
इस वर्ष सभी पापों को हरने वाली 'जयन्ती' योग से युक्त जन्माष्टमी

यह व्रत भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को किया जाता है । भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्र पद कृष्ण अष्टमी बुधवार को रोहिणी नक्षत्र में अर्ध रात्रि के समय वृष के चंद्रमा में हुआ था। अतः अधिकांश उपासक उक्त बातों में अपने-अपने अभीष्ट योग का ग्रहण करते हैं। शास्त्र में इसके शुद्धा और विद्धा दो भेद हैं। उदय से उदय पर्यन्त शुद्धा और तद्गत सप्तमी या नवमी से विद्धा होती है। शुद्धा या विद्धा भी समा, न्यूना, या अधिका के भेद से तीन प्रकार की होती है ।और इस प्रकार 18 भेद बन जाते हैं, परन्तु सिद्धान्त रूप में तत्कालव्यापिनी( अर्धरात्रि में रहने वाली) तिथि अधिक मान्य होती है। यह व्रत सम्प्रदायभेद से तिथि और नक्षत्र प्रधान हो जाता है।
इस वर्ष रविवार 2 सितम्बर 2018 को अष्टमी दिनमें 5 बजकर 9 मिनट से लगकर 3 सितम्बर 2018 को दिन 3 बजकर 29 मिनट तक है। एवं रोहिणी नक्षत्र रविवार 2 सितम्बर 2018 को सायं 6 बजकर 30मिनट से लगकर 3 सितम्बर को सायं 5 बजकर 34 मिनट तक है। 2 सितम्बर रात्रि मे अष्टमी और रोहिणी नक्षत्र का योग बन रहा है। जब मध्य रात्रि में अष्टमी तिथि एवं रोहिणी नक्षत्र का योग होता है तब सर्वपाप को हरने वाली 'जयन्ती' योग से युक्त जन्माष्टमी होती है-
रोहिणी च यदा कृष्णे पक्षेSष्टम्यां द्विजोत्तम।
जयन्ती नाम सा प्रोक्ता सर्वपापहरातिथि।।
अत: गृहस्थों की जन्माष्टमी 2 सितम्बर 2018 को होगी। उदया अष्टमी तिथि एवं सर्वश्रेष्ठ रोहिणी नक्षत्र का योग एक साथ होने के कारण साधु संन्सासियों की जन्माष्टमी 3 सितम्बर 2018 को होगी।
यह सर्वमान्य और पापघ्न व्रत बाल, युवा, और वृद्ध -सभी अवस्थावाले नर- नारियों के करने योग्य है।इससे उनके पापों की निवृत्ति और सुखादि की वृद्धि होती है। जो इसको नहीं करते, उनको पाप होता है ।इसमें अष्टमी के उपवास से पूजन और नवमी के (तिथिमात्र) पारणा से व्रत की पूर्ति होती है। व्रत करने वाले को चाहिए कि उपवास के पहले दिन लघु भोजन करें। रात्रि में जितेन्द्रिय रहे और उपवास के दिन प्रातः स्नान आदि नित्य कर्म करके सूर्य, सोम, यम,काल, संधि, भूत, पवन, दिक्पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मा आदि को नमस्कार करके पूर्व या उत्तर मुख बैठे; हाथ में जल, फल, कुश, फूल और गंध लेकर 'ममाखिलपापप्रशमनपूर्वकसर्वाभीष्टसिद्धये श्रीकृष्णजन्माष्टमीव्रतमहं करिष्ये'
यह संकल्प करे और मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान करके देवकी जी के लिए 'सूतिकागृह' नियत करें। उसे स्वच्छ और सुशोभित करके उसमें सूतिका के उपयोगी सब सामग्री यथा क्रम रखें। सामर्थ्य हो तो गाने बजाने का भी आयोजन करें। प्रसूतिगृह के सुखद विभाग में सुंदर और सुकोमल बिछौने के लिए सुदृढ़ मंच पर अक्षतादि मण्डल बनवा कर उस पर शुभ कलश स्थापन करें और उसी पर सोना, चांदी, ताँबा, पीतल, मणि, वृक्ष, मिट्टी या चित्ररूप की मूर्ति स्थापित करें। मूर्ति में सद्य: प्रसूत श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किए हुए- ऐसा भाव प्रकट रहे। इसके बाद यथा समय भगवान के प्रकट होने की भावना करके वैदिक विधि से, पौराणिक प्रकार से अथवा अपने सम्प्रदाय की पद्धति से पञ्चोपचार, दशोपचार, षोडशोपचार या आवरण पूजा आद आदि में जो बन सके वही प्रीतिपूर्वक करे। पूजन में देवकी, वसुदेव, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा,और लक्ष्मी- इन सबका क्रमश: नाम निर्दिष्ट करना चाहिए। अन्त में
'प्रणमे देवजननीं त्वया जातस्तु वामन:।
वसुदेवात् तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नम:।।
सपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं मे गृहाणेमं नमोSस्तु ते।'
से देवकी को अर्घ्य दे और
'धर्माय धर्मेश्वराय धर्मपतये धर्मसम्भवाय गोविन्दाय नमो नम:।'
से श्री कृष्ण को 'पुष्पाञ्जलि' अर्पण करें।तत्पश्चात् जातकर्म, नालच्छेदन, षष्ठीपूजन, और नामकरणादि करके
' सोमाय सोमेश्वराय सोमपतये सोमसम्भवाय सोमाय नमो नम:।'
से चन्द्रमा का पूजन करें। और फिर शंख में जल, फल,कुश, कुसुम और गन्ध डालकर दोनों घुटने जमीन में लगावे और
' क्षीरोदार्णवसंभूत अत्रिनेत्रसमुद्भव।
गृहाणार्घ्यं शशांकेमं रोहिण्या सहितो मम।।
ज्योत्स्नापते नमस्तुभ्यं नमस्ते ज्योतिषां पते।
नमस्ते रोहिणीकान्त अर्घ्यं मे प्रतिगृह्यताम्।।'
से चन्द्रमा को अर्घ्य दे और रात्रि के शेष भाग को स्त्रोत-पाठादि करके हुए बितावे। उसके बाद दूसरे दिन पूर्वाह्न मे पुन: स्नानादि करके जिस तिथि या नक्षत्रादि के योग में व्रत किया हो उसका अन्त होने पर पारणा करे। यदि अभीष्ट तिथि या नक्षत्रादि के समाप्त होने में विलम्ब हो तो जल पीकर पारणा की पूर्ति करे।
ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र, शोध छात्र, ज्योतिष विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय