा, निकम्मा और ......बताया ।
मैंने 3 अक्टूबर, 2019 में एक पोस्ट डाली थी जिसमे स्पस्ट रूप से कहा था कि अपनी उपेक्षा से आहत पायलट कभी भी बगावत कर सकते है । मेरा कथन सौ फीसदी सच साबित हुआ । पायलट अपने 19 समर्थक विधायको के साथ गहलोत की सरकार को गिराने की साजिश के तहत हरियाणा के मानेसर चले गए थे । भले ही अब पुनः समझौता हो जाए, लेकिंन पायलट और उनके समर्थकों को छोड़ने के मूड में नही है ।
पायलट दर्जनों दफा दिल्ली जा चुके है । परंतु उन्हें आलाकमान की ओर से कोई अहमियत नही मिली है । यही वजह है कि पिछले एक साल से पायलट और उनके समर्थक विधायक अवसादग्रस्त है । न मंत्रीमंडल का विस्तार हुआ और न ही हुई राजनीतिक निययुक्तिया । आलाकमान छतीसगढ़ और पंजाब के मामले में तो तुरंत सक्रिय होगया, लेकिन एक साल से राजस्थान का मामला लटका पड़ा हुआ है ।
अजय माकन, कुमारी शैलजा और कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष भी गहलोत को समझाने का प्रयास कर चुके है । परन्तु किसी को सफलता हाथ नही लगी है । वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए गहलोत मंत्रीमंडल विस्तार करने के पक्ष में नही है । मैंने लिखा था कि अब देव सो रहे है, अतः अभी मंत्रीमंडल विस्तार की संभावना नजर नही आती है । गहलोत भले ही स्वस्थ होगये हो, लेकिन चिकित्सको ने उन्हें पूर्ण विश्राम की सलाह दी है ।
वर्तमान हालत को देखते हुए फिलहाल मंत्रीमंडल विस्तार या पुनर्गठन की संभावना कम है । दीपावली या अगले साल तक यह मामला खिंच सकता है । राजनीतिक निययुक्तिया और मंत्रीमंडल विस्तार के लगातार टलने से पायलट खेमे के विधायकों में भी जबरदस्त असन्तोष है तो गहलोत समर्थक विधायक भी अंदर ही अंदर कसमसा रहे है ।
आलाकमान के इशारे पर पायलट समर्थक विधायको ने फिलहाल अपना मुंह सील रखा है । लेकिन मंत्रीमंडल विस्तार में इसी तरह देरी होती रही तो कभी भी लावा फूट सकता है जिससे रसातल में जा रही कॉंग्रेस बुरी तरह तबाह और बर्बाद हो सकती है । सवाल यह भी है कि नकारा और निकम्मा फिर से कोई नया गुल खिलाने की योजना बना रहा है ?