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पिता की संपत्ति पर बेटी का कितना हक? हर बेटी के काम की हैं ये 10 कानूनी सलाह

Shiv Kumar Mishra
24 Jan 2021 12:17 PM IST
पिता की संपत्ति पर बेटी का कितना हक? हर बेटी के काम की हैं ये 10 कानूनी सलाह
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सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल एक अहम फैसले में कहा था कि अपने पिता की पैतृक संपत्ति (Hindu Undivided Family property) पर बेटी का भी उतना ही अधिकार होगा जितना कि बेटे का होता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बेटी को भी अपने पिता की संपत्ति में बराबरी का अधिकार है, भले ही हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 (amendment in the Hindu Succession Act, 2005) के लागू होने के पहले ही उसके पिता की मृत्यु क्यों न हो गई हो। आइए जानते हैं 10 ऐसी कानूनी सलाह के बारे में जो हर बेटी के काम की हैं..

1-पैतृक संपत्ति पर अधिकार

हिंदू लॉ में संपत्ति को दो श्रेणियों में बांटा गया है- पैतृक और स्वअर्जित। पैतृक संपत्ति में चार पीढ़ी पहले तक पुरुषों की वैसी अर्जित संपत्तियां आती हैं जिनका कभी बंटवारा नहीं हुआ हो। ऐसी संपत्तियों पर संतानों का, वह चाहे बेटा हो या बेटी, जन्मसिद्ध अधिकार होता है। 2005 से पहले ऐसी संपत्तियों पर सिर्फ बेटों को अधिकार होता था। लेकिन, संशोधन के बाद पिता ऐसी संपत्तियों का बंटवारा मनमर्जी से नहीं कर सकता। यानी, वह बेटी को हिस्सा देने से इनकार नहीं कर सकता। कानून बेटी के जन्म लेते ही, उसका पैतृक संपत्ति पर अधिकार हो जाता है।

2-पिता की स्वअर्जित संपत्ति

स्वअर्जित संपत्ति के मामले में बेटी का पक्ष कमजोर होता है। अगर पिता ने अपने पैसे से जमीन खरीदी है, मकान बनवाया है या खरीदा है तो वह जिसे चाहे यह संपत्ति दे सकता है। स्वअर्जित संपत्ति को अपनी मर्जी से किसी को भी देना पिता का कानूनी अधिकार है। यानी, अगर पिता ने बेटी को खुद की संपत्ति में हिस्सा देने से इनकार कर दिया तो बेटी कुछ नहीं कर सकती है।

3-अगर वसीयत लिखे बिना पिता की मौत हो जाती है

अगर वसीयत लिखने से पहले पिता की मौत हो जाती है तो सभी कानूनी उत्तराधिकारियों को उनकी संपत्ति पर समान अधिकार होगा। हिंदू उत्तराधिकार कानून में पुरुष उत्तराधिकारियों का चार श्रेणियों में वर्गीकरण किया गया है और पिता की संपत्ति पर पहला हक पहली श्रेणी के उत्तराधिकारियों का होता है। इनमें विधवा, बेटियां और बेटों के साथ-साथ अन्य लोग आते हैं। हरेक उत्तराधिकारी का संपत्ति पर समान अधिकार होता है। इसका मतलब है कि बेटी के रूप में आपको अपने पिता की संपत्ति पर पूरा हक है।

4-अगर बेटी विवाहित हो

2005 से पहले हिंदू उत्तराधिकार कानून में बेटियां सिर्फ हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) की सदस्य मानी जाती थीं, हमवारिस यानी समान उत्तराधिकारी नहीं। हमवारिस या समान उत्तराधिकारी वे होते/होती हैं जिनका अपने से पहले की चार पीढ़ियों की अविभाजित संपत्तियों पर हक होता है। हालांकि, बेटी का विवाह हो जाने पर उसे हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) का भी हिस्सा नहीं माना जाता है। 2005 के संशोधन के बाद बेटी को हमवारिस यानी समान उत्तराधिकारी माना गया है। अब बेटी के विवाह से पिता की संपत्ति पर उसके अधिकार में कोई बदलाव नहीं आता है। यानी, विवाह के बाद भी बेटी का पिता की संपत्ति पर अधिकार रहता है।

5-अगर 2005 से पहले बेटी पैदा हुई हो, लेकिन पिता की मृत्यु हो गई हो

हिंदू उत्तराधिकार कानून में हुआ संशोधन 9 सितंबर, 2005 से लागू हुआ। कानून कहता है कि कोई फर्क नहीं पड़ता है कि बेटी का जन्म इस तारीख से पहले हुआ है या बाद में, उसका पिता की संपत्ति में अपने भाई के बराबर ही हिस्सा होगा। वह संपत्ति चाहे पैतृक हो या फिर पिता की स्वअर्जित। दूसरी तरफ, बेटी तभी अपने पिता की संपत्ति में अपनी हिस्सेदारी का दावा कर सकती है जब पिता 9 सितंबर, 2005 को जिंदा रहे हों। अगर पिता की मृत्यु इस तारीख से पहले हो गई हो तो बेटी का पैतृक संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होगा और पिता की स्वअर्जित संपत्ति का बंटवारा उनकी इच्छा के अनुरूप ही होगा।

