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2014 से लेकर 2016 यानी 3 वर्ष के बीच कुल 36,341 किसानों ने आत्महत्या की.

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) ने किसानों की आत्महत्या के संदर्भ में 2016 की रिपोर्ट जारी करी थी, 2014 से लेकर 2016 यानी 3 वर्ष के बीच कुल 36,341 किसानों ने आत्महत्या की. 2015 के बाद सरकार ने किसानों की आत्महत्या के संदर्भ में जारी होने वाली रिपोर्ट पर रोक लगा दी थी.
वर्ष 2014 में 12,360, 2015 में 12,602 और 2016 में 11,379 किसानों ने आत्महत्या की है. एनसीआरबी की 2016 की 'एक्सिडेंटल डेथ एंड सुसाइड' रिपोर्ट में सामने आया है कि हर महीने 948 या फिर कहें तो हर दिन 31 किसानों ने आत्महत्या की है.
इतनी बड़ी कृषि आबादी का मरना हमारी सरकारों की आर्थिक नीतियों पर प्रश्न उठाता है.
किसानों के सामने इस समय कई महत्वपूर्ण समस्याएं हैं. पहला, उनके ऊपर कर्ज का भारी दबाव है. दूसरा, उनकी फसल लागत में कमी नहीं आ रही. तीसरा, उनकी फसल का उन्हें वाजिब दाम नहीं मिल रहा है.
किसानों की आर्थिक हालत को बेहतर करने के मकसद से 18 नवंबर 2004 को केंद्र सरकार ने एम.एस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया था. इस आयोग ने पांच रिपोर्ट सौंपी थीं. इस रिपोर्ट पर आज तक हमारी संसद में चर्चा तक नहीं हुई है. यह एकमात्र तथ्य बताता है कि हमारी सरकारें और हमारे प्रतिनिधि किसानों को लेकर कितना सोचते हैं. आज भी किसान स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को वर्ष 2007 से लागू करने की मांग करते हैं.
देश की लगभग आधी आबादी कृषि पर निर्भर है. यह स्थिति बताती है कि हमारे देश में कृषि की जानबूझ कर सरकारों द्वारा अनदेखी की गई है.
जब किसान अपनी फसल उगाता है तो उसे उसके दाम तय करने का भी अधिकार मिलना चाहिये, केंद्र सरकार को चाहिये कि देश में सभी किसानों का बीमा कराये एवं स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराये !
किसानों के बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ने के लिये विशेष छात्रवृत्ति योजना चालू की जाये. इस सब के साथ ही पूरे देश में एक साथ किसानों का सभी तरह का कर्ज माफ़ किया जाये.
लेखक गौरव कुमार दीक्षित सामाजिक कार्यकर्ता




