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IPC Section 498A, जानें- धारा 498A क्या है, कब और क्यों होती है उपयोग, इसके दुरुपयोग का जवाब कैसे दें?

भारत देश एक लोकतांत्रिक देश है। हमारे देश में संविधान को सर्वोपरि माना गया है। हमारे देश में कानून सबके लिए बराबर है चाहे वो आम नागरिक हो या वो किसी पद पर बैठा हुआ व्यक्ति। लेकिन कई बार ऐसा होता कभी-कभी कानून का दुरूपयोग भी होता है। 'स्पेशल कवरेज न्यूज़' आपके लिए ऐसी ही एक सीरीज लेकर आया है जिसमें आप कानून की सभी धाराओं के बारे में जान पाएंगे। साथ में ये भी बताया जाएगा कि इस धारा का उपयोग कब होता और क्यों होता है, और और इससे कैसे बचा जाए। साथ ही आपको ये भी बताया जाएगा कि इस कानून के दुरूपयोग से कैसे बचा जाए।
जानिये- क्या होती है धारा 498-A
भारत में दहेज़ हत्या एवं प्रताड़ना से महिलाओं को बचाने के लिए 1983 में भारतीय दंड संहिता में धारा 498A को जोड़ा गया। इसका उद्देश्य दहेज जैसी सामाजिक बुराई एवं ससुराल में होने वाले अत्याचारों से महिलाओं को संरक्षण देना था। इस धारा के अंतर्गत महिला की केवल एक शिकायत पर बिना किसी अन्य विवेचना के पुलिस पति सहित अन्य ससुराल वालों पर कार्रवाई कर देती है। कुछ प्रकरणों में यह धारा महिलाओं के लिए ससुरालों वालों को ब्लैकमेल करने का भी जरिया साबित हुई।
किसी भी परिवार में महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों में से दहेज़ न देने पर किसी महिला की हत्या भी एक तरह की हिंसा है। भारतीय कानून में दहेज़ के लिए की जाने वाली हिंसा को भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 498-A, में आपराधिक गुनाह माना गया है, और इस अपराध के लिए सजा का प्रावधान भी दिया गया है। इस धारा को आम ज़बान में 'दहेज के लिए प्रताड़ना' के नाम से भी जाना जाता है।
धारा 498-A के तहत शिकायत कब की जा सकती है
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के सेक्शन 468, के अनुसार भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 498-A, के तहत अपराध का आरोप लगाते हुए शिकायत कथित घटना के 3 साल के भीतर पुलिस थाने में दर्ज की जा सकती है। हालाँकि, भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता के सेक्शन 473, के अनुसार न्यायालय को ऐसे किसी अपराध में शिकायत के दर्ज होने की समय सीमा समाप्त होने के बाद भी विचार करने का अधिकार होता है, यदि न्यायालय इस बात से संतुस्ट है, कि न्याय के हित में ऐसा करना आवश्यक है।
अगर किसी महिला को दहेज के लिए मानसिक, शारीरिक या फिर अन्य तरह से प्रताड़ित किया जाता है तो महिला की शिकायत पर इस धारा के तहत केस दर्ज किया जाता है।
इसे गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा गया है।
साथ ही यह गैर जमानती अपराध है।
दहेज के लिए ससुराल में प्रताड़ित करने वाले तमाम लोगों को आरोपी बनाया जा सकता है।
दहेज प्रताड़ना और ससुराल में महिलाओं पर अत्याचार के दूसरे मामलों से निपटने के लिए कानून में सख्त प्रावधान किए गए हैं। महिलाओं को उसके ससुराल में सुरक्षित वातावरण मिले, कानून में इसका पुख्ता प्रबंध है।
ये है सजा का प्रावधान
इस मामले में दोषी पाए जाने पर अधिकतम 3 साल तक कैद की सजा का प्रावधान है। वहीं अगर शादीशुदा महिला की मौत संदिग्ध परिस्थिति में होती है और यह मौत शादी के 7 साल के दौरान हुआ हो तो पुलिस आईपीसी की धारा 304-बी के तहत केस दर्ज करती है।
1961 में बना दहेज निरोधक कानून रिफॉर्मेटिव कानून है। दहेज निरोधक कानून की धारा 8 कहता है कि दहेज देना और लेना संज्ञेय अपराध है। दहेज देने के मामले में धारा-3 के तहत मामला दर्ज हो सकता है और इस धारा के तहत जुर्म साबित होने पर कम से कम 5 साल कैद की सजा का प्रावधान है। धारा-4 के मुताबिक, दहेज की मांग करना जुर्म है। शादी से पहले अगर लड़का पक्ष दहेज की मांग करता है, तब भी इस धारा के तहत केस दर्ज हो सकता है।
इस कानून का दुरूपयोग भी होता है
अदालतों में आज भी 498अ के कई मुकदमे लंबित हैं और कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जिनमें यह माना गया कि इस धारा का महिला पक्ष द्वारा दुरुपयोग हुआ है। यह कानून आपराधिक है परन्तु इसका स्वरूप पारिवारिक है। पारिवारिक किसी भी झगड़े को दहेज़ प्रताड़ना के विवाद के रूप में परिवर्तित करना अत्यंत ही सरल है। एक विवाहिता की केवल एक शिकायत पर यह मामला दर्ज़ होता है। परिवार के सभी सदस्यों को अभियुक्त के रूप में नामज़द कर दिया जाता है और सभी अभियुक्तों को जेल में भेज दिया जाता है क्योंकि यह एक गैर ज़मानती, संज्ञेय और असंयोजनीय अपराध है।
