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हिन्दुओं ने अपनी सुरक्षा के लिए अपनाया ये तरीका

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4 Feb 2016 2:41 AM GMT
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गाजियाबाद के डासना में एक प्रसिद्ध देवी मंदिर है। मंदिर के प्रवेशद्वार पर टंगे बोर्ड को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। बोर्ड पर साफ लिखा है, ‘मंदिर में मुसलमानों का प्रवेश वर्जित है।’ मंदिर के अंदर एक किशोर लगभग दस साल के बच्चे को बुरी तरह पीट रहा है। बच्चा बुरी तरह रो रहा है, खुद को छोड़ने की भीख मांग रहा है। ये देख मंदिर का पुजारी हंस रहा है। जैसे ही वह किशोर छड़ी उठाने के लिए जाता है, बच्चा भागता है। किशोर उसे पकड़ने के लिए दौड़ता है पर बच्चा मंदिर परिसर से भाग निकलता है।

पुजारी से इस मारपीट के बारे में पूछने पर पता चलता है कि वह बच्चा मुस्लिम था और मंदिर के तालाब से पानी लेने आया था। इस तालाब के पानी को पवित्र समझा जाता है और उसका इस्तेमाल औषधि के तौर पर भी किया जाता है। किशोर के साथ मंदिर के महंत स्वामी नरसिंहानंद महाराज के पास जाते वक्त पुजारी कहता है, ‘मुझे समझ में नहीं आता कि जब यहां उनका (मुस्लिमों) प्रवेश वर्जित है तो वे आते ही क्यों हैं? ये बात उनकी समझ में क्यों नहीं आती।’


नरसिंहानंद, जो स्वामीजी के नाम से प्रसिद्ध हैं, किशोर उनके पैर छूने झुकता है और स्वामीजी गर्व से उसकी पीठ को थपथपाते हुए ‘आ मेरे शेर’ कहकर शाबासी देते हैं। इस किशोर का नाम प्रमोद है और वह मूक-बधिर है। वह बचपन से इस मंदिर में आ रहा है और अब मंदिर परिसर की निगरानी का काम करता है। राष्ट्रीय स्तर के जूडो खिलाड़ी प्रमोद ने हाल ही में गोवा में आयोजित एक प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता है। उसके लिए स्वामीजी किसी भगवान से कम नहीं हैं। वही प्रमोद का सारा खर्च उठाते हैं और उन्होंने उसका दाखिला मूक-बधिर बच्चों के स्कूल में भी कराया हुआ है।

उस युवक के अंदर कट्टरपंथ की भावना इस कदर भर दी गई है कि वह किसी मुस्लिम को देखकर ही अपना आपा खो बैठता है। वास्तव में, उसका जूडो सीखना इस्लामिक जिहादियों से लड़ने का ही प्रशिक्षण था।

इन सब बातों से प्रमोद का भविष्य और करिअर उम्मीदों भरा लगता है पर कट्टरपंथ की जो शिक्षा उसे व उसके जैसे हजारों और बच्चों को स्वामीजी द्वारा दी जा रही है, उसके बाद ऐसा सोचना ही बेमानी हो जाता है। प्रमोद के अंदर कट्टरपंथ की भावना इस कदर भर दी गई है कि वह किसी मुस्लिम को देखकर ही अपना आपा खो बैठता है। वास्तव में, उसका जूडो सीखना इस्लामिक जिहादियों से लड़ने का ही प्रशिक्षण था। वह सांकेतिक भाषा में कहता है, ‘अगर मैंने दोबारा उन्हें (मुस्लिमों को) यहां देखा तो बंदूक से उड़ा दूंगा।’

सेना के प्रशिक्षण सरीखी यह ट्रेनिंग सात से आठ साल के मासूमों तक को भी दी जा रही है। स्वामीजी, उनके अनुयायियों और सहयोगियों ने इस तरह की ट्रेनिंग देने के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ऐसे कई प्रशिक्षण केंद्र खोले हुए हैं, जिसे सांप्रदायिक तनाव के लिहाज से देश के सबसे संवेदनशील इलाकों में गिना जाता है। फोन पर स्वामीजी किसी से तेज आवाज में बात करते हुए कहते हैं, ‘मुसलमानों और हिंदुओं के बीच युद्ध में पश्चिमी उत्तर प्रदेश ही युद्धस्थली होगा।’

रोचक यह भी है कि स्वामीजी उर्फ दीपक त्यागी कभी समाजवादी पार्टी (सपा) के यूथ विंग के प्रमुख सदस्य रह चुके हैं, उनके कई मुस्लिम दोस्त भी हुआ करते थे। हालांकि कुछ निजी वजहों के कारण उन्होंने ‘इस्लामिक जिहाद’ से लड़ने के लिए सपा छोड़कर कट्टरपंथी हिंदू संगठनों का हाथ थाम लिया।


