धर्म-कर्म

"साईं बाबा फकीर थे, भगवान नहीं"

Shiv Kumar Mishra
16 May 2022 6:03 AM GMT
साईं बाबा फकीर थे, भगवान नहीं
x
फकीर भगवान नहीं होता है उसकी पूजा नहीं करते उसके भक्त नहीं होते हैं?

साईं बाबा हिन्दू थे या नहीं अथवा मुसलमान थे - इस सूचना या ज्ञान का क्या महत्व है। और है तो अब ही क्यों? मेरे बॉस, गुरु और मित्र शंभू नाथ शुक्ल ने आज अपने अखबार में एक लेख छापा है, साई बाबा एक मुस्लिम फकीर। फेसबुक फ्रेंड धीरज फूलमति सिंह के इस लेख का हाईलाइट किया हुआ हिस्सा इस प्रकार है :

मेरा विरोध इस बात से है कि एक मुस्लिम फकीर का मंदिर कैसे हो सकता है? एक मुस्लिम फकीर की समाधि कैसे हो सकती है? मुस्लिम फकीर की तो मजार होती है। मुस्लिम फकीरों को तो कब्र में दफनाया जाता है। जहां एक मुस्लिम पीर फकीर की कब्र होती है वह तो या एक मजार हो सकती है या फिर एक दरगाह तो फिर साईं बाबा मंदिर क्यों अस्तित्व में है। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं कि ऐसा कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है कि साई बाबा ने हिन्दू धर्म को अपनाया था या हिन्दुत्व की दीक्षा ली थी या फिर हिन्दू साधु ही वे बने थे। ऐसा भी कहीं जिक्र नहीं मिलता कि उन्होंने अपने मुसलमान होने का त्याग या इस्लाम धर्म का परित्याग किया था। इसका सीधा मतलब होता है कि वे आजन्म मुस्लिम ही बने रहे।

फेसबुक पर इसे शेयर करते हुए शंभू जी ने लिखा है

साईं बाबा को लेकर मेरे मन में भी शंका थी। ज्ञात सूत्रों के मुताबिक़ वे एक मुस्लिम फ़क़ीर थे। कभी उन्होंने धर्म बदला नहीं न इस्लामिक आस्था से कोई फ़ासला बनाया। फिर उन्हें ज़बरिया मंदिर में लाने का क्या तुक! यह हिंदू पुरोहितवाद का एक छद्म था जो खुल गया। पुरोहितवाद ने अपने ही पूज्य शंकराचार्य का मान मर्दन किया। अब जब कोर्ट ने फ़ैसला दिया तो सारे पुरोहित माफ़ी माँग रहे हैं। मुंबई के ख्यात चिकित्सक और अध्येता व लेखक धीरज फूलमती सिंह ने जब यह लेख भेजा तो पढ़ते ही मैंने इसे संपादकीय पेज पर प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया। इस तथ्य को उत्तर भारत में जन-जन तक लाने के लिए डॉक्टर साहब को साधुवाद!

इसपर मेरी टिप्पणी है,

फकीर तो फकीर होता है। यह अलग बात है कि कोई दावा करे और न हो। इसका मतलब यह नहीं है कि फकीर को हिन्दू-मुसलमान में बांटा जाए। मुझे लगता है "साईं बाबा फकीर थे, भगवान नहीं" - बेहतर शीर्षक होता। (इससे यह संदेश भी जाता कि फकीर भगवान नहीं होता है, उसकी पूजा नहीं करते उसके भक्त नहीं होने चाहिए या ये सब बताया जा सकता था आदि आदि)। वैसे भी, उनके भक्तों में बहुत सारे हिन्दू हैं और ये जानते हुए हैं कि वे मुसलमान थे। मैंने एक पुस्तक साईं प्रेम (रोली बुक्स) का अंग्रेजी अनुवाद (द लव ऑफ साईं) करवाया है। जहां तक मुझे याद है, उसमें जिक्र है कि साईं बाबा के मुसलमान होने की चर्चा उस समय भी थी। यह पुरानी बात है और सर्वविदित है। पर वह महत्वपूर्ण नहीं हैं। तब तो नहीं ही था जब हिन्दुओं ने ही उनकी मूर्ति लगाई, पूजा करने लगे। अब भी करते हैं।

