जयपुर

कांग्रेस में हुए नाटक के बाद इतना सन्नाटा क्यो है भाई ? प्रदेश का एक भी मंत्री जमानत तक नही बचा पाएगा

महेश झालानी
17 Aug 2022 10:19 AM GMT
कांग्रेस में हुए नाटक के बाद इतना सन्नाटा क्यो है भाई ? प्रदेश का एक भी मंत्री जमानत तक नही बचा पाएगा
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कांग्रेस की ओर से उदयपुर में इस उद्देश्य से तीन दिवसीय चिंतन शिविर आयोजित किया गया था ताकि इस बात पर मनन किया जा सके कि पांच राज्यो में पार्टी की "ऐतिहासिक" हार क्यो हुई । पांच राज्यो में से यूपी की हार का रिकार्ड तो गिनीज बुक तक मे दर्ज होगया । इस ऐतिहासिक हार के लिए तथाकथित आलाकमान और भावी प्रधानमंत्री राहुल और उनकी "कुशल" बहिन का चिंतन शिविर में सम्मान किया जाना चाहिए था ।

शिविर में मनन इस बात पर भी हुआ कि यूपी में कांग्रेस एक सीट जीती कैसे ? जबकि राहुल, प्रियंका और टिकट बेचने वाले धीरज गुर्जर, प्रमोद तिवाड़ी और जुबेर खान जैसे लोग पार्टी का पूरी तरह क्रियाकर्म करने के लिए प्रतिबद्ध थे । पार्टी को डुबोने में राहुल ने भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की । प्रधानमंत्री पद का ख्वाब देखने वाले राहुल जहां भी गए, पार्टी का पूरी तरह सूपड़ा साफ होकर रह गया ।

चिंतन शिविर सम्पन्न हुए तीन माह से अधिक होगये है । लेकिन रिजल्ट निकला जीरो । तीन दिन तक भाषण और चाटन के अलावा इस शिविर की उपलब्धि क्या थी, कोई मुंह खोलने को तैयार नही है । गरीबो की दुहाई देने और महंगाई की मुखालफत करने वाली कांग्रेस की सबसे बड़ी यही उपलब्धि रही कि करोड़ो रूपये फूंक कर 400 से ज्यादा प्रतिनिधियों को जमकर ऐश कराई । शिविर के नाम पर तीन दिन की बेहतरीन पिकनिक थी । सब ने जमकर मजे लूटे ।

इस शिविर का एक उद्देश्य यह भी था कि कांग्रेस में कैसे जान फूंकी जाए । इन राजनेताओ को इतनी भी समझ नही है कि जान जिंदा व्यक्ति में फूंकी जाती है, मृत देह में नही है । जब से कमान राहुल के हाथ मे आई है, पार्टी की उसी दिन मृत होगई थी । चिंतन शिविर आयोजित कर लो या अन्य कोई तमाशा, मरी कांग्रेस को अब तो भगवान भी जिंदा नही कर सकते है । थोड़ी बहुत जान आ सकती है । लेकिन दोनों भाई और बहिन पार्टी का नामोनिशान मिटाने के लिए संकल्पबद्ध है ।

हकीकत यह है कि कांग्रेस को आवश्यकता चिंतन की नहीं, पार्टी में चल रही मारधाड़ और गुटबाज़ी रोकने की है । कांग्रेस अब पूरी तरह बर्बादी के मुहाने पर बैठी है । यदि सोनिया गांधी ने सख़्ती बरतते हुए चापलूसों को ठिकाने नही लगाया तो ये लोग दीमक की तरह पूरी पार्टी को ही चट कर जाएँगे । अवशेष भी नही बचेंगे पार्टी के । लेकिन सोनिया अपनी औलाद के समक्ष असहाय और दया की पात्र है । औलाद की मनमर्जी के चलते पार्टी का पूरी आत्मा जर्जर और बेजान होगई है ।

हक़ीक़त यह भी है कांग्रेस पर चमचों ने एक तरह से पार्टी पर क़ब्ज़ा कर लिया है और निष्ठावान लोग पूरी तरह छिटके जा चुके है । परिणामतः कार्यकर्ताओं में अजीब तरह की छटपहाट और आक्रोश है । कार्यकर्ताओं अंदर धधक रही ज्वाला पर क़ाबू नही पाया गया तो पुरातत्व वाले भी कांग्रेस के अवशेष ढूँढ नही पाएंगे । राज्यसभा चुनाव में बेवकूफी का नमूना देखने को मिला था । प्रमोद तिवाड़ी, मुकुल वासनिक और सुरजेवाला जैसे लोगो को आयातित कर प्रदेश के निष्ठावान कांग्रेसियो के मुंह पर जोरदार तमाचा मारा गया । क्या प्रदेश में ऐसा एक भी योग्य नेता नही, जिसे राज्यसभा में भेजा जाए । कांग्रेस राजनीतिक पार्टी नही, धर्मशाला बनकर रह गई है ।

कांग्रेस नेताओ को यह नही भूलना चाहिए कि पार्टी की असल जान केवल कार्यकर्ता है । जब भी किसी पार्टी में कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर दिया जाता है, उसी दिन पार्टी की मौत हो जाती है । कांग्रेस आज मौत के मुहाने पर बैठी है । कुछ स्वार्थी तत्वों ने अपनी दुकान जमाने के लिए चिंतन शिविर का स्वाँग रचा था । आयोजक भी जानते थे कि इस शिविर का जीरो प्रतिशत फायदा नही होने वाला है । फिर भी करोड़ो रूपये स्वाहा किये गए ।

