लाइफ स्टाइल

मोबाइल फोन के मायाजाल में कौन फंसा है?

Arun Mishra
28 Aug 2021 4:02 AM GMT
मोबाइल फोन के मायाजाल में कौन फंसा है?
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बच्चों में मोबाइल फोन की लत खतरे की घंटी?

पिछले दो साल के अखबारों में छपी ये खबरें शायद आप में से कुछ को बोरिंग लगें क्योंकि इनमें कही भी फाइव स्टार कल्चर वाले लोग शामिल नहीं हैं। इनमें बॉलिवुड की मसाला खबरें नहीं हैं या किसी पॉलिटिकल पार्टी के धार्मिक पक्ष पर भड़काऊ कमेंट नहीं है। लोग अपने-अपने वॉट्सएप ग्रुप में पॉलिटिकल पार्टियों के पक्ष में लड़ते-झगड़ते हैं। टीवी चैनलों पर आ रही खबरों को सोफे पर बैठकर सुबह से शाम तक बार-बार देखते हैं। उन्हीं खबरों को दोहराते एंकरों को देखकर भी बोर नहीं होते। लेकिन एक समस्या जो उनके अपने घर के भीतर बड़ी होती जा रही है, वे उससे बेखबर हैं।

अब जरा इन खबरों पर नजर डालें:

महोबा निवासी देवतादीन के 14 साल के बेटे ने मोबाइल पर खेलने से मना करने पर छत से कूदकर खुदकुशी की

मध्यप्रदेश में 12 साल के लड़के कोमल ने पिता द्वारा मोबाइल पर गेम खेलने से मना करने पर फांसी लगाई

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में 13 साल के कादिर ने मोबाइल पर गेम खेलने से मना करने पर खुदकुशी की

हरियाणा में 7 लड़कों ने 10 साल की लड़की से गैंगरेप किया, अपराधी 6 लड़कों की उम्र 10 से 12 साल के बीच

बैंगलोर में सॉफ्टवेयर इंजीनियर पिता के 12 साल के बेटे ने मोबाइल गेम खेलने से मना करने पर 12वीं मंजिल से कूदकर जान दी

छतरपुर में गेम खेलने से मना करने पर बच्चे ने फांसी लगाकर खुदकुशी की

बरेली कैंट एरिया में 12 साल के बच्चे ने 4 साल की लड़की से रेप किया

जयपुर में सैन्य अधिकारी का 14 साल का बेटा ऑनलाइन क्लास में टीचर को प्राइवेट पार्ट दिखाने पर गिरफ्तार

अब कुछ फैक्ट देख लेते हैं। क्या आप जानते हैं 10 साल के 40 फीसदी बच्चे सोशल मीडिया (इंस्टाग्राम, फेसबुक, स्नैपचैट, टेलीग्राम और वॉट्सऐप) पर ऐक्टिव है? क्या आप जानते है कि 50 फीसदी किशोरों को मोबाइल फोन की लत लग चुकी है? ये आधिकारिक आंकड़े हैं जबकि असल संख्या इससे कहीं ज्यादा हो सकती है। दरअसल कोरोना की वजह से पिछले दो साल से चल रही ऑनलाइन क्लासेज ने पैंरट्स को मजबूर कर दिया कि बच्चों के हाथ में स्मार्टफोन देना ही पड़ा।

लेकिन आजकल माता-पिता यहां तक की दादा-दादी, नाना-नानी भी जब खुद घंटों तक मोबाइल पर मनोरंजक विडियो देखते रहते हैं तो उन्हें बच्चे का मोबाइल में बिजी रहना सुविधाजनक लगने लगा है। पर हम खुद 24 घंटे मोबाइल में बेहद बिजी रहने के बाद बच्चों को उपदेश नहीं दे सकते। उनकी तो उम्र है टेक्नॉलजी की तरफ आकर्षण की। क्या खाया, कहां घूमे, यह सब अपडेट करने की या फिर अपने हमउम्र के आकर्षण में इनबॉक्स पर चैट करने की चाह। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आज के 12 साल तक के 80 फीसदी बच्चे कभी न कभी अडल्ट कंटेंट विडियो देख चुके होते हैं और माता-पिता इस बात से बेखबर होते हैं कि कब उन्हीं की मोबाइल गैलरी खंगालते हुए बच्चे का कोमल मन असमय इस मानसिक मादकता की चपेट में आ गया।

