धर्म-कर्म

बाबा नीम करौली का जन्मस्थान फिरोजाबाद है, बाबा नीम करौली की जीवनी

CA Manish Kumar Gupta
28 Dec 2021 11:45 AM GMT
बाबा नीम करौली का जन्मस्थान फिरोजाबाद है, बाबा नीम करौली की जीवनी
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क्या आप जानते है विश्व भर में प्रसिद्द कैंची धाम वाले नीम करोली बाबा जिनके भक्तों में एप्पल के फाउंडर स्टीव जोबटस और फेसबुक के फाउंडर मार्क जुकरबर्ग , हॉलीवुड एक्ट्रेस जूलिया रॉबर्ट्स आदि शामिल है इनके ज्यादातर भक्त अमेरिकन हैं | बाबा नीम करोली का जन्म हमारे अपने शहर फिरोजाबाद में ही हुआ था और बड़ी हैरानी की बात है कि अपने शहर के निवासियों को इस बात का पता ही नहीं नीब करौरी बाबा या महाराजजी की गणना बीसवीं शताब्दी के सबसे महान संतों में होती है।

एक तरफ बाबा के आश्रम जो की नैनीताल के पास कैंची धाम में भक्तों की भीड़ लगी रहती थी वहीँ बाबा का जन्मस्थान उपेक्षित पड़ा हुआ है | उत्तरप्रदेश पर्यटन विभाग ने इस पर कभी ध्यान नहीं दिया अन्यथा यह फिरोजाबाद में बाहुबली की विशाल प्रतिमा वाले जैन मंदिर के बाद प्रमुख पर्यटन स्थल होता |

आइये बाबा के बारे में जानें :

बाबा नीम करौली का जन्म, 1900 के आस पास हुआ था । उनका जन्म फिरोजाबाद जिले के निकट, अकबरपुर में हुआ था जो की हिरन गाओं रेलवे स्टेशन से लगभग 500 मीटर की दूरी पर है । इनके पिता पंडित दुर्गा प्रसाद शर्मा जी थे। जो एक बहुत बड़े जमींदार थे। इनका मूल नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था। छोटी उम्र में ही इन्हें अलौकिक ज्ञान की प्राप्ति हो गई थी। बाबा नीबकरोरी हनुमान जी के भक्त व अवतार माने जाते थे।

इनका विवाह 11 वर्ष की उम्र में ही हो गया था। गृहस्थ जीवन से विचलित होकर, इन्होंने शीघ्र ही घर त्याग दिया। फिर काफी समय तक इधर-उधर भटकते रहे। बाबा शुरुआती दौर में गुजरात के मोरबी से 35 किलोमीटर दूर, एक गांव में साधना की। यहां पर उन्होंने बहुत सारी सिद्धि हासिल की। यहां आश्रम के गुरु महाराज ने, उनका नाम लक्ष्मण दास रखा। बाद में महंत ने, उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। अन्य शिष्यों के विवाद के कारण, उन्होंने वह स्थान शीघ्र ही छोड़ दिया। इसके बाद वह राजकोट के पास बवानिया गांव में आते हैं। एक तालाब के किनारे, हनुमान जी का एक मंदिर स्थापित करते हैं। यही वह तालाब में खड़े होकर घंटों तपस्या करते हैं। जिसके कारण, वहां पर लोग तलैया बाबा के नाम से पुकारने लगे। 1917 में एक संत रमाबाई को आश्रम समर्पित कर वहां से चल पड़ते हैं। यहां से वह, मां गंगा से मिलने निकल पड़ते हैं।

