जयपुर

Rajya Sabha Election 2022: चिलमची फिर हुए टिकट पाने में कामयाब, समर्पित नेताओ में व्याप्त है जबरदस्त रोष

महेश झालानी
30 May 2022 3:11 AM GMT
Rajya Sabha Election 2022: चिलमची फिर हुए टिकट पाने में कामयाब, समर्पित नेताओ में व्याप्त है जबरदस्त रोष
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कांग्रेस राज्यसभा उम्मीदवार की सूची

डूबती हुई कांग्रेस ने एक बार फिर अपनी पुरानी तर्ज पर देश के करोड़ो कार्यकर्ताओ को मूर्ख बनाते हुए उन लोगो को राज्यसभा में भेजने का निर्णय किया है जो वार्ड पार्षद का चुनाव जीतने की हैसियत नही रखते है । सबसे बड़ा धोखा राजस्थान के कार्यकर्ताओं के साथ हुआ है । मैदान में उतरे तीनो उम्मीदवार बाहर के है । निश्चय ही पार्टी आलाकमान और प्रदेश नेतृत्व ने कार्यकर्ताओं की भावनाओं लहूलुहान कर बगावत करने का मार्ग प्रशस्त किया है ।

दरअसल राजस्थान को शीर्ष नेतृत्व ने चारागाह बना रखा है । राजस्थान के हितों पर कुठाराघात करते हुए बाहरी लोग कई साल से मौज मस्ती कर रहे है । पिछली बार भी राजस्थान के साथ घोर नाइंसाफी की गई थी । तीन सीटों में से केवल एक सीट पर राजस्थान के नीरज डांगी ही राज्यसभा पहुँचने में कामयाब हुए । शेष दो मनमोहन सिंह और केसी वेणुगोपाल का राजस्थान से दूर दूर तक कोई ताल्लुक नही है ।

राज्यसभा संसद का उच्च सदन होता है । राजनेताओ ने अपने निजी फायदे के लिए इसे सैरगाह बना रखा है । अर्थात जो वार्ड पंच बनने की हैसियत नही रखते, वे राज्यसभा के जरिये देश के उच्च सदन को धकेलने का कार्य करती है । मनमोहन सिंह की काबिलियत पर किसी को उज्र नही है । लेकिन पिछले दरवाजे से राज्यसभा में जाना निखालिस अनैनिकता है । कभी असम से तो कभी राजस्थान की बैसाखियों का सहारा लेना लोकतांत्रिक मूल्यों के कदापि खिलाफ है ।

केसी वेणुगोपाल की योग्यता केवल इतनी है कि ये गांधी परिवार के पक्के सेवक है । इसी योग्यता के चलते ये राज्यसभा के माननीय सदस्य है । लेकिन राजस्थान के प्रतिनिधि होते हुए भी न तो कभी वेणुगोपाल ने राज्यसभा में राजस्थान के विकास का मुद्दा उठाया और न ही मनमोहन सिंह ने । ऐसे शो पीसो को निर्मम तरीके से थोपना प्रदेश की जनता का सरासर अपमान नही है ?

राजीव शुक्ला को कौन नही जानता । एक नम्बर के जुगाड़ू है । क्रिकेट से लेकर कांग्रेस पार्टी तक को जेब मे रख रखा है । चमचागिरी के ये प्रिंसिपल माने जाते है । इनको छतीसगढ़ से कांग्रेस पार्टी ने टिकट दिया है । दलित, अल्पसंख्यक और कार्यकर्ताओं की बात करने वाली कांग्रेस ने केवल 10 जनपथ पर मत्था टेकने वालो को टिकट दी है । पवन खेड़ा, गुलाम नबी आजाद, कुमारी शैलजा, आनन्द शर्मा टिकट पाने में नाकामयाब रहे ।