कई पुरुष इस धारा में मुकदमे लड़ रहे हैं और अदालतों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन उन्हें राहत नहीं मिल पा रही है। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी कुछ प्रकरणों में धारा 498अ के दुरुपयोग की बात कही है। सुशील कुमार शर्मा बनाम भारत संघ और अन्य 2005 के मुकदमे में सर्वोच्च अदालत ने 498अ के दुरुपयोग को लीगल टेरेरिज्म भी कहा है।
धारा 498-A से बचाव के क्या तरीके हैं
भारत देश में कई पुरुष धारा 498-A, के झूठे मुक़दमे को लड़ रहे हैं, और खुद के बचाव के लिए न्यायालयों के चक्कर भी काट रहे हैं, किन्तु उन्हें राहत नहीं मिल पा रही है। इस प्रकार के कुछ झूठे मामलों को ध्यान में रखते हुए माननीय सर्वोच्छ न्यायालय ने भी कुछ प्रकरणों में धारा 498-A के दुरुपयोग की बात पर विचार किया है। "सुशील कुमार शर्मा बनाम भारत संघ और अन्य, 2005" के मुकदमे में सर्वोच्छ न्यायालय ने 498-ए, के दुरुपयोग को "लीगल टेरेरिज्म" या क़ानूनी आतंकवाद भी कहा है।
भारत सरकार ने भी फर्जी मुकदमों की बढ़ती संख्या देखते हुए धारा 498-A, में संशोधन की आवश्यकता पर विचार किया है, लेकिन फिलहाल इस दिशा में अधिक ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं, हालांकि हाल ही में भारत की सर्वोच्छ न्यायालय ने इस धारा के अंतर्गत सीधे गिरफ्तारी या बिना वारंट के गिरफ्तारी पर रोक लगाई है। इस के साथ ही सर्वोच्छ न्यायालय ने दहेज प्रताड़ना निरोधक कानून की धारा 498-A, के बहुत ज्यादा हो रहे दुरुपयोग को रोकने के लिए व्यापक दिशानिर्देश भी जारी किए। इन नए दिशानिर्देशों के अनुसार अब दहेज प्रताड़ना के मामले पीड़ित व्यक्ति या पीड़ित व्यक्ति का कोई रिश्तेदार अपराध की जानकारी देने के लिए पुलिस के पास न जाकर एक मोहल्ला कमेटी के पास जाएंगे, उसके बाद वह मोहल्ला कमेटी अपनी जांच पड़ताल के बाद एक रिपोर्ट तैयार करेगी, फिर यह रिपोर्ट पुलिस के पास भेजी जाएगी। कमेटी की रिपोर्ट के बाद ही पुलिस यह निर्णय करेगी की इस मामले में आगे की कार्यवाही करना आवश्यक है, अथवा नहीं।
अभी हाल ही में जस्टिस ए. के. गोयल और जस्टिस यू. यू. ललित की पीठ ने उत्तर प्रदेश के एक मामले में दिए फैसले में कहा कि धारा 498-A, को कानून में रखने का (1983 का संशोधन) केवल उद्देश्य पत्नी को उसके पति या उसके परिजनों के हाथों होने वाले मानसिक और शारीरिक अत्याचार से बचाना था। वह भी तब जब ऐसी प्रताड़ना के कारण पत्नी के द्वारा आत्महत्या करने की आशंका हो।
धारा 498-A, के मामले में आरोप के तथ्य अलग अलग हो सकते हैं। इन आरोपों से बचने के लिए निर्दोष व्यक्ति को अपने वकील के माध्यम से सभी सबूत सहित खुद पर लगे सभी आरोपों को झूठा साबित करना होगा। जब तक कि इस भारतीय कानून में पुरुषों के पक्ष को देखते हुए संशोधन नहीं किया जाता, तब तक कानून व्यवस्था की इस लंबी प्रक्रिया के तहत अपना पक्ष मज़बूती से रखें, और धैर्य रखते हुए खुद को निर्दोष साबित करें।
वकील क्यों जरुरी
भारतीय दंड संहिता में धारा 498, 'ए' का अपराध एक संज्ञेय अपराध है, जिसमें कारावास की सजा का प्रावधान भी दिया गया है, जिसकी समय सीमा को 3 बर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। इस अपराध में कारावास के दंड के साथ - साथ आर्थिक दंड का भी प्रावधान दिया गया है। ऐसे अपराध से किसी भी आरोपी का बच निकलना बहुत ही मुश्किल हो जाता है, इसमें आरोपी को निर्दोष साबित कर पाना बहुत ही कठिन हो जाता है। ऐसी विकट परिस्तिथि से निपटने के लिए केवल एक अपराधिक वकील ही ऐसा व्यक्ति हो सकता है, जो किसी भी आरोपी को बचाने के लिए उचित रूप से लाभकारी सिद्ध हो सकता है, और अगर वह वकील अपने क्षेत्र में निपुण वकील है, तो वह आरोपी को उसके आरोप से मुक्त भी करा सकता है। और हत्या जैसे बड़े मामलों में ऐसे किसी वकील को नियुक्त करना चाहिए जो कि ऐसे मामलों में पहले से ही पारंगत हो, और धारा 498, 'ए' जैसे मामलों को उचित तरीके से सुलझा सकता हो। जिससे आपके केस को जीतने के अवसर और भी बढ़ सकते हैं।




