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ईडी के अधिकारी नही चाहते थे राहुल से पूछताछ, ऊपरी आदेश पर करना पड़ा पूछताछ का खेल
अगर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के सूत्रों पर भरोसा किया जाए तो निदेशालय के अनेक आला अफसर इस पक्ष में बिल्कुल नही थे कि राहुल गांधी को दफ्तर बुलाकर उनसे पूछताछ की जाए । राहुल गांधी से पूछताछ के सम्बंध में आयोजित बैठक में अनेक अफसरों ने खुलकर अपने विचार प्रकट किए कि उनको कार्यालय बुलाने की कोई आवश्यकता नही है। लेकिन "ऊपरी" निर्देश के चलते राहुल गांधी को पूछताछ के लिए तलब करना पड़ा।
यद्यपि ईडी द्वारा राहुल गांधी से पांच दिनों तक लम्बी पूछताछ की गई। लेकिन इस पूछताछ में ऐसी कोई नई जानकारी उभरकर सामने नही आई जिससे ईडी वाकिफ न हो। एसोसिएट जनरल लिमिटेड और यंग इंडिया लिमिटेड दोनो कम्पनियां रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के यहां पंजीकृत है। आरओसी के यहां पंजीकृत कम्पनी का सम्पूर्ण विवरण अंकित होता है । ऐसे में राहुल से 40 घंटे की लंबी पूछताछ के बाद एक भी ऐसा नया तथ्य सामने नही आया, जिसकी जानकारी ईडी को नही थी।
मिली जानकारी के अनुसार ईडी के अधिकारियों ने राहुल गांधी को बुलाने से पूर्व नेशनल हेराल्ड से ताल्लुक रखने वाली दोनो कम्पनी एसोसिएट जनरल और यंग इंडिया के सभी आवश्यक दस्तावेज की बारीकी से जांच की। इसके अलावा सुब्रम्हणयम स्वामी द्वारा सर्वोच्च न्यस्यालय में दाखिल वाद और राहुल गांधी, सोनिया गांधी तथा सुमन दुबे की ओर से न्यायालय में प्रस्तुत जवाब का भी विस्तार से अध्ययन किया।
पुख्ता सूत्रों ने बताया कि जांच से जुड़े कुछ बड़े अधिकारी भी इस बात पर सहमत नही थे कि राहुल से इतनी लंबी पूछताछ की जाए। प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक और विधि विभाग से जुड़े अधिकारी भी राहुल और सोनिया से पूछताछ से सहमत नही है । राहुल से की गई पूछताछ का विस्तृत विवरण वित्त मंत्रालय के जरिये वित्त मंत्री को भिजवा दिया गया है।
उधर यह भी ज्ञात हुआ है कि सीबीआई के अधिकारी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के भाई अग्रसेन के यहां छापेमारी के खिलाफ थे । क्योकि ईडी द्वारा पहले से ही उनसे पूछताछ के साथ साथ उनके विभिन्न ठिकानों पर छापेमारी कर चुकी थी । ऐसे में सीबीआई के छापो का कोई औतिच्य नही था । सीबीआई ने 15 जून को अग्रसेन गहलोत सहित 18 व्यक्तियों और फर्मो के खिलाफ एफआईआर 2172022A0005 दफा 120 बी, 420, 468 और 471 दर्ज की थी और 17 जून को पूरे देश मे करीब 3 दर्जन स्थानों पर छापेमारी की गई थी।
छापे का औचित्य इसलिए नही था क्योंकि 15 जून को एफआईआर दर्ज होने के बाद मैंने उसी दिन सोशल मीडिया पर डाल दिया था । ऐसे में अभियुक्त जब पहले से चौकन्ने और सजग हो तो छापेमारी के कोई अर्थ नही रह जाता है । छापेमारी इसलिए की जाती है जब अभियुक्त पूरी तरह से अनभिज्ञ हो और सीबीआई को गोपनीय तथा गड़बड़ी से सम्बंधित दस्तावेज मिलने की संभावना हो । एफआईआर के सार्वजनिक होने के बाद अभियुक्तगण सीबीआई का इंतजार करेंगे कि कब उसके अधिकारी छापेमारी कर दस्तावेज बरामद करें ।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के भाई के यहां पहले ही ईडी द्वारा रेड डाली जा चुकी थी और ईडी के अधिकारियों ने पोटाश के क्रय से लेकर सप्लाई तक सभी आवश्यक दस्तावेज बरामद कर लिए थे । सीबीआई अधिकारियों की ओर से तर्क दिया गया कि जब ईडी के पास सभी आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध है तो छापेमारी का कोई औचित्य नही है । सीबीआई की ओर से कार्मिक मंत्रालय को कहा गया कि छापेमारी से बेहतर होगा कि अभियुक्तों से वे दस्तावेज तलब किये जाए जो ईडी के पास उपलब्ध नही है ।
चूंकि मामला बहुत ही हाईप्रोफाइल था, इसलिए सीबीआई अधिकारी खामोश रहे । अधिकारी जानते थे कि छापेमारी में कुछ हासिल नही होने वाला है फिर भी करीब 5 दर्जन कार्मिको के जरिये पूरे देश मे छापेमारी की गई । इस कार्रवाई में एसी-द्वतीय के अलावा जयपुर और जोधपुर सीबीआई ने भी हिस्सा लिया । खबर मिली है कि छापेमारी में ऐसा कुछ नही मिला, जिससे सीबीआई वाले पहले से अवगत नही थे । पोटाश कांड में बताया जाता है कि कोलकाता निवासी प्रवीण सराफ की उर्वर कांड में महत्वपूर्ण भूमिका रही है ।