आप नहीं मानते तो उनकी पूजा छोड़िए, उनकी चर्चा भी न करने को स्वतंत्र हैं। ध्रुवीकरण की सरकारी और राजनीतिक कोशिशों के बीच ऐसी चर्चा का क्या मतलब है। किसे बता रहे हैं, किसी ने पूछा है। मैं धर्म नहीं मानता पूजा नहीं करता, बाबाओं-फकीरों से चिढ़ है फिर भी जानता हूं कि साईंबाबा के हिन्दू होने पर विवाद है। लेकिन यह भी जानता हूं कि उनका मंदिर हिन्दुओं और हमारे पूर्वजों ने ही बनवाया होगा। फिर अब उन्हें गलत साबित करने की क्या जरूरत या ऐसा करके हम क्या हासिल कर लेंगे। जब हमारे पूर्वज मुस्लिम फकीर की पूजा करते थे तो आप भी कीजिए या मत कीजिए। एक धर्म निरपेक्ष देश में ध्रुवीकरण तो मत कीजिए।

मेरा मानना है कि सैकड़ों साल पहले जो हुआ उसपर अब क्यों चर्चा। अब आगे क्यों नहीं बढ़ा जाए। पीछे मुड़कर कौन देखता है। या कीजिए बामियान। सभी गलतियां सुधार दीजिए। खजुराओ के दर्शन मुफ्त करवाइए, आवश्यक कर दीजिए या उसे भी गिरा दीजिए। कुछ दिन पहले की हालत में सरकार को नहीं पता था कि गेहूं की पैदावार कितनी हुई है, निर्यात कर पाएंगे कि नहीं और बड़ी-बड़ी डींग हांकने के बाद निर्यात पर पाबंदी लगाने जैसा सबसे आसान फैसला ले लिया गया। यह इसीलिए हुआ है कि हमें मस्जिद को मंदिर बनाना था। उस मस्जिद को जिसमें हमारे ही लोगों ने कुछ साल पहले मूर्तियां रख दी थीं। हमें नहीं पता था या पता था तब भी हम उसे मंदिर बनाने का ख्वाब देखते रहे। ऐतिहासिक महत्व की एक बिल्डिंग को धाराशायी कर दिया और मंदिर बनाने वालों को सरकार चलाने के लिए चुन लिया। ऐसे में यही होना था। हम अब भी नहीं संभल रहे हैं। उन मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं जो हमें उलझाए रखने के लिए या वोट बटोरने के लिए छेड़ी जाती हैं।

अब बात चली ही है हिन्दुस्तान-पाकिस्तान की बात भी कर ही लें। आजादी के समय पाकिस्तान बना। उस समय की स्थितियों के अनुसार जो हो पाया किया गया। अब उसे स्वीकार करना चाहिए या बेहतर हो सके सो करना चाहिए। इंदिरा गांधी को लगा कि बांग्लादेश अलग होना चाहिए। मुमकिन था कर दिया। पर नामुमकिन मुमकिन है के फेर में जिनके पूर्वजों ने धर्म निरपेक्ष भारत में रहने का फैसला किया उन्हें पाकिस्तान चले जाओ कहना देशद्रोह नहीं है? जिन लोगों ने धर्म निरपेक्ष भारत में रहने का फैसला किया उनके वंशज पाकिस्तान क्यों जाएं, भारत विरोधी कैसे हो गए? जवाब होता तो प्रेस कांफ्रेंस होती। किसी को जवाब चाहिए होता तो प्रेस कांफ्रेंस की मांग करते। पर जो हाल है वह आप जानते हैं।

जहां तक साई बाबा का सवाल है, मूर्ति तो हिन्दुओं ने ही बनाई होगी। मुसलमान तो मंदिर नहीं बनाते हैं ना मूर्ति पूजा करते हैं। अब गलती आपके पूर्वजों ने की या किसी मुसलमान को साईं बाबा मान लिया उनकी पूजा करने लगे आप उसमें गलती निकाल रहे हैं। उनके धर्म परिवर्तन या दीक्षा लेने का रिकार्ड ढूंढ़ रहे हैं। पूर्वजों ने जो किया उसे मानना हो मानिए, नहीं मानना हो छोड़ दीजिए। बहस भी कीजिए पर अच्छी तरह पढ़ लिख कर और पूर्वजों की बुद्धि मानसिकता और प्राथमिकताओं का ख्याल रखकर ही तो करेंगे। अब हार्ड वर्क वाले हावर्ड के रिसर्च पर बहस करेंगे तो क्या निकलेगा आप समझ सकते हैं। और वही हो रहा है क्योंकि अंबानी अडानी जैसों के चैनल यही करके पैसा कमा रहे हैं। आप भी लग जाइए और दूसरों को देशद्रोही बताइए।

Shiv Kumar Mishra

Shiv Kumar Mishra

Next Story