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बड़ा खुलासा है इस खबर में: अरूण यादव के करीबी सचिन बिरला का उपचुनाव से पहले भाजपा में शामिल होना कहीं सोची समझी साजिश तो नहीं?

Shiv Kumar Mishra
25 Oct 2021 8:38 AM GMT
बड़ा खुलासा है इस खबर में: अरूण यादव के करीबी सचिन बिरला का उपचुनाव से पहले भाजपा में शामिल होना कहीं सोची समझी साजिश तो नहीं?
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कही कमलनाथ को परेशान करने के लिए कांग्रेसी नेताओं ने ही तो नहीं रचा मायाजाल?

सचिन बिरला के भाजपा में शामिल होने के सूत्रधार है अरूण यादव

चुनाव के ठीक पहले भाजपा का दामन साधना बिरला को कठघरे में खड़ा करता है

विजया पाठक, एडिटर जगत विजन

खंडवा लोकसभा सीट में होने जा रहे उपचुनाव के महज छह दिन पहले मध्यप्रदेश की राजनीतिक सरजमी पर एक बड़ा उलटफेर देखने को मिला है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता और बड़वाह विधानसभा सीट से विधायक बने सचिन बिरला ने कांग्रेस का साथ छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया है। बिरला की इस दल बदल राजनीति से विपक्ष पार्टी कांग्रेस और प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी हो गई है। खैर खंडवा में ऐसा ही कुछ होगा इसका अंदेशा पहले से ही था। जगत विजन ने कुछ दिन पहले ही इस बात को साफ कर दिया था कि खंडवा के लोकप्रिय नेता और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता अरूण यादव भाजपा के वरिष्ठ नेताओं और पदाधिकारियों के संपर्क में है। सचिन बिरला अरूण यादव खेमे के नेता माने जाते है और उनका उपचुनाव के पहले इस तरह से भाजपा में शामिल होना निश्चित ही कांग्रेस में चल रही अंर्तकलह को साबित करता है।

दूसरे विधानसभा क्षेत्रों में है दबदबा

राजनीतिक सलाहकारों की मानें तो सचिन बिरला एक जुझारू नेता है और वे अपनी विधानसभा के अलावा अन्य विधानसभा क्षेत्रों में भी अच्छा दखल रखते है। इसका सीधा फायदा भारतीय जनता पार्टी को उपचुनाव में देखने को मिलेगा। बिरला जनलोकप्रिय नेताओं में से एक है और उनके पास 80 हजार से अधिक लोगों और कार्यकर्ताओं का वोट बैंक है जो किसी भी पार्टी की जीत हार को तय करने में अहम भूमिका रखता है। निश्चित ही बिरला का यह कदम कांग्रेस पार्टी की मुश्किल खड़ी करने वाला हो सकता है। लोगों के बीच बिरला का जुड़ाव इस बात से पता चलता है कि वर्ष 2013 में जब कांग्रेस ने सचिन बिरला को विधानसभा चुनाव का टिकट देने से इंकार किया था तो उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और 61 हजार वोट भी प्राप्त किये।

एक साल पहले भी भाजपा ने की थी कोशिश

सूत्रों की मानें तो लगभग डेढ़ साल पहले जिस समय भारतीय जनता पार्टी विपक्ष में थी। उस समय भी भाजपा नेताओं ने सचिन बिरला को भाजपा में शामिल करने की कोशिश की थी। इसके बदले भाजपा ने सचिन को 50 करोड रूपए और कैबिनेट में मंत्री पद देने का ऑफर किया था। लेकिन तत्कालीन परिस्थितियों को देखते हुए भाजपा की यह कोशिश नाकाम रही और सचिन ने भाजपा का दामन थामने से इंकार कर दिया था।

अरूण यादव और पूर्व मुख्यमंत्री के करीबी है बिरला

सचिन बिरला पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता के अलावा खंडवा के लोकप्रिय नेता अरूण यादव के करीबी माने जाते है। इसीलिए सियासी गलियारे में बिड़ला के इस कदम को दोनों ही नेताओं से जोड़कर भी देखा जा रहा है। ऐसा भी माना जा रहा है कि अरूण यादव और पूर्व मुख्यमंत्री मिलकर मध्यप्रदेश से कमलनाथ को बाहर करने की कोशिश कर रहे है। क्योंकि यदि कांग्रेस लोकसभा का उपचुनाव हारती है तो निश्चिततौर पर पार्टी इसका ठिकरा कमलनाथ पर ही फोड़ेगी। दोनों ही कांग्रेसी नेताओं का इससे पीछे एक लंबा गणित भी बताया जा रहा है। अरूण यादव खुद कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी हथियाना चाहते है वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री अपने बेटे को प्रदेश में और मजबूती दिलाने की कोशिश में है।

इससे पहले भी एक विधायक हुआ शामिल

ध्यान देने वाली बात यह है कि लगभग एक वर्ष पहले कांग्रेस विधायक नारायण पटेल ने भी माधांता विधायक पद से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थामा था। पटेल भी अरूण यादव खेमे के नेता है और उनसे उनकी अत्यंत करीबियां भी है। इस तरह से कांग्रेस पार्टी को अरूण यादव का लोकसभा सीट का चुनाव लड़ने से मनाही करना मंहगा पड़ता जा रहा है।

गफलत में है कमलनाथ

जिस तरह से मध्यप्रदेश में कांग्रेस विधायक एक के बाद एक भाजपा को ज्वॉइन करते जा रहे है उससे कमलनाथ गफलत में पड़ गए है। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा है कि ऐसा क्यों हो रहा है। कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रदेश के कांग्रेसी नेता कमलनाथ को यहां जमने न देना चाहते हो इसीलिए कांग्रेस पार्टी के अंदर अंर्तकलह पैदा किए हुए है।

भाजपा नेताओं से लेना चाहिए सीख

सियासी मैदान में जोड़-तोड़ की राजनीति होना आम बात है। लेकिन कांग्रेसी नेताओं और विधायकों को भाजपा नेताओं और विधायकों से सीख लेने की आवश्यकता है। परिस्थिति चाहे जितनी कठिन हो, पार्टी के अंदर चाहे जितनी मुश्किलें हो लेकिन भाजपा के विधायक ने पार्टी छोड़ने जैसा कोई निर्णय अब तक नहीं लिया है। जबकि देखा जाए तो पहले सिंधिया खेमे के विधायकों का भाजपा में शामिल होना, कई प्रमुख भाजपा के मंत्रियों के मंत्री पद से बेदखल होने के बावजूद किसी भाजपा नेता ने दल बदलने जैसा काम नहीं किया है।

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