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गुप्त नवरात्रि में करे देवी के 9 रूपों और 10 महाविद्याओ की आराधना देवी की कृपा से पूरे होंगे सभी मनोरथ
हिन्दू धर्म में नवरात्रि को लेकर एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता है। साल में करीब चार बार नवरात्रि आती है। दो गुप्त नवरात्रि और दो सामान्य होती हैं। ऐसा माना जाता है, कि गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं की पूजा-अर्चना की जाती है। गुप्त नवरात्रि में तन्त्र विद्या का विशेष महत्त्व होता है। आषाढ़ मास में पड़ने वाली गुप्त नवरात्रियों को आषाढ़ गुप्त नवरात्रि के नाम से जानते हैं।
पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह की गुप्त नवरात्रि 30 जून से शुरू हो रही हैं जिसका समापन 9 जुलाई 2022 को होगा।
आषाढ़ गुप्त नवरात्रि 2022 शुभ मुहूर्त
आषाढ़ गुप्त नवरात्रि 30 जून से शुरू हो रही है. जोकि 09 जुलाई तक चलेगी
गुप्त नवरात्रि प्रतिपदा तिथि का आरंभ - 29 जून 2022, सुबह 8 बजकर 21 मिनट
गुप्त नवरात्रि प्रतिपदा तिथि की समाप्ति - 30 जून 2022, सुबह 10 बजकर 49 मिनट
घट स्थापना मुहूर्त - 30 जून 2022, सुबह 5 बजकर 26 मिनट से 6 बजकर 43 मिनट तक
गुप्त नवरात्रि पूजा विधि
गुप्त नवरात्रि की घट स्थापना बिल्कुल शारदीय नवरात्रि की तरह ही करें। इन नौ 9 दिनों में मां दुर्गा के सभी स्वरूपों के साथ महाविद्याओं का पूजा करें। इसके साथ ही मां दुर्गा के बताशे और लौंग का भोग जरूर लगाएं और हो सके तो सोलह श्रृंगार भी करें।
आषाढ़ गुप्त नवरात्रि की तिथियां और मां दुर्गा के स्वरूपों की पूजा
पहला दिन : प्रतिपदा तिथि - घटस्थापना और मां शैलपुत्री की पूजा
दूसरा दिन : द्वितीया तिथि - मां ब्रह्मचारिणी पूजा
तीसरा दिन: तृतीया तिथि - मां चंद्रघंटा की पूजा
चौथा दिन: चतुर्थी तिथि - मां कूष्मांडा की पूजा
पांचवा दिन: पंचमी तिथि - मां स्कंदमाता की पूजा
छठा दिन : षष्ठी तिथि - मां कात्यायनी की पूजा
सातवां दिन: सप्तमी तिथि - मां कालरात्रि की पूजा
आठवां दिन: अष्टमी तिथि - मां महागौरी की पूजा
नौवां दिन: नवमी तिथि - मां सिद्धिदात्री की पूजा
10 वां दिन- नवरात्रि का पारण
गुप्त नवरात्रि में करें इन 10 महाविद्याओं की पूजा
1. देवी काली
2. तारा देवी
3. त्रिपुर सुंदरी देवी
4. देवी भुवनेश्वरी
5. देवी छिन्नमस्ता
6. त्रिपुर भैरवी देवी
7. धूमावती माता
8. बगलामुखी माता
9. मातंगी देवी
10. देवी कमला
आषाढ़ नवरात्रि में कैसे करें मां दुर्गा की पूजा
आषाढ़ गुप्त नवरात्रि की पूजा करने के लिए सबसे पहले स्नान करके घट स्थापना की जाती है। घट स्थापना के बाद ही पूजा प्रारंभ की जाती है। गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गा को बताशे का भोग लगाया जाता है। मां दुर्गा की पूजा करते समय श्रृंगार के सारे सामान चढ़ाना चाहिए। गुप्त नवरात्रि के समय दोनों वक्त पूजा और आरती करनी चाहिए।
पुराणों की मान्यता के अनुसार गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गा की 10 महाविद्याओं की पूजा की जाती है. वर्ष में 4 नवरात्रि आती हैं जिसमें दो प्रत्यक्ष और दो अप्रत्यक्ष होती हैं. बता दें कि अप्रत्यक्ष नवरात्रि को ही गुप्त नवरात्रि कहा जाता है. देवी दुर्गा शक्ति का साक्षात स्वरूप हैं. दुर्गा शक्ति में दमन का भाव भी जुड़ा है. यह दमन या अंत होता है. शत्रु रूपी दुर्गुण, दुर्जनता, दोष, रोग या विकारों का ये सभी जीवन में अड़चनें पैदा कर सुख-चैन छीन लेते हैं. यही कारण है कि देवी दुर्गा के कुछ खास और शक्तिशाली मंत्रों का देवी उपासना के विशेष काल में जाप शत्रु, रोग, दरिद्रता रूपी भय बाधा का नाश करने वाला माना गया है. सभी 'नवरात्र' शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तक किए जाने वाले पूजन, जाप और उपवास का प्रतीक है- 'नव शक्ति समायुक्तां नवरात्रं तदुच्यते'.
