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यूपी में बीजेपी के सामने सभी पार्टियाँ बौनी नजर आ रही है, जानिए क्यों?

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अब प्रदेश में बीजेपी के समाने कोई दल चुनौती पेश करता नजर नहीं आ रहा है . मेरे द्वारा कही इस बात को नोट कर लेना. अगर इन दलों ने संगठन पर जल्द कोई निर्णय नहीं लिया तो बीजेपी के समाने टिकाना बहुत मुश्किल होगा. बिना संगठन के कोई चुनाव लड़ना अब आसान नहीं है.

उत्तर प्रदेश (Uttar Prades) में अब चुनाव में सिर्फ एक साल का समय बाकी है. बीजेपी (BJP) जहाँ अपनी पूरी ताकत से चुनावी मैदान में कूद चुकी है तो प्रदेश में नंबर दो की हैसियत रखने वाली समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) का अभी तक कोई लता पता नहीं है. जबकि प्रदेश में बीजेपी का विल्कप बनने वाली कांग्रेस तो दिल्ली से निकलकर लखनऊ की ओर रुख भी नहीं कर पा रही. वहीँ पूर्ण बहुमत की सरकार बना चुकी बसपा...

उत्तर प्रदेश (Uttar Prades) में अब चुनाव में सिर्फ एक साल का समय बाकी है. बीजेपी (BJP) जहाँ अपनी पूरी ताकत से चुनावी मैदान में कूद चुकी है तो प्रदेश में नंबर दो की हैसियत रखने वाली समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) का अभी तक कोई लता पता नहीं है. जबकि प्रदेश में बीजेपी का विल्कप बनने वाली कांग्रेस तो दिल्ली से निकलकर लखनऊ की ओर रुख भी नहीं कर पा रही. वहीँ पूर्ण बहुमत की सरकार बना चुकी बसपा सुप्रीमों आराम फरमा रही है.

वहीँ यूपी में नये गठबंधन बनते नजर आ रहे है. जिसमें भागीदारी संकल्प मोर्चा के नाम एक नया गठबंधन सामने आया है. जिसके नेतृत्व फिलहाल सुहेलदेव राजभर समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर (Suheldev Rajbhar Samaj Party National President Om Prakash Rajbhar) कर रहे है. जिसमें की छोटे छोटे दल मिलकर चुनाव लड़ेंगे जिसमें एक बड़े दल के रूप में असुद्दीन ओवेसी (Asaduddin Owaisi) की पार्टी भी शामिल होगी. देर रात इस में शामिल करने के लिए ओमप्रकाश राजभर की बात प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल यादव (Shivpal Yadav, President of Progressive Samajwadi Party) से बात हुई है. वहीँ राजभर की बात आम आदमी पार्टी के संजय सिंह (Sanjay Singh of Aam Aadmi Party) से भी चल रही है.

जबकि कांग्रेस के महासचिव और यूपी की प्रभारी प्रियंका गाँधी (Priyanka Gandhi, General Secretary of Congress and in-charge of U.P.) के नेतृत्व में अभी उप चुनाव में कांग्रेस ने उम्दा प्रदर्शन किया है. जबकि प्रियंका गाँधी (Priyanka Gandhi) अभी दिल्ली से निकल कर यूपी का रुख नहीं कर पा रही है. जबकि बीजेपी तब तक अपने आपको ओवर हाल करके चुनाव जितने के करीब ला चुकी होगी. अब इससे समझ आ रहा है कि अब विपक्ष चुनाव लड़ने के मूड में नहीं है वो बीजेपी को वाकऑवर दे रहा है . जब कांग्रेस के पास बोलने में महारत हासिल रखने वाले आचार्य प्रमोद कृष्णम (Acharya Pramod Krishnam) , प्रमोद तिवारी (Pramod Tiwari)जैसे जुझारू और कई युवा चेहरे मौजूद है जिनका उपयोग करके पार्टी यूपी में बीजेपी के सामने संकट खड़ा कर सकती है लेकिन खामोश कांग्रेस जीरो डिग्री तापमान में रजाई ओढ़कर सो रही है. लिहाजा जल्द ही कांग्रेस ने अपने पत्ते नहीं खोले तो चुनाव में पुराना हश्र दोहराने को तैयार रहे. ट्विटर और फेसबुक से उपस्तिथि दर्ज होती है चुनाव नहीं लदे जाते है.

