जयपुर

कोविड पीड़ित वरिष्ठ पत्रकार ने बयाँ की अस्पताल की हकीकत, मरीज रात भर रोते है, नर्सिंग स्टाफ वाले सोते है

Shiv Kumar Mishra
2 Dec 2020 7:39 AM GMT
कोविड पीड़ित वरिष्ठ पत्रकार ने बयाँ की अस्पताल की हकीकत, मरीज रात भर रोते है, नर्सिंग स्टाफ वाले सोते है
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महेश झालानी की आपबीती

मित्रों । कोविड की वजह से मुझे आरयूएचएस, सवाई मानसिंह अस्पताल तथा सीके बिड़ला में भर्ती होना पड़ा । इस अवधि में बिड़ला अस्पताल की निर्मम लूटपाट, एसएमएस में नर्सिंग स्टाफ और चिकित्सकों की मनमानी तथा उनकी लापरवाही की वजह से दम तोड़ते हुए मरीजों को इन आँखों ने देखा है । ये अस्पताल जीवन देने वाले है तो लोगों को समय से पहले मौत के घाट भी उतार रहे है ।

अस्पतालों की व्यवस्था को कैसे सुधारा जाए, इस संबंध मे मैंने 27 दिनों बारीकी से लिये तजुर्बे के आधार पर राज्य सरकार से आवश्यक सुधार करने के लिए मुख्यमंत्री और चिकित्सा मंत्री को पत्र लिखा है । चूँकि आपका भी कभी न कभी अवश्य सरकारी व प्राइवेट अस्पतालों से पल्ला पड़ा होगा । आप अपने तजुर्बे के आधार पर महत्वपूर्ण सुझाव देकर अस्पतालों की बिगड़ी व्यवस्था को सुधारने में अवश्य मदद कर सकते है । मुझे आपके सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी । इन सुझावों के आधार पर मुख्यमंत्री और चिकित्सा मंत्री को पत्र लिखा जाएगा ।

आवश्यक सुझाव :

वार्ड में भर्ती सभी मरीजों की दवा, टेस्ट तथा कराई गई जांच आदि का विवरण कम्प्यूटराइज होना चाहिए ताकि दवा देने और जांच का अध्धयन करने में किसी प्रकार की गड़बड़ी नही हो ।

हर वार्ड तथा आईसीयू में सीसीटीवी कैमरे लगे होने चाहिए ताकि नर्सिंग स्टाफ और चिकित्सक की गतिविधियों को देखा जा सके ।

अधिकांशतः मरीज/अटेंडेंट के बुलाने पर न तो नर्सिंग स्टाफ समय पर आता है और न ही चिकित्सक । इनकी जवाबदेही के लिए मरीज के बुलाने का रिकार्ड दर्ज होना चाहिए ।

अन्य अस्पतालों की तरह मरीज की बेड पर घंटी (बेल) होनी चाहिए जो नर्सिंग स्टाफ के कमरे में बजती हो । यह घंटी तब तक बजनी चाहिए जब तक नर्सिंग स्टाफ सम्बंधित मरीज को अटेंड नही कर लेता है ।

मैंने भर्ती होने के दौरान यह देखा है कि मरीज को किसी प्रकार की तकलीफ होने पर वह नर्सिंग स्टाफ को कहता है । नर्सिंग स्टाफ समस्या का निवारण करने के बजाय ड्यूटी पर उपस्थित चिकित्सक से सलाह लेने की राय देता है । देखा गया है चिकित्सक ड्यूटी पर उपस्थित नही रहते । परिणामतः मरीज को तकलीफ से रूबरू होना पड़ता है । अगर ड्यूटी पर चिकित्सक उपस्थित भी है तो वह इलाज करने वाले सम्बंधित चिकित्सक से परामर्श लेने को कहता है । यानी मरीज की समस्या दूर करने के बजाय जिम्मेदारी एक दूसरे पर टालते है ।

मैं न्यू आईसीयू की बेड नम्बर 7 पर 5 नवम्बर से 17 नवम्बर, 20 तक भर्ती रहा । इस अवधि में एक बार भी बेडशीट चेंज नही हुई । जबकि यह प्राचार्य डॉ सुधीर भंडारी का वार्ड है । जब प्राचार्य के आईसीयू का यह हाल है तो अन्य वार्डो की स्थिति का हाल का अंदाज सहज लगाया जा सकता है ।

