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यूपी बनेगा मोदी का वाटरलू!

यूपी बनेगा मोदी का वाटरलू!
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यह तो सभी जानते हैं कि 2019 का चुनावी महासंग्राम यूपी के मैदान में ही लड़ा जाना है और यहीं की जीत-हार से यह तय भी होगा कि दिल्ली के तख्त पर इस बार किसकी ताजपोशी होनी है। योगी आदित्यनाथ को सेनापति यानी यूपी का मुख्यमंत्री बनाकर मोदी इस संग्राम में उतर तो रहे हैं लेकिन उनके लिये इस बार यूपी लगता है 'वाटरलू' साबित होने वाला है, जहां शिकस्त उनका बड़ी शिद्दत से इंतजार कर रही है।

दरअसल, योगी आदित्यनाथ इस वक्त जनता से तकरीबन कटे हुए ही हैं और लगता है कि केवल वही देख-सुन पा रहे हैं, जो उन्हें दिखाया-सुनाया जा रहा है। हालांकि योगी की नीयत में खोट नहीं है और वह दिन-रात काम करके यूपी में बदलाव चाहते भी हैं। लेकिन इसके उलट हो यह रहा है कि उनके द्वारा बनाई गई हर निगरानी व्यवस्था अब पूरी तरह से दम तोड़ चुकी है, नौकरशाही बेलगाम है, भ्रष्टाचार पहले ही की तरह हर विभाग में फल-फूल रहा है और इन्हीं कारणों से जनता के बीच सरकार को लेकर गहरा आक्रोश भी है। क्योंकि जिस तरह योगी आदित्यनाथ की सरकार काम करने, विकास करने या सब कुछ सुधार देने के नाम पर हवाई किले बांधकर खुद ही अपनी पीठ थपथपाने में लगी है, उससे लगता तो नहीं कि योगी की बजाय मोदी का नाम लेकर भी चुनाव लड़ने में जनता इस बार झांसे में आ जायेगी।

दिलचस्प बात यह है कि अभी कुछ माह पहले ही जनसुनवाई एप और अपने कुछ शुभचिंतकों की मदद से मुख्यमंत्री तक मैंने अपनी एक व्यथा पहुंचाई थी कि डेढ़ दो बरस से हमारी फ़ाइल रोक कर किस तरह अथॉरिटी के अफसर आपके राज में बेखौफ होकर भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। महीनों की कड़ी मशक्कत और शीर्ष पदों पर बैठे कुछ शुभचिंतकों की सहायता से मेरा वह काम तो हो गया लेकिन न तो उसमें इतने देरी करने वाले किसी अफसर पर कार्यवाही हुई और न ही सबंधित विभाग ने इसके लिए किसी को दोषी ठहराया। बस ट्रांसफर करके और वह भी अच्छी जगह व बढ़िया पद पर ट्रांसफर करके मामला रफा दफा कर दिया गया।
यह तो खैर मैं फिर भी गनीमत ही मानता हूँ क्योंकि भ्रष्टाचार की मेरे द्वारा की गई ऐसी ही एक अलग शिकायत में लखनऊ का बिजली विभाग बिना किसी खौफ के लगातार एक बरस से न तो फ़ाइल आगे बढ़ा रहा है और न ही वह शासन को इस देरी का कोई कारण बताने लायक ही समझ रहा है।
लिहाजा इसमें भी मैंने इस साल के शुरू से ही मुख्यमंत्री तक काफी शिकायतें मसलन जनसुनवाई में शिकायत संख्या 40015718040840 व 40015718040840 आदि पहुंचाई हैं।
लेकिन हर बार मेरी शिकायत एक ही जवाब के बाद निस्तारित कर दी जा रही है कि फ़ाइल पर अभी फलाने अभियंता ने अभी तक स्वीकृति प्रदान नहीं की है। क्यों नहीं की है या हमसे फ़ाइल में क्या और कागज चाहिए, यह बताने की जहमत भला कोई अफसर योगी सरकार में क्यों उठाये और क्यों इतनी देर हो रही है अथवा कब तक यह फ़ाइल हो जाएगी, यह सवाल पूछने वाले भले ही पूछते रहें लेकिन अफसर इसका जवाब देना जरूरी नहीं समझते। भले ही खुद मुख्यमंत्री कार्यालय ही क्यों न उनसे लाख यह सवाल पूछता रहे।
कुल मिलाकर यह कि अपनी पीठ खुद ही थपथपाकर वाह वाह करने वाले जिस कमजोर मुख्यमंत्री के नेतृत्व में मोदी जिस मैदान में उतर कर जीत हासिल करने के मंसूबे पाले बैठे हैं, जनता उससे अब बुरी तरह से नाखुश दिखाई दे रही है।
लोगों के बीच अब यह चर्चा बेहद आम है कि इससे अच्छी सरकार तो मायावती और अखिलेश की ही थी, जहां मुख्यमंत्री जनता के दुख दर्द से न सिर्फ वाकिफ थे बल्कि उनके अफसर भी इस तरह उनकी नाक के नीचे ही बैठकर उन्हें उनकी छवि की झूठी बढ़ाई करके जनता को सता नहीं पा रहे थे।
मैंने तो खैर योगी सरकार से न तो कोई नियम विरुद्ध काम करने का आवेदन किया है और न ही मेरे इस काम में कोई गलत अनुरोध किया गया है। मैं तो सिर्फ अपनी एक प्रोजेक्ट साइट के लिए 500 किलोवाट का लोड सेंक्शन करने का अनुरोध कर रहा हूँ ताकि अपने खर्चे से मैं वहां ट्रांसफार्मर आदि खरीद कर उस कॉलोनी को रोशन कर सकूं।
फ़ाइल मेरी भले ही बिजली विभाग के अफसर न बढ़ा रहे हों लेकिन एक बिचौलिया बीच में डालकर मुझसे भारी घूस देने का दबाव जरूर बना रहे हैं। मुझे पता है कि मैं जिस दिन उनकी मुंहमांगी घूस दे दूंगा, उसके एक हफ्ते के भीतर लोड सेंक्शन हो जाएगा।
मगर अफसोस होता है यह देखकर कि योगी राज में घूस का ईंधन डाले बिना फ़ाइल चलवाने का फिलहाल तो मुझे कोई रास्ता अभी तक नजर नहीं आ रहा भले ही उन्होंने दिखावे के लिए जनसुनवाई जैसे ढेरों तंत्र क्यों न बना रखे हों।
और यही इस सरकार में वह छेद भी है, जिसके कारण योगी आदित्यनाथ 2019 में मोदी की नाव भी ले डूबेंगे। बाकी अपने मुंह मियां मिठ्ठू बनकर वह अभी भी इस कड़वी हकीकत या आसन्न पराजय को नहीं भांप पा रहे हैं तो किया भी क्या जा सकता है?
(लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार है, यह उनके निजी विचार है)
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