जयपुर

अब हरीश चौधरी आए फ्रंट में सीएम को पूछा चाहते क्या हो, प्रताप सिंह खाचरियावास से भी जताई नाराजगी! प्रताप बोले में किसी से डरता नही!

Shiv Kumar Mishra
11 Nov 2022 10:05 AM GMT
अब हरीश चौधरी आए फ्रंट में सीएम को पूछा चाहते क्या हो, प्रताप सिंह खाचरियावास से भी जताई नाराजगी! प्रताप बोले में किसी से डरता नही!
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रमेश शर्मा

राजस्थान में बढ़ती बयान बाजी पर लगाम लगाने के लिए भले ही एआईसीसी ने फरमान जारी कर दिया हो। मगर राजस्थान में बयान वीरों की बयान बाजी बे लगाम है। सब से बड़ी बात यह है कि बयान बाजी रोकने की हिदायत देने वाले दिग्गज भी नसीहत दे कर खुद मौन हो गए! नतीजतन बयानबाजी पर बजाएं अंकुश लगने के बयानबाजी चरम पर है। पहले महेश जोशी और खाचरियावास, फिर गुड़ा और दिव्या मदेरणा ने फॉर्च्यूनर वाले बयान चर्चा में रहे। गुड़ा ने तो हाई कमान को भी पायलट को सीएम बनाओ, जोशी, धारीवाल और राठौड़ पर कार्यवाही करो की खुले आम मांग कर कहा सरकार रिपीट करनी है तो ऐसा करो।

पर हाईकमान मौन है। और यही कारण है कि जो चाहे सब अपनी बात खुले आम कह रहे हैं। हां पीसीसी अध्यक्ष डोटासरा ने तीन दिन पहले यह जरूर कहा था कि जो कहना है, संबंधित को कहो मीडिया में नहीं। हाल ही पूर्व मंत्री हरीश चौधरी ने ओबीसी आरक्षण में सीएम को भी पूछ लिया क्या चाहते हो। सीएम तो चुप रहे लेकिन गहलोत कैंप के मंत्री और विधायक उलझ गए है। दोनों नेता एक-दूसरे पर जमकर जुबानी तीर चला रहे हैं। पूर्व मंत्री हरीश चौधरी ने इशारों में मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास पर निशाना साधा।

हरीश चौधरी का आरोप है कि एक वर्ग विशेष की विचारधारा के लोगों ने कैबिनेट की बैठक में ओबीसी आरक्षण पर अड़ंगा लगा दिया। जवाब में मंत्री खाचरियावास ने कहा- उन्हें बेवजह बदनाम करने की साजिश रची जा रही है। जाति के नाम पर कोई राजनीति नहीं करता । जिन नेताओं द्वारा ट्रेंड कराया गया है, वे सुन ले किसी से डरता नहीं। कांग्रेस की राजनीति में मुख्यधारा में रहने वाले कुछ नेताओं का मानना यह है कि जो नेता बयान बाजी कर रहे है। वह तो समय आने पर फिर एक हो रखते हैं।

उन्होंने उदाहरण भी दिया कि खुद खाचरियावास ने जोशी के लिए गुलामी जैसे शब्द कह देने के बाद जोशी को अपना भाई बता कर मामले को घूमा दिया था। वैसे ही समय आने पर एक दूसरे के करीब हो सकते है। मगर खड़गे के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद भी गहलोत और पायलट की गुत्थी नही सुलझ पाने से इसे हाई कमान की कमजोरी माना जा रहा है। दूसरा आपसी बयान बाजी भी ऐसा ही संदेश देती है। कुछ का मानना है कि हिमाचल के चुनाव के बाद कुछ होगा। अब देखने वाली बात यह होगी कि चुनाव होने के बाद राजस्थान की गुत्थी केसे सुलझेगी!

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