अधिकांश स्टेचर टूटी और जीर्ण-शीर्ण हालत में है । उनको फोम की गद्दी वाली में हाइड्रोलिक सिस्टम वाली स्टेचर में बदला जाए । हर स्टेचर में ओक्सिजन सिलेंडर रखने की भी व्यवस्था होनी आवश्यक है ।

स्टेचर के पहिये या तो घिस जाते है या क्षतिग्रस्त हो जाते है । अतः इनकी नियमित मरम्मत होनी चाहिए । इनके पहिये रबर के बजाय नायलॉन के होने चाहिए । आईसीयू से जब किसी रोगी को इको टेस्ट के ले जाया है तब रास्ता काफी उबड़-खाबड़ पड़ता है । इससे बहुत ही शोरगुल होता है ।

वार्ड अथवा आईसीयू में तैनात वार्ड बॉय बगैर पैसे लिए मरीज को सिटी स्केन, एमआरआई तथा इको आदि के लिए नही ले जाते है । राज्य के इन कर्मचारियों को बहुत मोटा पैसा देंना पड़ता है । मैं न्यू आईसीयू में भर्ती था । मुझे जांच पर जाने के लिए दो बार वार्ड बॉय को पैसे देने पड़े । ऐसे में मुफ्त इलाज की बात करना बेमानी है ।

अस्पताल में अधिकांश चारपाई टूटी और ऊंची-नीची साइज की है । सभी चारपाई हाइड्रोलिक सिस्टम वाली होनी चाहिए ताकि उसे आवश्यकतानुसार ऊंचा-नीचा किया जा सके ।

उन लोगो को बेहद परेशानी से रूबरू होना पड़ता है जिनके पास अटेंडेंट होते नही या एक ही होता है । हकीकत यह है कि गाम्भीर रोगी के लिए न्यूनतम दो अटेंडेंट की आवश्यकता होती है ।

करीब 25 फीसदी दवा और अन्य मेडिकल उपकरण आदि बाजार से खरीदने के लिए विवश होना पड़ता है । इसके लिए आईसीयू में ही दवा वितरण काउंटर होना चाहिए ताकि मरीज के परिजन को बार बार भागना नही पड़े ।

ब्लड आदि के सैम्पल के लिए भी विभिन्न स्थानों पर जाने से अटेंडेंट काफी समय व्यतीत होता है । अतः सेम्पल गंतव्य तक पहुंचाने के लिए पर्याप्त कर्मचारियों का बंदोबस्त होना चाहिए ।

ओक्सिजन मॉनिटर में हर घण्टे बाद प्रिंट की व्यवस्था होनी चाहिए । कई मरीज को मरने के बाद भी ओक्सिजन देने और इलाज का स्वांग रचा जाता है । इस व्यवस्था से सारी असलियत सामने आ जायेगी । मैंने स्वयं कई लोगो को उपरोक्त वार्ड में इलाज और मेडिकल स्टाफ की लापरवाही व उदासीनता के चलते कई लोगों को दम तोड़ते हुए देखा है ।

यूरीन और स्टूल पॉट मरीजों को लाना पड़ता है । इनकी आपूर्ति भी अस्पताल से होनी चाहिए ।

रात्रि को लाइफलाइन की दुकानें बंद हो जाती है जो प्रातः 9 बजे पुनः खुलती है । ऐसे में रात को दवा नही मिल पाती है जिससे रोगी को काफी परेशानियो का सामना करना पड़ता है ।

प्रतिदिन आईसीयू मरीजों से बेड चार्ज वसूल किया जाता है जिसके लिए मरीज के अटेंडेंट को रोज अनावश्यक धक्के खाने पड़ते है । रसीद काटने की व्यवस्था वहीं होनी चाहिए ।

राज्य सरकार का उद्देश्य प्रत्येक मरीज को निशुल्क दवा उपलब्ध कराने का है । करीब 25 फीसदी दवाई मरीज को बाजार से खरीदने के लिए बाध्य होना पड़ता है । इस समस्या का निवारण के लिए लाइफलाइन पर दवा उपलब्ध नही होने की स्थिति में निजी कुछ दुकानों को अधिकृत किया जाए । मरीज के अटेंडेंट को सम्बंधित दवा का कूपन दे ताकि वह दवा बाजार से निःशुल्क उपलब्ध हो सके ।

देखा गया कि रात को नर्सिंग स्टाफ तो मजे में सोता है और मरीज तड़पता रहता है । इसके लिए ड्यूटी पर उपस्थित हर घंटे नर्सिंग स्टाफ की बायोमीटिक अटेंडेंस अनिवार्य करने की आवश्यकता है ।

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