1995 में मॉस्को से एमटेक करके आए स्वामीजी का मानना है कि इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) 2020 तक भारत पर आक्रमण करेगा और इसलिए इस्लामिक जिहाद से लड़ने के लिए हिंदुओं को प्रशिक्षित करना जरूरी है। मुसलमानों को गालियां देते हुए स्वामीजी ‘तहलका’ को बताते हैं, ‘देश में मौजूद हर एक मुसलमान उस वक्त आईएस का समर्थन करेगा इसलिए हिंदुओं का एक होना जरूरी है। हमें इन राक्षसों से अपने देश, अपनी बहन-बेटियों को बचाना है। अगर हम अब भी एक नहीं हुए तो बहुत देर हो जाएगी।’



स्वामीजी और उन्हीं के जैसी सोच रखने वाले दूसरे लोगों ने पश्चिमी यूपी में हिंदुओं की भलाई के नाम पर ‘हिंदू स्वाभिमान संगठन’ बनाया है जिसका मकसद मुस्लिमों से लड़ना है। यह संगठन ‘सैफरन कॉरिडोर’ कहे जाने वाले पूरे पश्चिमी यूपी में गाजियाबाद से लेकर सहारनपुर तक सक्रिय है। हिंदू स्वाभिमान संगठन के सदस्य इस्लामिक जिहाद के फैलने से पहले इस संगठन की शाखाएं पूरे देश में स्थापित करने की चाहत रखते हैं।

अनिल यादव, इसके महासचिव हैं और पड़ोस के बम्हेटा गांव के रहने वाले हैं। यादव इस प्रशिक्षण के लिए संगठन में लड़कों की भर्ती करने में स्वामीजी की मदद करते हैं। यादव राज्य-स्तरीय पहलवान रहे हैं और अब अपने अखाड़े में सैकड़ों युवाओं को कुश्ती के गुर सिखाते हैं। बम्हेटा गांव कुश्ती की परंपरा के लिए जाना जाता है जिसने देश को कई अंतर्राष्ट्रीय स्तर के पहलवान दिए हैं, जैसे- जगदीश पहलवान, विजयपाल पहलवान, सत्तन पहलवान लेकिन अब यह हिंदू कट्टरपंथी पैदा करने की जगह बन गया है।

हिंदुओं की भलाई के नाम पर ‘हिंदू स्वाभिमान संगठन’ बनाया गया है जिसका मकसद मुस्लिमों से लड़ना है। यह ‘सैफरन कॉरिडोर’ कहे जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गाजियाबाद से लेकर सहारनपुर तक सक्रिय ह॥

इन पहलवानों को एक योजनाबद्ध तरीके से कट्टरपंथ की शिक्षा के जरिये ‘तैयार’ करने के खतरे का एहसास तब होता है जब यादव कहते हैं कि इन पहलवानों को तैयार करने का काम ‘बेकाबू सांड’ को संभालने जैसा है। वे कहते हैं, ‘हम इन्हें कड़े अनुशासन में रखते हैं, दिन भर मेहनत करवाते हैं। अगर इन्हें सड़कों पर खुला छोड़ दिया जाए तो बड़ा हंगामा कर सकते हैं क्योंकि इनमें से हर कोई एक समय पर दस लोगों को आसानी से संभालने की कूवत रखता है।’ ऐसे हाल में सांप्रदायिक तनाव के समय ये लोग क्या कर सकते हैं, इसकी सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है।

हिंदूवादी सेना

ये हिंदू कट्टरपंथी खूंखार रणबीर सेना और सलवा जुडूम की तरह ही हजारों युवकों की एक निजी सेना बना रहे हैं। प्रशिक्षण के दौरान इन युवकों को तलवारबाजी, धनुष चलाना, मार्शल आर्ट्स और यहां तक कि पिस्तौल, राइफल व बंदूक चलाना भी सिखाया जा रहा है। जब बच्चों को हथियार चलाने के प्रशिक्षण के बारे में स्वामीजी से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ये सब ओलंपिक की तैयारी हो रही है। वो इसे सही ठहराते हुए कहते हैं, ‘क्या हम अपने मंदिर के अंदर खेलों का प्रशिक्षण नहीं दे सकते! इस सबमें गलत क्या है?’ शारीरिक प्रशिक्षण के अलावा युवाओं को ये भी बताया जा रहा है कि संसार की सभी समस्याओं की जड़ इस्लाम है और जो भी इसके अनुयायी हैं वे सब के सब राक्षस हैं।