नीब कारोरी मे ट्रेन रोके जाने का रहस्य

बाबा मां गंगा मैया के दर्शन के लिए, टूंडला से फर्रुखाबाद जाने वाली ट्रेन के, प्रथम श्रेणी में यात्रा कर रहे थे। तभी टिकट निरीक्षक ने उन्हें बेइज्जत करके,रास्ते में ही ट्रेन से उतार दिया। बाबा भी बिना विरोध किए उतर गए।एक नीम के पेड़ के नीचे बैठ गए। उन्होंने अपना चिमटा, वही जमीन में गाड़ दिया। लेकिन उनके उतरते ही, ट्रेन वही की वही रुकी रही। लाख कोशिशों के बाद भी, ट्रेन को चलता ना देखकर। ट्रेन के गार्ड,ड्राइवर व टिकट निरीक्षक को आभास हुआ कि उन्होंने बहुत बड़ी गलती कर दी है। फिर उन्होंने बाबा से क्षमा याचना के विनती की। वह ट्रेन में पुनः आकर बैठे। ताकि ट्रेन चल सके। बाबा ने ट्रेन पर बैठने के लिए दो शर्तें रखी। पहली वह कभी भी, किसी साधु-संत को, ऐसे बेइज्जत नहीं करेंगे। इसके बाद, उन्होंने प्रथम श्रेणी का टिकट भी दिखाया। दूसरी इस स्थान पर एक रेलवे स्टेशन का निर्माण हो। यह वक्त ब्रिटिश शासन काल का था। बाबा की यह दोनों चलते मान ली गई। फिर जैसे ही बाबा ट्रेन पर बैठे। ट्रेन चल पड़ी।

उस स्थान का नाम नीबकरोरी स्टेशन पड़ा। जो आज भी स्थित है। उनके साथ, उस गांव के काफी लोग गंगा मैया का स्नान करने जा रहे थे। उन्होंने बाबा से आग्रह किया कि वह उनके गांव में आ कर रहे। फिर बाबा ने गांव वालों से कहकर गुफा बनवाई। बाबा ने अपने हाथों से हनुमान जी की मूर्ति की रचना की। जो आज नीम करोली धाम में मौजूद है। बाबा उस गुफा में अनेकों-अनेकों दिन तक घोर साधना किया करते थे। यहां उनका नाम बाबा नीमकरोरी पड़ा।

ट्रेन रोके जाने की घटना, विश्व प्रसिद्ध हुई। जिसके कारण नीब करोरी बाबा की चर्चा, उनके गांव में भी होने लगी। तब उनके पिता ने कहा- चलो, बाबा नीमकरोरी से पूछते हैं। हमारा बेटा कहां है। वह कब तक आएगा। इसी अपेक्षा में, वह नीबकरोरी धाम पहुंचते हैं। जहां अपने बेटे को नीम करोरी बाबा के रूप में पाकर खुश हो जाते हैं। उन्हें आदेश देते हैं कि वह घर चलकर, गृहस्थ जीवन व्यतीत करें। यूं तो नीमकरोरी से जुड़ी बहुत सारी कथाएं, चमत्कार, वह रहस्यमयी घटनाए हैं जिन्हें जानकर आप आनन्दित व विस्मित हुए बगैर नही रहे सकते।

बाबा नीब कारोरी का ग्रहस्थ जीवन

बाबा नीबकरोरी पिता के आदेश पर, 10 वर्षों बाद, अपने गांव अकबरपुर वापस आते हैं। उनके पिता कहते हैं कि बेटा अब तुम गृहस्थ जीवन व्यतीत करो। इस पर बाबा पिता जी का आशीर्वाद लेते हुए कहते हैं। मैं अपने गृहस्थ जीवन का पूर्णतया उत्तरदायित्व निभाऊंगा। लेकिन साथ ही मैंने, जो समाज सेवा का कार्य शुरू किया है। उसे भी जारी रखूंगा। इस पर उनके पिता कहते हैं। बेटा, मुझे जनकल्याण के कार्यों से कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन बस घर आते-जाते रहो। बाबा उनके दिल की बात को समझते हुए। उन्हें वचन देते हैं कि वह ऐसा ही करेंगे।

