
जानें क्यों खास है, यह मंदिर जहां वोटों की गिनती से पहले पहुंची CM वसुंधरा राजे

जयपुर: राजस्थान विधानसभा चुनाव वोटों की गिनती से पहले राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया बांसवाड़ा स्थित त्रिपुर सुंदरी मंदिर पहुंचीं. उन्होंने यहां मंगलवार तड़के पहुंचकर मां की अराधना की. यहां उन्होंने पत्रकारों से बातचीत करने से मना कर दिया. मंदिर जाते वक्त वसुंधरा काफी गंभीर दिख रही थीं. वैसे देवी मां की पीठ का अस्तित्व यहां तीसरी सदी से पूर्व का माना गया है. त्रिपुर सुंदरी मंदिर बांसवाड़ा शहर से 20 किलोमीटर दूर तलवाड़ा की उमराई ग्राम पंचायत में है.
गुजरात, मालवा और मारवाड़ के शासक त्रिपुरा सुंदरी के उपासक थे. गुजरात के सोलंकी राजा सिद्धराज जयसिंह की यह इष्ट देवी रहीं. सीएम वसुंधरा ने इस मंदिर के संरक्षण के लिए बजट आवंटित की थीं. वह यहां अक्सर जाती हैं. मंदिर के जीर्णोद्धार के तहत शिखर उत्थापन 30 अप्रैल 2011 को हुआ, जिसके बाद प्रथम शिलापूजन 23 जून 2011 के साथ प्रारंभ हुआ, जो कि वर्ष 2016 तक जारी रहा. कुल 58 शिलापूजन समारोह विधि-विधान के साथ किए गए. इसमें 1889 शिलाओं का हवनात्मक पूजन कर स्थापना की गई.
कहा जाता है कि मालव नरेश जगदेश परमार ने तो मां के चरणों में अपना शीश ही काटकर अर्पित कर दिया था. उसी समय राजा सिद्धराज की प्रार्थना पर मां ने पुत्रवत जगदेव को पुनर्जीवित कर दिया था.
बांसवाड़ा शहर से 20 किलोमीटर दूर तलवाड़ा की उमराई ग्राम पंचायत में स्थित मां जगतजननी त्रिपुरा सुंदरी मंदिर में इस महोत्सव की तैयारियों को मूर्त रूप देने में पंचाल समाज चौदह चौखलों के 500 से अधिक समाजजन लगे हुए हैं.
मंदिर निर्माण के काल का ऐतिहासिक प्रमाण तो उपलब्ध नहीं है, किंतु विक्रम संवत 1540 का एक शिलालेख इस क्षेत्र में मिला है. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि यह मंदिर सम्राट कनिष्क काल से पूर्व का है. शिलालेख में त्रिउरारी शब्द का उल्लेख है. इसी आधार पर तीन दुर्गों के बीच देवी मां का मंदिर स्थित होने से इसे त्रिपुरा कहा जाने लगा.
आठ भुजाओं वाली हैं मां त्रिपुरा सुंदरी
सिंहवाहिनी मां भगवती त्रिपुरा सुंदरी की मूर्ति अष्ठादश भुजाओं वाली है. पांच फीट ऊंची इस मूर्ति में मां के अष्टादश भुजाओं में विविध आयुध हैं. पार्श्व में नवदुर्गाओं की प्रतिकृतियां अंकित हैं. मां के पावन चरणों में सर्वसिद्धि प्रदान करने वाला सिद्धि युक्त श्रीयंत्र निर्मित है. ऐसा भी कहा जाता है कि देवी मां के सिंह, मयूर कमलासिनी होने तथा तीन रूपों प्रात:काल में कुमारिका, मध्यान्ह में सुंदरी यानी यौवना तथा संध्या में प्रौढ़ रूप में दर्शन देने से इन्हें त्रिपुरा सुंदरी कहा जाता है.