
Nirjala Ekadashi: निर्जला एकादशी व्रत कथा और शुभ मुहूर्त

हिंदू धर्म में निर्जला एकादशी व्रत का बहुत महत्व है। वर्ष में 24 एकादशी आती हैं, किन्तु सबसे फलदाई एकादशी, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी को माना जाता है। निर्जला एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करना शुभ माना जाता है। माना जाता है कि अगर कोई व्यक्ति पूरे साल एकादशी के व्रत ना रखे और सिर्फ निर्जला एकादशी का व्रत ही रख ले, तो उसे विशेष फल की प्राप्ति होती है।
हिंदू धर्म में मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर और अर्जुन को एकादशी व्रत के बारे में बताया था। निर्जला एकादशी आज यानी कि 10 जून 2022, दिन शुक्रवार को मनाई जा रही है। इस व्रत की शुरुआत सुबह 7 बजकर 25 मिनट से लेकर अगले दिन सुबह 5 बजकर 45 मिनट तक रहेगी। इस व्रत में पानी भी ग्रहण नहीं किया जाता है। इस दिन बिना जल पीए व्रत रखा जाता है। इसलिए इसे निर्जला एकादशी व्रत कहा जाता है। इस व्रत को रखने वाले श्रद्धालुओं को निर्जला एकादशी व्रत कथा जरूर पढ़नी चाहिए...
निर्जला एकादशी व्रत कथा एक बार भीम ने वेदव्यास जी से कहा कि, "मेरी माता और सभी भाई एकादशी व्रत रखने का सुझाव देते हैं, लेकिन मेरे लिए यह कहां संभव है? मैं पूजा-पाठ, दान आदि कर सकता हूँ, लेकिन व्रत में भूखा नहीं रह सकता।" इस पर वेदव्यास जी ने कहा कि, "भीम, यदि तुम नरक और स्वर्ग लोक के बारे में जानते हो, तो प्रत्येक माह में आने वाली दोनों एकादशी के दिन अन्न ग्रहण मत करना।" तब भीम ने कहा कि, "यदि पूरे वर्ष में कोई एक व्रत हो तो मैं रख भी सकता हूँ, लेकिन हर माह व्रत रखना संभव नहीं है क्योंकि मुझे भूख बहुत लगती है।"
उन्होंने वेदव्यास जी से निवेदन किया कि कोई ऐसा व्रत हो, जो पूरे साल में एक दिन ही रखना हो और उससे स्वर्ग की प्राप्ति हो जाए, तो उसके बारे में बताने का कष्ट करें। तब व्यास जी ने बताया कि ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी निर्जला एकादशी एक ऐसा व्रत है, जो भीम को रखना चाहिए।
इस व्रत में पानी पीना मना है। इसमें स्नान और आचमन करने की अनुमति है। इस दिन भोजन करने से व्रत नष्ट हो जाता है। यदि निर्जला एकादशी के सूर्योदय से लेकर द्वादशी के सूर्योदय तक जल ग्रहण न करें, तो पूरे साल के एकादशी व्रतों का पुण्य इस व्रत को करने से मिल सकता है।
द्वादशी को सूर्योदय के बाद स्नान करके ब्राह्मणों को दान दें, भूखों को भोजन कराएं और फिर स्वयं भोजन करके व्रत का पारण करें। इस प्रकार से यह एकादशी व्रत पूर्ण होता है। इस निर्जला एकादशी व्रत का पुण्य सभी दानों और तीर्थों के पुण्यों से कहीं अधिक माना जाता है।