

अब तो अपने ही चश्मे से देखने की बीमारी का प्रचलन हो गया है I खासकर के भाजपा के स्वयम-भू देश भक्ति के ठेकेदार बने नेताओ में यह बीमारी ज्यादा दिखाई दे रही है I इस कारण राज्य के शिक्षा राज्य मंत्री वासुदेव देवनानी स्कूली शिक्षा में महाराणा प्रताप की जीवनी पढ़ाने को भी अपनी देश भक्ति के कारण बहु प्रचारित रहे है I देवनानी यह भूल जाते है की राणा प्रताप को इस देश में हिन्दू मुस्लिम एकता के लिये जाना जाता है I उनके स्वाभिमान के प्रचंड ताप के सामने आज के नेताओ की कोई ओकात नही रह जाती है I जब मुगलिया सल्तनत के शहंशाह अकबर के सामने सम्पूर्ण देश के राजाओं ने सर झुकाकर उसकी अधीनता स्वीकार कर ली थी I
इस अधीनता के पीछे तत्कालीन राजाओ के राजपाट, यश-वैभव से प्रेम करना बड़ा कारण था, जो उन्हें अकबर बादशाह के मुग़ल खानदान से सम्बन्ध बनाने केलिए आतुर कर रहा था I इस प्रकार के विपरीत समय में मेवाड़ के महाराणा प्रताप ने अकबर बादशाह की अधीनता के सामने युद्ध भूमि में रण करना उचित समझा I राणा प्रताप के साथ रण भूमि में अपने परिवार कुटुंब के लोगो को मृत्यु का आलिंगन करने के लिये प्रेरित करने वाला राणा प्रताप की सेना का वीर सेनापति हकीम खान सुरी पठान जाती का था I
राणा प्रताप के संघर्षो के तपके मुकाबले में आज के भाजपाई देवनानी सरीखे नेता सिर्फ शब्द जाल फैलाकर ही अपने आपको उनका हितेषी प्रचारक मान लेते है I वैसे भी राज्य की भाजपा सरकार के नेताओ में कितने ऐसे नेता मंत्री विधायक राज्य की राजनीती में है जिनमे ईमानदारी सच्चाई देश प्रेम के साथ जनता की सेवा का अकल्पनीय स्त्रोत समाहित है I भले ही भाजपा के लोग देश में लाख दावे करे की उनकी पार्टी में सुचिता, स्वराज, सुराज जनहित के प्रति प्रतिबद्ध नेताओ की कोई कमी नही है I हकीकत में तो यह सब छलावे ही है जिनके बल पर जनता के मत धोखे से लुटे जाते है I देश में भाजपाई दावे करते है की एक मात्र भाजपा पर ही अन्य दलों से भिन्न एक राजनैतिक दल है I देश, धर्म, संस्कृति, नारी सम्मान, मंदिर के साथ पूजा के भाजपाई ही के मात्र रक्षक है I भगवान राम के सच्चे राम भक्त वे ही है, मगर क्या देवनानी साहब यह बताएंगे की कितने नेता उनकी पार्टी में ऐसे है, जो सत्ता के बल पर अवैध रूप से धन संजय करने का लोभ का त्याग चुके है ?
कितने भाजपा सरकार के मंत्री राजा हरीशचन्द्र है जिनकी ईमानदारी संदिग्ध नही है तथा वे पूर्णत्या सत्यवादी है I शायद जब गिनने की बारी आएगी तो एक दो के बाद देवनानी की जुबान खामोश हो जाएगी I हमारे देश में भगवान् राम भी सभी देशवासियों के लिये आदरणीय पूजनीय है I देश के ख्यातिनाम शायर डॉ. इकबाल तभी तो उन्हें समाज में राजा प्रजा के साथ सभी प्रकार के संबंधो के निर्वहन करने में मर्यादा स्थापित करने के कारण राम राष्ट्र नायक मानते है I इकबाल भगवान राम के प्रति अपनी श्रृद्धा को अपनी इस पंक्तियों के अनुसार व्यक्त करते है कि "है राम के वजूद पर हिन्दुस्तान को नाज, मुस्लिम समझता है उन्हें हिन्द का इमाम" I इकबाल की नजर में भगवान राम राष्ट्र नायक है I इसी प्रकार महराणा प्रताप भी राजपुताना के इतिहास के इतिहासक पुरुष है I उनकी विरासत पर भी सभी देशवासियों को गौरवान्वित होने का हक़ हासिल है I यह हक देवनानी सरीखे नेता के उलजुलूल बयानों से किसी भी देश प्रदेश वासी से छिन नही जाएगा I
