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अवैध उत्खन रोकने की मांग पर शहीद हुए संत विजय दास, आत्मदाह से सकते में गहलौत की सरकार
अवैध उत्खनन के खिलाफ संत ने दी शहादत
आत्मदाह के बाद तड़पते हुए दे दी जान
गहलौत सरकार वनक्षेत्र घोषित करने को हुई राजी
संत की शहादत पर उबल रहा है राजस्थान
राजस्थान में अवैध उत्खनन के खिलाफ संद विजय दास ने बड़ा अलख जगाया है। ऐसा करते हुए अपनी जान भी गंवायी है। राजस्थान की सरकार को झुकाया है। कनकांचन और आदिबद्रि पहाड़ को वनक्षेत्र घोषित करने को राजस्थान सरकार तैयार जरूर हो गयी...लेकिन इस मांग के लिए संत विजय दास को अपनी जान की कुर्बानी देनी पड़ी है।
तीन दिन तक दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में मौत से लड़ाई जारी रही, लेकिन आत्मदाह कर चुके संत विजय दास ८५ फीसदी जल चुके थे। आखिरकार २३ जुलाई को उनकी मौत हो गयी। संत की मौत से राजस्थान सदमें में है।
अवैध उत्खनन रोकने की मांग के पीछे सबसे बड़ी वजह यह है कि कनकांचन और आदिबद्रि पहाड़ का धार्मिक महत्व है। यहां हिन्दू परिक्रमा किया करते हैं। ऐसे में आए दिन अवैध उत्खनन और इसके लिए होने वाले विस्फोट से स्थानीय लोग और श्रद्धालु डरे-सहमे रहा करते थे। पिछले डेढ़ साल से यह लड़ाई चल रही थी। मगर, अवैध उत्खनन करने वाले रैकेट की पहुंच सत्ता तक इतनी मजबूत रही कि उनका कभी बाल भी बांका नहीं हुआ। आखिरकार आत्मदाह का रास्ता संत विजय दास ने उठाया।
जब-जब पर्यावरण पर संकट आता है, संत समाज उठ खड़ा हो जाता है। कभी राजनीतिक दल पसीज जाते हैं, कभी संत खुद को कुर्बान कर देते हैं कि राजनीतिज्ञों का दिल पसीजे। संत विजय दास से पहले भी हरिद्वार में संत जीडी अग्रवाल उर्फ महर्षि सानंद ने ११२ दिन तक अनशन किया था। उनकी मांग गंगा की सफाई थी। वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुरु थे। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद वे लगातार चिट्ठियां लिखते रहे लेकिन प्रधानमंत्री का दिल नहीं पसीजा। आखिरकार अनशन करते हुए वे दम तोड़ गये। अब ये दूसरा मामला राजस्थान से आया है जिसकी तोहमत मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर लग रही है। अगर उन्होंने वक्त रहते संत की बात सुनी होती तो आज अवैध उत्खनन भी नहीं होता और संत विजय दास हमारे बीच होते।