राहुल गांधी के खासमखास "आदरणीय मित्रो" उर्फ रणदीप सुरजेवाला की यही योग्यता है कि वे लगातार तीन बार चुनाव हार चुके है । बावजूद इसके इन्हें इनकी चमचागिरी का इनाम दिया गया है । राहुल की मेहरबानी की वजह से ये पिछले कई साल से राष्ट्रीय प्रवक्ता की कुर्सी से चिपके हुए है । एक तरह से जाटों ने प्रवक्ता की कुर्सी जबरन हथिया रखी है । दिल्ली में सुरजेवाला, राजस्थान में गोविंद सिंह डोटासरा और आरसी चौधरी ने प्रवक्ताओं की कुर्सी पर कब्जा कर रखा है ।

आज कांग्रेस की हालत इसलिए खस्ता है क्योंकि जिनको पार्टी की पैरवी करने वाले "नमूने" बहस में हिस्सा लेने भेजा जाता है उन्हें न तो सरकारी योजनाओं की कोई जानकारी होती है और वे होमवर्क करके जाते है । नतीजतन रोज टीवी बहस के दौरान तथाकथित प्रवक्ता निरीह और बेचारे के माफिक दिखाई देते है ।

काबिलियत के हिसाब से पी. चिदम्बरम, गुलाम नबी आजाद, अविनाश पांडे और आनंद शर्मा को राज्यसभा में भेजा जाना चाहिए । लेकिन आलाकमान ने भेज दिए नमूने । अजय माकन का आज दिल्ली में कोई जनाधार नही है । उनको जो भी जिम्मेदारी दी गई, फ्लॉप ही साबित हुए ।

राजस्थान में पिछले दो साल के दौरान पांच सितारा होटलों में मौज मस्ती करने के अलावा अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सुलह कराने में कोई महत्वपूर्ण भूमिका अदा नही की है । बेहतर होता कि इनके स्थान पर अविनाश पांडे को राज्यसभा भेजा जाता । पांडे के समक्ष माकन बहुत ही बौने नजर आते है ।

जब राजस्थान में बाहरी लोगों को थोपना ही था तो फिर अल्पसंख्यक, दलित, समर्पित कार्यकर्ता और आदिवासी नेताओ को क्यों सरेआम बेवकूफ बनाया गया ? पार्टी नेतृत्व को पहले ही स्पस्ट कर देना चाहिए कि कांग्रेस में केवल जूती साफ करने और रोज हाजिरी लगाने वालों को ही टिकट मिलेगा । इस घोषणा पर कम से कम वर्षो से जुड़े कार्यकर्ता कोई मुगालता तो नही पालते ।

अशोक गहलोत और प्रदेशाध्यक्ष गोविंदसिंह डोटासरा को सार्वजनिक रूप से स्पस्ट करना चाहिए कि पार्टी में टिकट समर्पित कार्यकर्ताओ को नही जुगाड़ू और जी हजूरी करने वालो को मिलती है । भविष्य में बेचारा कार्यकर्ता पार्टी के नेताओ से झूठी उम्मीद तो लगाकर नही बैठेगा । अब भी वक्त है । शीर्ष नेतृत्व को नए नामो पर विचार करना चाहिए । इसके अलावा उन बुझे हुए कारतूसों को भी अपनी टिकट वापिस कर चिंतन शिविर की सार्थकता को अवश्य प्रमाणित करें । इन टिकटो का आगामी चुनावों में निश्चय ही प्रतिकूल असर पड़ेगा ।

उधर बीजेपी ने घनश्याम तिवाड़ी जैसे कद्दावर नेता को टिकट देकर यह जाहिर कर दिया है कि प्रतिभाशाली लोगो का मूल्यांकन अवश्य होता है, भले ही देर से सही । जब मैंने दो दिन पहले तिवाड़ी के नाम का उल्लेख किया तो किसी को सहज में विश्वास ही नही हुआ । तिवाड़ी निश्चय ही पूरी ईमानदारी से राजस्थान की महत्वपूर्ण समस्याओ को उठाएंगे । कांग्रेस वालो की तरह गोबर गणेश कभी साबित नही होंगे ।

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