फिर 1925 में बाबा को सुपुत्र की प्राप्ति होती है। इस बीच बाबा का नीबकरोरी में आना-जाना बना रहता है। 1917 से 1935 तक बाबा, नीमकरोरी में तपस्यारत रहे। फिर 1935 में एक भव्य यज्ञ का आयोजन होता है। जिसमें बाबा, अपनी जटाये त्याग देते हैं। उनके धर्म कार्य और गृहस्थ कार्य दोनों साथ-साथ चलते हैंबाबा की कुल तीन संताने रहीं |

कैंची धाम की स्थापना

1962 में कैंची धाम की स्थापना की जाती है। उस वक्त चौधरी चरण सिंह वन मंत्री थे। वह बाबा को कैंचीधाम के निर्माण के लिए जगह मुहैया करवाते हैं। जिस पर बाबा खुश होकर आशीर्वाद देते हैं। वह एक दिन भारत के प्रधानमंत्री बनेंगे। जबकि चौधरी चरण सिंह की दूर-दूर तक प्रधानमंत्री बनने की कोई संभावना नहीं होती है। यह स्थान देश ही नहीं, वरन विदेशों तक ख्याति प्राप्त है। यह वही स्थान है। जिसे आज हम कैंची धाम के नाम से जानते हैं। आज यहां देशभर के और विदेशी श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

बाबा नीब कारोरी का देह त्याग

बाबा का संपूर्ण जीवन, गृहस्थ और अध्यात्म में बराबर से बटा रहा। उन्होंने पूर्ण उत्तरदायित्व के साथ, इन दोनों धर्मों का बहुत निष्ठा के साथ पालन किया। बाबा ने 1935 में नीमकरोरी धाम को अलविदा किया। फिर अपनी अध्यात्म व संत जीवन का सफर कैंची धाम में गुजारा। वहां उनके शिष्य पूर्णानंद तिवारी थे। जो हमेशा बाबा के इर्द-गिर्द ही रहते थे। यह वही पूर्णानंद तिवारी हैं। जिन्हें पहली बार 1942 में बाबा ने कैची धाम में दर्शन दिए थे।

9 सितंबर 1973 को, बाबा नीम करौली ने अपना सबसे प्रिय, कैंची धाम त्याग दिया। बाबा ने दो महीने पहले से ही, अपने अनन्य भक्त पूर्णानंद जी को, अपने से दूर करना शुरू कर दिया। जिस पर पूर्णानंद कुछ दुखी भी हुए। लेकिन उन्हें इसके पीछे की मंशा नहीं पता थी। 9 सितंबर को बाबा ने पूर्णानंद से कहा कि वह वृंदावन जा रहे हैं। उनका बहुत लंबा ट्रांसफर हो गया है। लेकिन वह साथ नहीं चलेंगे बल्कि रवि खन्ना, जो एक एंग्लो इंडियन थे। उनके साथ जाने का निश्चय किया।बाबा ने काठगोदाम से ट्रेन के द्वारा आगरा के लिए प्रस्थान किया। आगरा पहुंचने से पहले ही वह ट्रेन से उतरे। रवि खन्ना जो उनके साथ थे। उनसे कहा कि मैं अपना देह त्याग रहा हूं। लोग मेरे अंतिम संस्कार के लिए, असमंजस में पड़ जाएंगे। उन सबको बता देना। मेरा अंतिम संस्कार कैंची में न करके, वृंदावन में किया जाए।

