जयपुर

पायलट को फिर आलाकमान ने बैरंग भेजा, बेइज्जती कराने के बजाय इंतजार करना होगा

महेश झालानी
30 Jun 2021 10:15 AM GMT
पायलट को फिर आलाकमान ने बैरंग भेजा, बेइज्जती कराने के बजाय इंतजार करना होगा
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बेइज्जती कराने के बजाय इंतजार करना होगा

अंसतुष्ट कांग्रेसी नेता सचिन पायलट एक बार फिर से बैरंग जयपुर लौटने वाले है । वे दिल्ली से रवाना हो चुके है और शाम तक जयपुर आने की संभावना है ।

वैसे तो पायलट हर शनिवार और रविवार को दिल्ली जाते है । लेकिन इस बार मुख्य मुद्दा अपने समर्थकों को मंत्रिमंडल और राजनीतिक नियुक्तियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिलाना था । तीन-चार की प्रतीक्षा के बाद भी उनकी न तो राहुल गांधी से मुलाकात हुई और न ही प्रियंका से । पायलट से सोनिया गांधी बेहद खफा है, इसलिए वे मुलाकत या बातचीत करने के पक्ष में नही है ।

ज्ञात हुआ है कि पायलट ने प्रियंका और राहुल से मुलाकात करने के भरसक प्रयास किये । लेकिन उनको सफलता हाथ नही लगी । उधर पंजाब के बागी नेता नवजोत सिंह सिद्धू से न केवल राहुल ने बल्कि प्रियंका गांधी ने भी मुलाकत कर उनका काफी देर तक पक्ष सुना ।

बताया जाता है कि प्रियंका गांधी ने पंजाब की समस्या सुलझाने का बीड़ा उठाया है । इसलिए सिद्धू से मुलाकात करने के बाद प्रियंका पार्टी की अध्यक्षा सोनिया गांधी से मुलाकात करने गई । बातचीत जारी है । उम्मीद है कि निर्णय सिद्धू के पक्ष में जा सकता है ।

इस घटनाक्रम से यह तो जाहिर होगया है कि आलाकमान की नज़रों में पायलट की अब कोई इज्जत और हैसियत नही है । पहले जब इन्होंने बगावत की, तब हस्तक्षेप करना आलाकमान की मजबूरी थी । क्योकि उस वक्त गहलोत सरकार के गिरने का खतरा मंडरा रहा था ।

आज स्थिति पूरी तरह बदल गई है । गहलोत ने अपनी ना केवल अपनी स्थिति मजबूत करली है, बल्कि पायलट खेमे के कई विधायको को तोड़कर अपने पाले में शामिल कर लिया है । आलाकमान बखूबी जानता है कि आज पायलट ब्लैकमेल करने की स्थिति में नही है । पार्टी में रहना उनकी विवशता है । क्योंकि बीजेपी में जाना या तीसरे मोर्चे की दुकान खोलना राजनीतिक आत्महत्या के सिवा कुछ नही है ।

पायलट को यह समझ लेना चाहिए कि दिल्ली में अब उनकी कोई सुनवाई नही होने वाली है । सुनवाई भी होगी तो उनको वह नही मिलने वाला है जिसके वे तलबगार है । पायलट और उनके समर्थकों ने सारे हथकंडे अपना लिए है, लेकिन नतीजा जीरो रहा । समर्थक कभी इस्तीफे का नाटक करते है तो कभी धरने का ।

कुछ विधायक तो नए नए पैतरे आजमा रहे है । कभी "सचिन आ रहा है" तो कभी एससी और एसटी वालो पर जुल्म हो रहा है, का भी राग अलापते रहे है । खुद सचिन मातमपुरसी जैसे स्वांग के जरिये रोज नया तमाशा दिखाने को विवश है । इस तरह के तमाशो से वे खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे है । अब तो समर्थित विधायको भी पायलट से भरोसा उठता जा रहा है ।

राजस्थान में दो व्यक्तियों ने मूर्खतापूर्ण कदम उठाकर राजनीतिक रूप से आत्महत्या की है । एक घनश्याम तिवाड़ी और दूसरे सचिन पायलट । अपनी बचकानी हरकतों की वजह से तिवाड़ी ने खूब जग हंसाई कराई । बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में गए और अब वापिस बीजेपी में शरीक तो होगये । लेकिन इनको कोई अहमियत नही दे रहा है । यदि ये ठंडा करके खाते तो आज इनकी पार्टी में बहुत बड़ी हैसियत होती ।

इसी प्रकार पायलट ने भी मूर्खतापूर्ण कदम उठाया । इसकी वजह से आज इनकी पार्टी में कोई हैसियत नही है । आलाकमान इनके नाम से ही बिदकने लगा है । भीड़ एकत्रित करने ये अवश्य पारंगत है । लेकिन इसका फायदा क्या ? पुचकारने के लिए भले ही इन्हें कोई छोटा-मोटा पद दे दिया जाए । लेकिन पीसीसी चीफ और उप मुख्यमंत्री पद पर बहालगी कैसे होगी ?

यह तो साबित होगया है कि सिद्धू की तुलना में पायलट की फिलहाल कोई हैसियत नही है । बजाय आये दिन बेइज्जती कराने के, इनको चुप होकर तब तक इंतजार करना चाहिए जब तक स्टार फेवर नही हो जाते । वर्तमान में इनके सितारे गर्दिश में है । इनके समर्थकों को उल-जुलूल हरकत छोड़कर सही समय का इंतजार करना चाहिए । वरना अगले चुनाव में टिकट के भी टोटे पड़ जाएंगे ।


महेश झालानी

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