बीते कुछ सालों में यौन अपराधों में 10 से 15 साल के लड़कों का बढ़ता ग्राफ देखकर साइकॉलजिस्ट हैरत में हैं। आप में से कोई भी अपने किशोर बच्चे के टीचर से बात करके देखिए कि उनकी ऑनलाइन क्लास में जूम मीटिंग पर किसी दूसरी आईडी से बच्चे को एंट्री क्यों नही मिलती? आप सोचेंगे कि टीचर का यह जवाब होगा कि किसी दूसरे स्कूल का स्टूडेंट हमारे स्कूल की क्लास का फायदा न उठा ले। अगर आप ऐसा सोचते हैं तो आप गलत हैं। अगर हम क्लास 7 से लेकर क्लास 10 के बीच के टीचर्स से बात करेंगे तो उनसे कुछ ऐसे जवाब मिलेंगे। किसी बच्चे ने अनजान आईडी से क्लास में अडल्ट कंटेंट का विडियो चला दिया या अश्लील भाषा में क्लास में लगातार कमेंट या गालियां टाइप करने लगा और हमें फौरन उस आईडी को क्लास से बाहर करना पड़ा। ये अनजान आईडी कभी भी किसी आउटसाइडर अडल्ट की न होकर उसी क्लास के किसी बच्चे की होती है जो 5 मिनट पहले जूम लिंक शेयर होते ही क्लास में एंट्री करता है। यह चिंता की बात है कि कच्ची उम्र का वर्चुअल मेंटल पल्यूशन अपने चरम पर है और कई पैरंट्स इससे बेखबर हैं।

मोबाइल गेम की लत ने कितने ही बच्चों की मानसिक और शारीरिक सेहत को खराब कर रखा है। वे बच्चे जिन्हें इसकी लत लग चुकी है, वे लंच टाइम से लेकर डिनर तक टॉयलेट से लेकर सड़क तक या फिर अपने बेडरूम में पूरी-पूरी रात जागकर गेम खेलते हैं। सोशल लाइफ, क्रिएटिविटी और खेल के मैदान से दूर हुए बच्चों की इस बीमारी पर बात करने की किसी को फुर्सत नहीं जबकि अब वक्त आ चुका है कि इस पर खुली चर्चा पेरेंटिंग का हिस्सा होना चाहिए। हमारे देश को अच्छे नागरिक देना किसका कर्तव्य है? शिक्षकों, अभिभावकों, सरकार और मनोवैज्ञानिकों के सहयोग से इस उम्र के सभी बच्चों के लिए लगातार चलनेवाली साझा काउंसलिंग जरूरी है।

ऑनलाइन क्लासेस की जरूरत के बावजूद इनके साइड इफेक्ट भी हैं। बच्चे बिहाइंड द स्क्रीन क्या कर रहे हैं, उस पर लगातार निगरानी जरूरी है। सिर्फ रोक ही एकमात्र उपाय नहीं है। अपनी लत पर रोक लगने की वजह से बच्चा माता-पिता से नफरत करने लगेगा। इसलिए बच्चे के साथ दोस्ती करके वक्त साथ में गुजारना होगा। घर से बाहर निकलकर खेलने जाने के लिए प्रेरित करना होगा। उसके साथ उसकी पसंदीदा फिल्में देखकर, यौन आकर्षण पर बेझिझक चर्चा करनी होगी। बच्चे को उसके शौक पर काम करने के लिए प्रेरित करना होगा। कच्ची उम्र की गलतियों के बुरे नतीजों का उदाहरण देकर ही हम अपना बच्चा सुरक्षित रख सकते हैं। यकीन मानिए वे अपराधी नहीं है। सिर्फ लापरवाह परवरिश से गलत राह की ओर बढ़ते राही हैं जिन्हें प्यारभरे हाथों से थामा जा सकता है।

( साभार : मधु चतुर्वेदी की फेसबुक वॉल से )

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