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गौरवमयी पद्मावती को गंगा में डुबोकर बनाया पवित्र, राजपूतो को मूर्ख बनाने का कुत्सित षड्यंत्र
महेश झालानी
9 Jan 2018 11:13 AM IST

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केंद्र सरकार, सेंसर बोर्ड और फ़िल्म निर्माता संजय लीला भंसाली या तो बहुत ज्यादा समझदार है या फिर वे राजपूतो को मूर्ख समझ रहे है।
केंद्र सरकार, सेंसर बोर्ड और फ़िल्म निर्माता संजय लीला भंसाली या तो बहुत ज्यादा समझदार है या फिर वे राजपूतो को मूर्ख समझ रहे है। आखिर केंद्र सरकार इतिहास के छेड़छाड़ वाली फिल्म पद्मावती को प्रदर्शित करने के लिए इतनी उतावली क्यो है ? क्यो लीला भंसाली से राजस्थान के गृह मंत्री गुपचुप मुलाकात कर रहे है, यह जवाब केंद्र और राजस्थान सरकार को देना ही होगा।
मुद्दे की बात यह है कि फ़िल्म का नाम पद्मावती से बदलकर पद्मावत करने से भंसाली के घृणित कृत्य पाक साफ हो जायेगे ? डिस्क्लेमेयर प्रदर्शित करने से पद्मावती का गौरवमयी चरित्र उभर जाएगा ? डिस्क्लेमेयर प्रदर्शित करना परम्परा नही, अपने कृत्यों पर पर्दा डालने के अलावा कुछ नही है । डिस्क्लेमेयर तो पोर्न फिल्मों में भी दिया जाता है। सेंसर बोर्ड द्वारा नाम बदलकर प्रदर्शन की अनुमति देने पर इसके अध्यक्ष प्रसून जोशी सहित सभी पदाधिकारियों के दिमागी दिवालियेपन का सबूत मिलता है।
बड़ी हास्यस्पद बात है कि फ़िल्म का नाम बदलने मात्र से राजपूत और देश के सभ्य समाज को मूर्ख नही बनाया जा रहा है ? अगर नाम बदलने मात्र से चरित्र बदल जाता है तो फिर दावूद इब्राहिम का नाम नरेंद्र मोदी या तुलसीदास का नाम याकूब रखने से चरित्र में बदलाव आ जायेगा ? बिल्कुल भी नही। नाम तो फ़िल्म का बदल दिया गया है लेकिन फ़िल्म की आत्मा तो वही है। मुजरा, महारानी पद्मावती का गौरव बहाल हो जाएगा ?
विख्यात कवि कुमार विश्वास ने बड़ी तर्क संगत बात कही थी कि यदि मेरे जीवन पर फ़िल्म बनती है तो कोई जरूरी नही है कि मुझसे पूछा जाए । लेकिन कोई व्यक्ति मेरी माँ के बारे में फ़िल्म बनाता है तो निर्माता का यह नैतिक दायित्व है कि वह मुझसे संपर्क करे। पद्मावती जैसे राजस्थानियों के लिए प्रेरणा की स्त्रोत है, उसी प्रकार पूरे देश के लिए वे गौरवशाली है। विवेकानन्द, गांधीजी, सुभाषचन्द्र बोस आदि किसी जाति, मजहब या सूबे तक सीमित नही है। वे समूचे देश के लिए महान थे और रहेंगे। इसी प्रकार पद्मावती को राजस्थान अथवा राजपूतो तक सीमित रखना घोर अन्याय है ।
पद्मावती या पद्मावत का प्रदर्शन केवल राजस्थान तक सीमित रखना कतई न्यायोचित नही है। प्रदर्शन रोकना है तो पूरे देश मे रोकना होगा, अन्यथा हर कोई व्यक्ति भंसाली की तरह इसी प्रकार इतिहास को लहूलुहान करता रहेगा। आज केवल राजपूत उबाल पर है तो कल समूचा राजस्थान और परसो सारा देश का क्रोधित होना लाजिमी है। सवाल यह भी उठता है कि एक विवादास्पद फ़िल्म के प्रदर्शन पर सेंसर बोर्ड और केंद्र सरकार इतनी बेताब क्यो ? क्या इससे पूर्व किसी फिल्म को खारिज नही किया है सेंसर बोर्ड ने ?
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