6-क्या भाई के साथ जॉइंट होम लोन लेना चाहिए

कई बार ऐसी स्थिति आ जाती है, जब भाई और बहन मिलकर मकान खरीदने की योजना बनाते हैं। क्या भाई-बहन के साथ संयुक्त नाम से मकान खरीदना चाहिए? जानकारों का कहना है कि अपार्टमेंट खरीदने का अंतिम फैसला करने से पहले उन्हें मकान के वित्तीय पहलुओं का ध्यान रखने की जरूरत है। उन्हें ऐसा कदम उठाना चाहिए जिससे बाद में दोनों को फायदा हो। भाई-बहन मिलकर होम लोन के लिए आवेदन कर सकते हैं। इसके लिए जरूरी है कि मकान के मालिकाना हक़ वाले दस्तावेज में दोनों के नाम हों।

7-पति की सैलरी जानने का पत्‍नी को है कानूनी अधिकार

शादीशुदा पत्नी होने के नाते हर जीवनसाथी को अपने पति के वेतन के बारे में जानने का अधिकार है। विशेषकर गुजारा भत्ता पाने के उद्देश्य के लिए वो ऐसी जानकारी ले सकती हैं। अगर पत्नी चाहे तो यह जानकारी आरटीआई के जरिए भी हासिल कर सकती है। मध्‍य प्रदेश हाई कोर्ट के 2018 के आदेश के अनुसार, पत्‍नी के तौर पर व‍िवाह‍ित मह‍िला को पति की सैलरी जानने का पूरा हक है।

9-बेटियों को अनुकंपा पर नौकरी पाने का बराबर का हक

बिलासपुर हाई कोर्ट ने पिता पर आश्रित विवाहित बेटियों को कोल इंडिया में अनुकंपा पर नौकरी पाने का रास्ता खोल दिया था। कोर्ट ने महिला की याचिका पर कोल इंडिया को आदेश दिया कि वो मृतक पिता की जगह पर विवाहित बेटी को उचित नौकरी दे। छत्तीसगढ़ के उच्च न्यायलय ने यह आदेश पारित करते हुए कहा कि किसी महिला के साथ विवाहित और अविवाहित के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि पुत्री अविवाहित हो या अविवाहित, वह पिता पर आश्रित होती है। मद्रास हाईकोर्ट ने 2015 के अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि अगर नौकरी रहते पिता की मौत हो जाए तो विवाहित बेटी भी अनुकंपा के आधार पर नौकरी पाने की अधिकारी होती है। हालांकि, कोर्ट ने कहा था कि महिला को पिता की जगह नौकरी पाने के लिए अपने बहन-भाइयों से अनापत्ति प्रामण पत्र (No-Objection Certificate) देना होगा।

10-पत्नी-बेटी की सहमति के बिना बेटे को गिफ्ट दी जा सकती है संपत्ति

एक पिता ने अपनी अर्जित संपत्ति अपनी पत्ती और बेटियों की जानकारी के बिना अपने बेटे को गिफ्ट कर दी। बेटियों की शादी हो गई और पत्नी को घर से निकाल दिया गया। ऐसी स्थिति में मां और बेटियों के क्या अधिकार हैं। जानकारों का कहना है कि खुद कमाई गई संपत्ति को गिफ्ट करने के लिए किसी की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है। लेकिन इस मामले में कानूनी वारिस होने के नाते मां और बेटियां इस गिफ्ट पर सवाल उठा सकती हैं। इसके अलावा उस व्यक्ति की पत्नी गुजारा भत्ता की मांग कर सकती हैं।

पति से जुड़े हक

संपत्ति पर हक शादी के बाद पति की संपत्ति में महिला का मालिकाना हक नहीं होता लेकिन पति की हैसियत के हिसाब से महिला को गुजारा भत्ता दिया जाता है। महिला को यह अधिकार है कि उसका भरण-पोषण उसका पति करे और पति की जो हैसियत है, उस हिसाब से भरण पोषण होना चाहिए। वैवाहिक विवादों से संबंधित मामलों में कई कानूनी प्रावधान हैं, जिनके जरिए पत्नी गुजारा भत्ता मांग सकती है। कानूनी जानकार बताते हैं कि सीआरपीसी, हिंदू मैरिज ऐक्ट, हिंदू अडॉप्शन ऐंड मेंटिनेंस ऐक्ट और घरेलू हिंसा कानून के तहत गुजारे भत्ते की मांग की जा सकती है।

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