मुस्लिमों के खिलाफ भड़काई जा रही इस नफरत का अंदाजा इस बात से लगता है कि एक आठ साल के बच्चे में भी मुस्लिमों के प्रति घृणा है। गाजियाबाद के रोड़ी गांव में प्रशिक्षण ले रहा एक बच्चा कहता है कि वह मुसलमानों से लड़ेगा क्योंकि वे हमारे देश के लिए एक खतरा हैं। जब उस बच्चे से पूछा गया कि मुस्लिम कौन हैं, तब उसने कुछ देर रुककर बड़ी मासूमियत से जवाब दिया, ‘जो मीट खाते हैं, वो मुसलमान हैं।’

हिंदू स्वाभिमान से जुड़े परमिंदर आर्य पूर्व सैन्यकर्मी हैं। वे अपने घर के अहाते में ऐसे ही एक प्रशिक्षण केंद्र का संचालन करते हैं। इस केंद्र में मेरठ और कभी-कभी देश के दूसरे हिस्सों से भी प्रशिक्षक आते हैं। यहां गांव के आठ से लेकर तीस साल तक की उम्र के लगभग 70 लोगों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। कारगिल युद्ध का हिस्सा रहे सेवानिवृत्त परमिंदर कहते हैं, ‘मैं घर-घर जाकर बच्चों के माता-पिता से नहीं कहता कि बच्चों को प्रशिक्षण के लिए भेजो। वे खुद यहां आते हैं. मुस्लिमों को छोड़कर मेरे प्रशिक्षण केंद्र में सभी का स्वागत है।’

सितंबर 2011 में सेना से रिटायर परमिंदर ने लंबे समय तक उथल-पुथल के दौर में कश्मीर में अपनी सेवाएं दी हैं। परमिंदर कहते हैं कि वे हिंदुओं के लिए हमेशा से ही काम करते रहे हैं लेकिन कश्मीर से पंडितों को खदेड़े जाने के बाद उन्होंने कट्टरपंथ का रास्ता अपना लिया। वे मानते हैं कि कश्मीरी पंडितों के साथ जो दुर्व्यवहार हुआ, उसके बाद वे विश्वास करने लगे कि मुस्लिमों से लड़ाई के लिए हिंदुओं को एकजुट होना पड़ेगा। उन्माद से भरे हुए परमिंदर कहते हैं, ‘लाखों कश्मीरी पंडित या तो मार दिए गए या फिर अपना गांव-घर छोड़ने को मजबूर कर दिए गए। उनके पास यही विकल्प थे कि या तो वे अपने घर की औरतों का बलात्कार होते हुए देखें, कश्मीर छोड़ दें, या फिर इस्लाम स्वीकार करें।’

हिंदूवादी संगठनों की ओर से चलाए जा रहे केंद्रों में शारीरिक प्रशिक्षण के अलावा युवाओं को ये भी बताया जा रहा है कि संसार की सभी समस्याओं की जड़ इस्लाम है और जो इसको मानते हैं वे सभी राक्षस है॥

परमिंदर बताते हैं कि उन्होंने प्रशिक्षण केंद्र की शुरुआत चार साल पहले आईएस से लड़ने के लिए की थी। जब उनसे कहा गया कि चार साल पहले तक तो आईएस को कहीं कोई जानता ही नहीं था, तब उनका जवाब था, ‘मुझे पता था कि आने वाले सालों में इस्लामिक जिहाद बढ़ेगा इसलिए बच्चों को प्रशिक्षण देना शुरू किया ताकि वे देश की रक्षा कर सकें।’ हिंदुत्व के प्रति अपनी निष्ठा का प्रमाण देते हुए परमिंदर कहते हैं कि 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान उन्होंने अपने लड़कों को हिंदुओं की रक्षा करने के लिए वहां भेजा था।

रोड़ी गांव हिंदू बहुल है, यहां की बहुसंख्यक आबादी जाटों की है। गांव के एक कोने में मुसलमानों के परिवार हैं। गांव में सांप्रदायिक तनाव का अभी तक कोई बड़ा मामला सामने नहीं आया है लेकिन दोनों समुदायों में झड़पें होती रही हैं। अब हिंदू बच्चों को ऐसा प्रशिक्षण दिए जाने से मुस्लिम जरूर चिंतित हैं। रोड़ी गांव में अपने घर के बाहर बैठे एक वृद्ध मुस्लिम चिंता जाहिर करते हुए कहते हैं, ‘हमें ऐसा लगता है कि गांव में हम मुस्लिम अलग-थलग कर दिए गए हैं। जब मैं छोटा था तो दोनों समुदाय के बच्चे एक-साथ खेला करते थे लेकिन अब एक खालीपन-सा है।’
साभार तहलका हिंदी.काम
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