जयपुर

गहलोत के जादूगिरी के सामने पायलट असहाय, क्या राजस्थान कांग्रेस में फिर से होगी बगावत ?

Shiv Kumar Mishra
24 Oct 2020 5:11 AM GMT
गहलोत के जादूगिरी के सामने पायलट असहाय, क्या राजस्थान कांग्रेस में फिर से होगी बगावत ?
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क्योंकि जादूगर की जादूगरी को आज तक कोई समझ नही पाया है ।

महेश झालानी

ना केवल पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट का हौसला टूटता जा रहा है बल्कि उनके साथ कांग्रेस को अंगूठा दिखाकर भाजपा के जरिये अपना उज्ज्वल भविष्य बनाने वाले स्याने टाइप के विधायकों की हालत खस्ता होती जा रही है। सरकार भले ही तेज गति से नही दौड़ रही हो, लेकिन राजनीति के जादूगर ने बागी विधायकों के साथ साथ पायलट को भी उनकी हैसियत बतादी है। गहलोत धड़ल्ले से बड़े बड़े निर्णय कर रहे है और सचिन पायलट असहाय होकर तमाशा देखने को विवश है। पायलट समर्थक विधायकों का धैर्य अब जवाब देने लगा है । हालत यही रहे तो पायलट गुट के विधायक गहलोत के पाले में भी जा सकते है।

पायलट को ना अफसर गांठ रहे है और न ही मंत्री। अफसर तो इनके नाम से ही बिदकते है। सप्ताह भर पहले किसी आईएएस के पास पायलट का फोन गया था। अफसर ने यह कहकर बात करने से मना कर दिया कि वे कोरोंटाइन है। वक्त खराब होता है तो ऊंट पर बैठे आदमी को भी कुत्ता काट लेता है। दुःखद स्थिति यह है कि सोनिया गांधी द्वारा गठित तीन सदस्यीय समिति भी पायलट को घास नही डाल रही है। राजस्थान के प्रभारी अजय माकन की वही स्थिति है जो प्रशासनिक सुधार विभाग के मुखिया की होती है। प्रदेश के सरकारी कार्यालयों घूमकर बहुत रौब झाड़ लिया। बाकी लेना देना कुछ नही।

अब बेचारा माकन भी ठंड पी रहा है। उसकी रिपोर्ट फिलहाल ठंडे बस्ते में कैद होकर रह गई है। सचिन ने मानेसर से लौटते वक्त अपने समर्थित विधायकों को भरोसा दिलाया था कि सभी को सम्मानजनक तरीके से समायोजित कर लिया जाएगा। लेकिन बेचारो में माया मिली ना राम। धक्के खाने के अलावा कोई काम नही बचा है। उधर पायलट को एमपी और बिहार के चुनाव में फंसा दिया है।

गहलोत ने यह जाहिर कर दिया है कि पायलट की नाराजगी कोई मायने नही रखती है। इसलिए उन्होंने अपने खास भूपेंद्र सिंह को आरपीएससी का चेयरमैन, लालचंद कटारिया की सिफारिश पर जसवंत राठी, एसीएस निरंजन आर्य की पत्नी संगीता, कुमार विश्वास की पत्नी मंन्जु शर्मा तथा कटारा को सदस्य बनाकर पायलट की हैसियत बता दी है। इसी प्रकार एमएल लाठर को कार्यवाहक डीजीपी और बीएल सोनी को एसीबी का डीजी बना दिया है। शीघ्र और भी नियुक्ति होने वाली है जिसमें पायलट गुट को कोई प्रतिनिधित्व नही मिलने वाला है।

गहलोत ऐसा रास्ता तलाश रहे है जिससे उनकी पूंछ ऊंची रहे और पायलट को भी काबू में रखा जा सके। इसके लिए आलाकमान के निर्देशों की प्रातिक्षा की जा रही है। लेकिन आलाकमान की फिलहाल राजस्थान में कोई रुचि नही है। इसलिए खामोश है। पार्टी में तोड़फोड़ नही हो जाये इसलिए फौरी तौर पर पायलट को यह कह मनाने का स्वांग रचा गया था कि सभी वाजिब मांगे मान ली जाएगी। तीन महीने होने को आये, लेकिन आलाकमान ने पायलट से बात करना भी मुनासिब नही समझा। आलाकमान शायद यह संदेश देना चाहता है कि बगावत परिणाम यही होता है।

पायलट के स्थान पर गोविंद सिंह डोटासरा को पीसीसी चीफ तो बना दिया, लेकिन 100 दिन के बाद भी संगठन का ढांचा तैयार नही किया गया है। जब डोटासरा अकेले पीसीसी को संचालित कर रहे है तो पार्टी में भीड़भाड़ क्यों ? उधर अशोक गहलोत का संकट में साथ देने वाले वफादार विधायक भी बेचैन है। कोई मंत्री बनना चाहता है किसी को पदोन्नति की लालसा है। अनेक विधायक बोर्ड और निगम के चैयरमैन की बांट जोह रहे है। उनकी ख्वाहिश कब पूरी होगी, फिलहाल कुछ भी कहना बेमानी होगा। क्योंकि जादूगर की जादूगरी को आज तक कोई समझ नही पाया है ।

नोट : ज्ञात हुआ है कि बगावत से पहले निम्न विधायकों को मंत्री बनाने की योजना थी -

सचिन पायलट उप मुख्यमंत्री (वित्त)

दीपेंद्र सिंह शेखावत चिकित्सा विभाग

विश्वेन्द्र सिंह ऊर्जा, जलदाय

रमेश मीणा परिवहन

भंवर लाल शर्मा सिंचाई, इंदिरा नहर

हेमाराम चौधरी राजस्व, खनन

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