वहीं सेकेंड विनर सपा के लिए प्रदेश में जनता को बताने केलिए बहुत कुछ है लेकिन सभी लोग नींद में सोये हुए है जबकि बीजेपी अपना संगठन दुरस्त करने में जुटी हुई है . क्योंकि संगठन चुनाव लडाता है न कि नेता . अगर आप संगठन बनाने में माहिर नहीं है तो चुनाव से दूर खुद ही चले जायेंगे. सपा भी किसान आंदोलन से अपनी उपस्तिथि दर्ज करा रही है जबकि प्रदेश में कानून व्यस्व्था एक बड़ा मुद्दा है . किसान की खाद बीज पानी एक बड़ा मुद्दा है , प्रदेश में विकास एक बड़ा मुद्दा है. लेकिन खामोश सपा प्रदेश में अपने आपको विकल्प कैसे बना पाएगी यह कहना अभी मुश्किल है. उसके थोक वोट पर कांग्रेस और ओवेसी निगाह लगाये हुए बैठे है ऐसे में अपने वोट बेंक को बचाए रखना एक बड़ी बात होगी. उधर बीजेपी लगातार अपने आपको मजबूत करती नजर आ रही है. लिहाजा उसका विकल्प अभी कोई बनता नजर नहीं आ रहा है.

अब बात बसपा की करते है. बसपा सुप्रीमों के सामने उनके बयान ने एक बड़ी समस्या उत्पन्न कर दी है. जहाँ उन्होंने राज्यसभा में एक सीट जीतकर संदेश दिया कि वो और बीजेपी एक बात है इससे उनसे मुस्लिम समुदाय पूरी तरह अपना मोह भंग कर चूका है . उधर दलित वोट बेंक में में भी सपा , बीजेपी , राजभर , कांग्रेस सेंध लगाते नजर आ रहे है. अगर यही हाल रहा तो बसपा पिछले सभी रिकार्ड तोड़ देगी और सबसे कमजोर दल के रूप में उभर कर आएगी.

अब बात करते है बीजेपी के तो फिलहाल यूपी में उसका कोई सानी नहीं है. जहां बीजेपी के संगठन को लेकर प्रदेश प्रभारी राधा मोहन सिंह और प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह जिले जिले और तहसील तहसील जाकर संगठन तैयार करने में जुटे हुए है तो उनको हराना मुमकिन ही नहीं नामुमकिन होगा. उसका उदाहरण इस प्रकार समझ लीजिये जिसे आप ईवीएम मान कर हैक होने की बात कहते है वो सरासर गलत है. क्योंकि बीजेपी ने अपनी खुद की ईवीएम बना ली है जिसे वो संगठन के रूप में पहचान देती है. बूथ प्रमुख , पन्ना प्रमुख और बूथ पर बना संगठन लगभग पच्चीस से तीस लोंगों का होता है. जिसके मुताबिक़ एक बूथ पर बीजेपी पच्चीस आदमी तैयार करती , तो एक आदमी अगर पांच वोट प्रभावित करता है तो क बूथ पर लगभग सौ वोट पड़ना तय है . उसके बाद एक विधानसभा में दौ सौ से लेकर तिन सौ तक बूथ होते है. इस लिहाज से बीजेपी का हर विधानसभा पर पच्चीस हजार वोट तैयार है उसके बाद उसे ईवीएम हैक करने की कोई जरूरत नहीं है . ये क्रोनोलोजी समझने के आवश्यकता है . जब यही हाल कांग्रेस और कांग्रेस सेवादल का था तब कोई दल उसके सामने नहीं टिकता था.

अब प्रदेश में बीजेपी के समाने कोई दल चुनौती पेश करता नजर नहीं आ रहा है . मेरे द्वारा कही इस बात को नोट कर लेना. अगर इन दलों ने संगठन पर जल्द कोई निर्णय नहीं लिया तो बीजेपी के समाने टिकाना बहुत मुश्किल होगा. बिना संगठन के कोई चुनाव लड़ना अब आसान नहीं है.

Shiv Kumar Mishra
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