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प्रशासनिक अधिकारी श्यामलाल जी के पुत्र चि. अंकित की शादी थी। श्यामलाल के पिताजी गुजर चुके थे। दो बड़े और एक छोटा भाई था। सब अलग रहते थे। सारे भाई विवाह के कई दिन पहले ही तशरीफ़ ला चुके थे। भाइयो के बेटे और बहू भी समारोह में शरीक होने के लिए कोई हैदराबाद तो कोई पूना से आगया था। श्यामलाल का एक भतीजा जो शिकागो में रहता है, वह भी सपरिवार आ चुका है। दोनों बहनें और करीब तमाम रिश्तेदार समारोह में शरीक हुए। सबने बढ़-चढ़कर काम किया। कोई इधर दौड़ रहा है तो कोई उधर। कहने का तातपर्य यह है कि सब कार्य मे पूरे मन से तल्लीन है।
विवाह समारोह सम्पन्न हो गया। नई दुल्हन घर पर आगई। हर व्यक्ति में दुल्हन को महंगे से महंगे तोहफे देने की होड़ मची थी। श्यामलाल की बड़ी भाभी ने दुल्हन को सोने का हार भेट किया । उससे छोटी भाभी ने कान का सेट दिया। बहन, बुआ, रिश्तेदार भी अपनी नाक नही कटवाना चाहते थे। किसी ने पायजेब तो किसी ने कीमती बनारसी साड़ी भेंट की। दो कमरे उपहारों से भर गए । मेहमान और भाई-बंधु खुशी खुशी विदा हुए।
अंकित की शादी के करीब एक साल बाद श्यामलाल के छोटे भाई छगन की बेटी कल्पना की शादी थी। छगन इलेक्ट्रिशियन का कार्य कर अपने परिवार का पेट पालता था। विवाह के दिन 11 बजे तक कोई भी भाई हाजिर नही हुआ। घर का माहौल ऐसा था मानो विवाह नही, कोई स्यापा हो रहा है। करीब 3 बजे सबसे बड़ा हुकमचन्द अकेला ही उपस्थित हुआ। पास में बिछी चारपाई पर लेटकर चाय लाने का आदेश सुनाया। एक और भाई उस वक्त आया जब बारात दरवाजे पर आ चुकी थी। श्यामलाल का मैसेज आ चुका था कि किसी सरकारी काम मे व्यस्त होने की वजह से वह शादी में शरीक नही हो सकता। गिनती के मेहमान थे। कोई भी बुआ नही आई। एक बहन अवश्य आई। हुकमचन्द ने कन्यादान में 151 रुपये तो दूसरे भाई ने भी इतनी राशि का लिफाफा थमाया। श्यामलाल ने अवश्य 500 रुपये भिजवाए थे। कल्पना रोती-बिलखती विदा होगई।
महेश झालानी
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