एप्पल के फाउंडर स्टीव जॉब्स , बाबा नीम करौली से आशीर्वाद लेने। उनके आश्रम कैंची धाम आए थे। स्टीव जॉब की सलाह पर ही, फेसबुक के फाउंडर मार्क ज़ुकेरबर्ग ने भी कैंची धाम में माथा टेका था। उस वक्त ज़ुकेरबर्ग संघर्ष के दौर से गुजर रहे थे। उनकी कंपनी फेसबुक लगभग बिकने के कगार पर थी। तब स्टीव जॉब की सलाह पर, वह कैंची धाम आये। यह बात प्रधानमंत्री मोदी के फेसबुक के ऑफिस में दौरे के दौरान ज़ुकेरबर्ग ने स्वयं बताई। स्टीव जॉब्स 1974 में कैंची धाम आए। लेकिन उनकी मुलाकात बाबा से नहीं हुई। क्योंकि बाबा कुछ ही दिनों पहले समाधि ले चुके थे। लेकिन बाबा के आशीर्वाद से स्टीव जॉब और मार्क ज़ुकेरबर्ग की पूरी जिंदगी ही बदल गई। नीम करोली बाबा को मानने वालों में हॉलीवुड अभिनेत्री जूलिया रॉबर्ट्स का भी नाम आता है। जूलिया न तो आज तक बाबा के धाम आई और न ही बाबा से मिली। बस उनकी फोटो देखकर, उनकी भक्त हो गई। इसी श्रंखला में अमेरिका में हावर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रिचर्ड एडवर्ड भी है। जो साइकेडेलिक ड्रग्स के ऊपर रिसर्च कर रहे थे। इनके ड्रग्स के आदि हो जाने के कारण, यूनिवर्सिटी से निष्कासित कर दिया गया धीरे-धीरे ज्यादा ड्रग्स लेने के कारण, रिचर्ड डिप्रेशन में चले गए। 1967 में रिचर्ड इंडिया घूमने आए। यहां उनकी मुलाकात, नीम करोली बाबा से हुई। एक दिन उन्होंने बाबा जी को ड्रग्स दी। बाबा ने एक साथ बहुत सारी गोलियां खा ली। लेकिन उन पर इसका कोई असर नहीं हुआ। यह देखकर रिचर्ड की सोच ड्रग्स के प्रति बदल गई। वह बाबा के अनन्य भक्त हो गए। फिर उन्होंने अमेरिका वापस जाकर, अपना नाम रामदास रख लिया। वह हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार में लग गए।

जुगल किशोर बिरला और बाबा नीम करोरी

बाबा अल्प प्रवास के लिए, बिरला जी के यहां पहुंचते हैं। बिरला जी बाबा को अपने यहाँ नियुक्त नारायण दास पुजारी से मिलवाते हैं। जिसे राम कथा पूरी तरह कंठस्थ थी। बाबा उस पुजारी को देखते ही कहते हैं कि तेरे पिता ने हनुमान जी से बहुत बड़ा धोखा किया है। इस पर पुजारी थोड़ा विचलित होता है। बाबा के इस तरह कहने पर,वह अपने पिताजी से इस संदर्भ में जानकारी करता है।

नारायण दास के पिता, पन्नालाल स्वामी यह सुनकर अचंभित होते हैं। वह उनसे पूछते हैं। यह बात तुम्हें किसने बताई। तब वह बाबा के बारे में बताते हैं। तो पन्नालाल जी कहते हैं कि वह अवश्य ही हनुमान जी हैं। क्योंकि यह बात तो मेरे और सिर्फ हनुमान जी के बीच ही थी। यहां तक की तुम्हारी मां को भी इस विषय में कुछ नहीं पता था। दरअसल हुआ कुछ यूं था। पन्नालाल जी को कोई संतान नहीं थी। उन्होंने मेहंदीपुर बालाजी के मंदिर में यह प्रण किया था। यदि उन्हें संतान की प्राप्त होती है। तो वह उनकी सेवा में समर्पित कर देंगे। लेकिन पुत्र मोह वश, वह अपनी बात से मुकर गए। जिसकी जानकारी सिर्फ उन्हें या बालाजी हनुमान जी को ही थी। जब नारायण दास के सामने, यह बात आती है। तो वह बिरला जी की नौकरी छोड़कर। दिल्ली के महरौली में स्थित गुप्त हनुमान जी के मंदिर में। निस्वार्थ भाव से अपने को समर्पित कर देते हैं। वह आज भी उस मंदिर में पुजारी की भूमिका में हैं।

आपका अपना मनीष कुमार गुप्ता इतिहासकार

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