इतिहास की विडंबना देखिये की अकबर बादशाह और राणा प्रपात की जंग में अकबर का सेनापति राजा मान सिंह था I मुस्लिम शहंशाह अकबर का सेनापति राजा मान सिंह हिन्दू राजा था तो हिन्दू राणा प्रताप का सेना नायक मुस्लिम पठान जाती का हकीम खान सूरी था I राणा प्रताप को जब दिल्ली के शहंशाह अकबर की अधीनता का फरमान मिला तो राणा ने दृढ़ता से अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया I राणा ने अधीनता स्वीकार करने के बदले रण भूमि में रण करना उचित समझा I रण की आहटो की खबर पाकर मेवाड़ के राजपूत वीरो ने अपनी वफादारी जानिसारी का सबूत देने के लिये उदयपुर में राणा की फ़ौज में शामिल होना शुरु कर दिया I राणा प्रताप अपने प्रिय हकीम खा सूरी की वफादारी और वीरता को जानते थे I मेवाड़ की संयुक्त सेना की कमान राणा प्रताप ने अपने प्रिय हकीम खां को सौंप दी I हकीम खान के सेनापति बनाये जाने पर उनके धर्म को लेकर राजपूतों ने ही आपत्ति जता दी I राजपूतों के अनुसार अकबर बादशाह के हकीम खां सह धर्मी थे इसलिए राजपूत वीरों के अपने तर्क भी अपनी जगह जायज थे I
जब यह खबरे पठान वीर योद्धा हकीम खान तक पहुची तो उन्होंने मेवाड़ के भरे दरबार में राणा प्रताप को अपनी वफादारी की दुहाई देकर यह कहा कि राणा जी शरीर में प्राण रहेंगे तब तक इस पठान के हाथ से तलवार नही छूटेगी I इतिहास साक्षी है की मेवाड़ की आन बान शान बचाने के साथ राणा प्रताप के सम्मान को बचाने केलिए हकीम खान के साथ उनके कुटुंब के सभी लोग अपने प्राणों का बलिदान रण भूमि में कर गये I यहाँ गौरतलब होगा की राणा प्रताप का अपना भाई भी अकबर की फ़ौज में शामिल होकर राणा प्रताप की फ़ौज से लड़ रहा था I कुत्ते जैसे जानवर की वफादारी स्वामी भक्ति की भी चर्चा होती है, मगर अफ़सोस आज के बेईमान अवसरवादी लोग हकीम खान के बलिदान की कहानी अपनी जुबान पर नही लाते है I शायद उन्हें वफादार लोगो और वफादारी से ही नफरत है I
आज के नेताओं की मति भृष्ट होने के कारण मारी गई है, तभी तो वे महाराणा प्रताप की चर्चा के साथ हकीम खान जैसे वीर सेनानायक को भूल जाते है I आज भी मेवाड़ के महाराणा अपनी ओर से इस मेवाड़ के वीर सपूत की बहादुरी स्वामी भक्ति का सम्मान करते हुए प्रतिवर्ष हकीम खान की याद में लाख रूपये का सम्मान विशिष्ठ जन को देते है I इतिहास की किताबो में दर्ज है की युद्ध भूमि मे शहीद हुए इस पठान के हाथ से जीवित रहते हुए उसकी तलवार नही छूटी थी I हकीम खान की शहादत के बाद जब उन्हें सुपुर्द-ए-ख़ाक किया जा रहा था तब भी इस पठान से मृत शरीर के हाथ से तलवार नही छूट सकी थी I हर संभव उपाय करने के बाद आखिर में मृत शरीर के हाथो से तलवार नही छुटा पाने के कारण शरीर के साथ तलवार को भी कब्र में दफना दिया गया I
इस बात का दावा हमारा ही नही इतिहास के साथ मेवाड़ महाराणा के द्वारा हकीम खान सूरी पुरूस्कार के अलंकरण की पुस्तिका में आज भी यह लिखा जाता है I हमारे देश में अंग्रेजी शासन की शासन करने की नीतियों में प्रमुख रूप से फूट डालो और राज करो की नीति को अंग्रेजो का हथियार माना जाता है I इतिहास इसीलिए लिखा और पढाया जाता है की वर्तमान पीढ़ियां इतिहास से सबक हासिल करें I राजनेताओ का आज भी समाज में अनुकरण किया जाता है I आज अगर देवनानी सरीखे नेता इतिहास तोड़ मरोड़कर अपने सियासी फायदे के लिये समाज में फूट डालने हेतु बयान देते है तो उनमे और अंग्रेजो में फर्क क्या रह जाता है I अच्छा होता की स्कूली बच्चो के पाठ्यक्रम में यह बात भी बताई होती की कितने ही राजा महाराजो के द्वारा अंग्रेजी शासको की वफादारी में स्वतंत्रता के चाहने वाले देश भक्तो की पीठ पर कोड़े और छाती पर गोलियां बरसाई गई I देश का दुर्भाग्य है की कल तक दिल्ली दरबार की अंग्रेजी हुकूमत के वफादार रहे लोग स्वतंत्र भारत में अपनी सामंती सोच के कारण महारानी साहिबा कहलाने में ही स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते है I