ऐसा ही चिंतन शिविर क़रीब नौ साल पहले जयपुर की धरती पर 18 जनवरी, 20 को आयोजित किया था । खूब जोशीले भाषण हुए और सत्ता पर दोबारा से क़ाबिज़ होने का संकल्प लिया गया । नतीजा सबके सामने है । पूरे देश में कांग्रेस का नाम लेने वाला नही बचा है । हालत यही रहे तो आगामी चुनावों में छतीसगढ और राजस्थान में भी कांग्रेस का राम नाम सत्य हो जाएगा ।

कुर्सी पर काबिज लोगो को पता नही है कि प्रदेश में किस तरह की लूटखसोट मची हुई है । पार्टी के निष्ठावान विधायक जूती चटकाने पर विवश है और बीएसपी और निर्दलीय वाले लूट का कत्थक कर रहे है । आखिर वफादारी का कुछ तो "इनाम" मिलना ही चाहिए । सरकार का असल संचालन इन्ही लोगो के हाथों में है । नियुक्ति के आदेश अभी जारी हुए ही थे कि दलाल उगाही में सक्रिय होगये है । दलालो का भिवाड़ी में नंगा नाच सरेआम देखा जा सकता है ।

अब तक के घटनाक्रम पर दृष्टिपात करे तो कांग्रेस क्यों डूबी और आगे कैसे डूबेगी, इसका मुख्य कारण है आलाकमान का पार्टी से नियंत्रण समाप्त होना है । माँ घरतराष्ट्र की तरह ख़ामोश है और बेटी प्रियंका व राहुल मनमानी का कत्थक करने पर आमादा है । पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओ ने कांग्रेस को माँ, बेटी और बेटे के चंगुल से मुक्त कराने का अभियान भी चलाया था । लेकिन अशोक गहलोत जैसे लोगो ने पूरे अभियान को ही पंक्चर कर दिया । अब जी-23 का वजूद समाप्त होगया है और सब राहुल भैया के चरणस्पर्श करने की होड़ में है ।

चिंतन शिविर आयोजन का मुख्य मक़सद पार्टी को ज़िंदा रखने का नही था । असल मक़सद था कि कुर्सी को सुरक्षित कैसे रखा जाए । तीन दिन तक भाषण और चाटन हुआ । मैंने पहले ही लिखा था कि कोई नतीजा निकलेगा, इसकी दूर दूर तक कोई सम्भावना नज़र नही आती है । कुछ प्रस्ताव पारित करने की औपचारिकताएँ होंगी तो कुछ लोग राहुल या प्रियंका को पार्टी की कमान देने की बिना फ़ीस के ज़ोरदार पैरवी करेंगे ।

अनपढ़ और गंवार भी बता सकता है कि पाँच राज्यों में कांग्रेस की शव यात्रा क्यों निकली । जब आम आदमी भी इससे वाक़िफ़ है तो चिंतन शिविर के नाम पर करोड़ों रुपए की बर्बादी और सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग क्यों ? चिंतन शिविर का पार्टी और कार्यकर्ताओं को क्या लाभ मिला, कोई मुंह खोलने को तैयार नही है । अगर चिंतन ही करना था तो पार्टी के आलाकमान को बताना चाहिए था कि दो साल तक अजय माकन और केसी वेणुगोपाल ने गहलोत तथा सचिन पायलट के बीच चल मारधाड़ को रोकने की दिशा में क्या पहल की ?

अजय माकन और कैसी वेणुगोपाल को आलीशान होटलों में अय्याशी और कार्यकर्ताओं को मूर्ख बनाने के लिए नियुक्त नही किया गया था । दोनो नेताओं ने राजस्थान के कार्यकर्ताओं को झूठ बोलकर मूर्ख बनाया, उसकी कोई दूसरी मिसाल नही है । अगर माकन और वेणुगोपाल में थोड़ी सी भी नैतिकता बची है तो उनको राजस्थान नही आना चाहिए । इनकी लफ्फाजी से कार्यकर्ताओ में जबरदस्त आक्रोश है । हो सकता है कि उत्तेजित होकर कोई कार्यकर्ता इन बहरूपियों के कपड़े नही फाड़ दे ।

मैं पहले भी लिख चुका हूँ कि पार्टी चिंतन से नहीं, समयोचित निर्णय लेने से आगे बढ़ती है । बेटी और बेटे ने पंजाब में पार्टी की मय्यत निकाल दी और माँ सोरी कहकर ख़ामोश हो जाती है । पैसे लेकर टिकट बेचने वाले मलाई चाट रहे है और पार्टी चिंतन कर रही है कि हम हारे क्यों ? बंद करो पार्टी के कार्यकर्ताओं को मूर्ख बनाने का ड्रामा । अगर तबाही के ऐसे मंजर को रोका नही गया तो आक्रोशित और उद्वेलित कार्यकर्ता राम नाम सत्य करने से भी नही चूकेंगे । बाकी असली झांकी आगमी चुनावो में देखने को मिलेगी । शायद कोई ऐसा मंत्री होगा जो अपनी जमानत भी बचा सके ।

मंथन रहेगा जारी…….

महेश झालानी

महेश झालानी

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