नवरात्रि में दस महाविद्या पूजा
पहला दिन- मां काली. गुप्त नवरात्रि के पहले दिन मां काली की पूजा के दौरान उत्तर दिशा की ओर मुंह करके काली हकीक माला से पूजा करनी है. इस दिन काली माता के साथ आप भगवान कृष्ण की पूजा करनी चाहिए. ऐसा करने से आपकी किस्मत चमक जाएगी. शनि के प्रकोप से भी छुटकारा मिल जाएगा. नवरात्रि में पहले दिन दिन मां काली को अर्पित होते हैं. वहीं बीच के तीन दिन मां लक्ष्मी को अर्पित होते हैं और अंत के तीन दिन मां सरस्वति को अर्पित होते हैं.
मां काली की पूजा में मंत्रों का उच्चारण करना है.
मंत्र- क्रीं ह्रीं काली ह्रीं क्रीं स्वाहा.
ऊँ क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा.
दूसरी महाविद्या, मां तारा- दूसरे दिन मां तारा की पूजा की जाती है. इस पूजा को बुद्धि और संतान के लिए किया जाता है. इस दिन एमसथिस्ट व नीले रंग की माला का जप करने हैं.
मंत्र- ऊँ ह्रीं स्त्रीं हूं फट.
तीसरी महाविद्या, मां त्रिपुरसुंदरी और मां शोडषी पूजा- अच्छे व्यक्तित्व व निखरे हुए रूप के लिए इस दिन मां त्रिपुरसुंदरी की पूजा की जाती है. इस दिन बुध ग्रह के लिए पूजा की जाती है. इस दिन रूद्राक्ष की माला का जप करना चाहिए.
मंत्र- ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीये नम:.
चौथी महाविद्या, मां भुवनेश्वरी पूजा- इस दिन मोक्ष और दान के लिए पूजा की जाती है. इस दिन विष्णु भगवान की पूजा करना काफी शुभ होगा. चंद्रमा ग्रह संबंधी परेशानी के लिए पूजा की जाती है.
मंत्र- ह्रीं भुवनेश्वरीय ह्रीं नम:.
ऊं ऐं ह्रीं श्रीं नम:.
पांचवी महाविद्या, मां छिन्नमस्ता- नवरात्रि के पांचवे दिन मां छिन्नमस्ता की पूजा होती है. इस दिन पूजा करने से शत्रुओं और रोगों का नाश होता है. इस दिन रूद्राक्ष माला का जप करना चाहिए. अगर किसी का वशीकरण करना है तो उस दौरान इस पूजा करना होता है. राहु से संबंधी किसी भी परेशानी से छुटकारा मिलता है. इस दिन मां को पलाश के फूल चढ़ाएं.
मंत्र- श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैररोचनिए हूं हूं फट स्वाहा.
छठी महाविद्या, मां त्रिपुर भैरवी पूजा- इस दिन नजर दोष व भूत प्रेत संबंधी परेशानी को दूर करने के लिए पूजा करनी होती है. मूंगे की माला से पूजा करें. मां के साथ बालभद्र की पूजा करना और भी शुभ होगा. इस दिन जन्मकुंडली में लगन में अगर कोई दोष है तो वो सभ दूर होता है.
मंत्र- ऊँ ह्रीं भैरवी क्लौं ह्रीं स्वाहा.
सातवीं महाविद्या, मां धूमावती पूजा- इस दिन पूजा करने से द्ररिद्रता का नाश होता है. इस दिन हकीक की माला का पूजा करें.
मंत्र- धूं धूं धूमावती दैव्ये स्वाहा.
आठवीं महाविद्या, मां बगलामुखी- मां बगलामुखी की पूजा करने से कोर्ट-कचहरी और नौकरी संबंधी परेशानी दूर हो जाती है. इस दिन पीले कपड़े पहन कर हल्दी माला का जप करना है. अगर आप की कुंडली में मंगल संबंधी कोई परेशानी है तो मा बगलामुखी की कृपा जल्द ठीक हो जाएगा.
मंत्र-ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं, पदम् स्तम्भय जिव्हा कीलय, शत्रु बुद्धिं विनाशाय ह्रलीं ऊँ स्वाहा.
नौवीं महाविद्या, मां मतांगी- मां मतांगी की पूजा धरती की ओर और मां कमला की पूजा आकाश की ओर मुंह करके पूजा करनी चाहिए. इस दिन पूजा करने से प्रेम संबंधी परेशानी का नाश होता है. बुद्धि संबंधी के लिये भी मां मातंगी पूजा की जाती है.
मंत्र- क्रीं ह्रीं मातंगी ह्रीं क्रीं स्वाहा.
दसवी महाविद्या, मां कमला- मां कमला की पूजा आकाश की ओर मुख करके पूजा करनी चाहिए. दरअसल गुप्त नवरात्रि के नौवें दिन दो देवियों की पूजा करनी होती है.
मंत्र- क्रीं ह्रीं कमला ह्रीं क्रीं स्वाहा
नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व का समापन पूर्णाहुति हवन एवं कन्याभोज कराकर किया जाना चाहिए. पूर्णाहुति हवन दुर्गा सप्तशती के मन्त्रों से किए जाने का विधान है किन्तु यदि यह संभव ना हो तो देवी के 'नवार्ण मंत्र', 'सिद्ध कुंजिका स्तोत्र' अथवा 'दुर्गाअष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र' से हवन संपन्न करना श्रेयस्कर रहता है.
पं अजय शुक्ल 9415009278
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