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MLAs in Rajasthan: राजस्थान में विधायकों के साथ किया गया घिनोना मजाक, मुख्यमंत्री ने थमाया बाबाजी का ठुल्लू
MLAs in Rajasthan: मंत्रिमंडल विस्तार के समय मुख्यमंत्री द्वारा विधायकों को दिया गया आश्वासन पूरी तरह झूंठा और आधारहीन साबित हुआ । मुख्यमंत्री ने करीब डेढ़ दर्जनों को संसदीय सचिव बनाने का आश्वासन दिया था । विधि एवं कानून विभाग का कहना है कि मुख्यमंत्री को संसदीय सचिव नियुक्त करने का कोई कानूनी अधिकार नही है ।
मुख्यमंत्री द्वारा संसदीय सचिवों की नियुक्ति को लेकर प्रतिपक्ष के उप नेता राजेन्द्र राठौड़ ने राज्यपाल को ज्ञापन सौंपते हुए संसदीय सचिवों की नियुक्ति पर रोक लगाने के सम्बंध में हस्तक्षेप करने की मांग की थी । राठौड़ ने नियमों का हवाला देते हुए कहा था कि संसदीय सचिव का पद विशुद्ध रूप से लाभ का पद है । अतः किसी भी विधायक की नियुक्ति लाभ के पद पर नही की जा सकती है ।
राज्यपाल ने राठौड़ के इस ज्ञापन को राज्य सरकार को जवाब देने के लिए भेजा । राज्य के विधि विभाग ने पूर्ण अध्ययन करने के बाद राज्यपाल को भेजे जवाब में स्पस्ट रूप से अंकित किया है कि संसदीय सचिव का पद लाभ के दायरे में आता है, इसलिए किसी भी विधायक को संसदीय सचिव के पद पर नियुक्त करने पर वह व्यक्ति अयोग्य घोषित हो जाता है ।
पिछले साल 22 नवंबर को मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ था । उस वक्त मुख्यमंत्री द्वारा घोषणा की गई थी जो विधायक मंत्री नही बन पाए है, उन्हें संसदीय सचिव बनाया जाएगा । इस चक्कर मे कई निर्दलीय, बसपा और कांग्रेसी विधायकों ने नए सूट तक सिलवा लिए । अनेक विधायको के उत्साही कार्यकर्ताओ ने होर्डिंग और बैनर तक लगा दिए ।
जब कई दिनों तक संसदीय सचिवो की नियुक्ति नही हुई तो पत्रकारों ने इस संबंध में मुख्यमंत्री से सवाल पूछा था । मुख्यमंत्री का जवाब था कि हम सरकार चला रहे है अतः हमें संसदीय सचिवों की नियुक्ति के बारे में भी पूरी कानूनी जानकारी है । मुख्यमंत्री ने दावा किया कि हम सभी विधायकों को एडजस्ट कर लेंगे । यानी कोई भी विधायक नाराज नही रहेगा ।
इसी क्रम में मुख्यमंत्री ने छह विधायकों को बिना कोई सुविधा के अपना सलाहकार तो बना लिया । लेकिन इन बेचारों की कोई पूछ नही है । न अफसर इन्हें गांठते है और न ही खुद मुख्यमंत्री । इन सलाहकारों की दयनीय हालत देखकर इनके साथी विधायक अक्सर खिल्ली उड़ाते रहते है ।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तीसरी बार मुख्यमंत्री बने है । ऐसा हो ही नही सकता कि उनको संसदीय सचिवों की नियुक्ति की कानूनी जानकारी नही हो । जब उन्हें पता था कि किसी भी विधायक को कानूनी रूप से संसदीय सचिव नियुक्त किया ही नही जा सकता तो फिर उन्होंने विधायकों से झूंठ क्यों बोला ? क्या कुर्सी इतनी बड़ी होगई है जिसके लिए एक गांधीवादी व्यक्ति को सार्वजनिक रूप से झूठ बोलना पड़े ? क्या मुख्यमंत्री का वादा विधायको के साथ घिनोना मजाक नही था ?
भारत के संविधान में अनुच्छेद 102(1)(a) और अनुच्छेद 191(1)(a) में लाभ के पद का उल्लेख किया गया है, किंतु लाभ के पद को परिभाषित नहीं किया गया है । अनुच्छेद 102(1)(a) के अंतर्गत संसद सदस्यों के लिये और अनुच्छेद 191(1)(a) के तहत राज्य विधानसभा के सदस्यों के लिये ऐसे किसी अन्य पद पर को धारण करने की मनाही है जहां वेतन, भत्ते या अन्य दूसरी तरह के सरकारी लाभ मिलते हों ।
अगर कोई सांसद/विधायक किसी लाभ के पद पर आसीन पाया जाता है तो संसद या संबंधित विधानसभा में उसकी सदस्यता को अयोग्य करार दिया जा सकता है। केंद्र सरकार की ओर से जारी अधिसूचना के अनुसार, किसी भी विधायक द्वारा सरकार में ऐसे 'लाभ के पद' को हासिल नहीं किया जा सकता है जिसमें सरकारी भत्ते या अन्य शक्तियां मिलती हैं। जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 9 (ए) में भी सांसदों व विधायकों को लाभ का पद धारण करने की मनाही है।
उल्लेखनीय है कि मार्च 2015 में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 20 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया था। इसके खिलाफ एडवोकेट प्रशांत पटेल ने राष्ट्रपति के समक्ष याचिका दाखिल की थी। पटेल ने संसदीय सचिवों की नियुक्ति को अवैध बताते हुए इनकी नियुक्ति निरस्त करने की मांग की थी।
राष्ट्रपति ने यह मामला चुनाव आयोग को भेजा। चुनाव आयोग ने अगस्त 2016 में सभी 20 विधायकों को नोटिस जारी किए। संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति से सिफारिश की कि विधायकों को योग्य करार दिया जाए। इस पर राष्ट्रपति ने 20 विधायकों को अयोग्य करार दिया था।