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भगत सिंह तुम जिंदा हो

Desk Editor
28 Sep 2021 10:17 AM GMT
भगत सिंह तुम जिंदा हो
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भगतसिंह ने कहा है, "बम और पिस्तौल इन्क़लाब नहीं लाते बल्कि इन्क़लाब की तलवार विचारों की सान पर तेज़ होती है"

शहीद भगतसिंह "स्मृति संकल्प अभियान", रोहतक

शहीदेआज़म भगतसिंह की 114वीं जयन्ती (28 सितम्बर) के अवसर पर आज रोहतक (हरियाणा) के लेबर चौकों पर शहीद स्मृति संकल्प अभियान चलाया गया। इस दौरान लेबर चौक पर मौजूद मज़दूर साथियों को भगतसिंह के विचारों और उनके जीवन लक्ष्य से परिचित कराया गया। आज के हालात और एक समतामूलक समाज के निर्माण के प्रोजेक्ट पर भी बातचीत हुई।

"पेश है स्मृति संकल्प अभियान" का पर्चा :-

भगतसिंह तुम ज़िंदा हो,

हम सबके संकल्पों में!!

भाइयो, बहनो और साथियो!

28 सितम्बर को महान क्रान्तिकारी भगतसिंह की 114वीं जयन्ती है। हम सभी भगतसिंह के प्रति श्रद्धा तो रखते हैं किन्तु हममें से बहुत सारे लोग उनके विचारों से अनजान हैं! मात्र 23 साल की उम्र में शहादत देने वाले भगतसिंह केवल बहादुर ही नहीं बल्कि दूरदर्शी विचारक, उत्कट क्रान्तिकारी और कुशल संगठनकर्ता भी थे। वे केवल अंग्रेजी हुकूमत और विदेशी पूँजीपतियों की लूट के ही नहीं बल्कि देसी पूँजीपतियों की लूट के भी खिलाफ़ थे। भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 6 जून 1929 को दिल्ली सेशन जज की अदालत में कहा था, "क्रान्ति से हमारा अभिप्राय है मुट्ठी भर परजीवी जमातों द्वारा आम जनता की मेहनत की लूट पर आधारित, अन्याय पर आधारित मौजूदा व्यवस्था में आमूल परिवर्तन।" फाँसी के तीन दिन पूर्व पंजाब के गवर्नर को लिखे पत्र में भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरू ने कहा था, "हम यह कहना चाहते हैं कि युद्ध छिड़ा हुआ है और यह लड़ाई तब तक चलती रहेगी जब तक कि शक्तिशाली व्यक्तियों ने भारतीय जनता और श्रमिकों की आय के साधनों पर अपना एकाधिकार जमा रखा है – चाहे ऐसे व्यक्ति अंग्रेज़ पूँजीपति और अंग्रेज़ या सर्वथा भारतीय ही हों, उन्होंने आपस में मिलकर एक लूट जारी कर रखी है। चाहे शुद्ध भारतीय पूँजीपतियों के द्वारा ही निर्धनों का ख़ून चूसा जा रहा हो तो भी इस स्थिति में कोई अन्तर नहीं पड़ता। ... बहुत सम्भव है कि यह युद्ध भयंकर स्वरूप ग्रहण कर ले। पर निश्चय ही यह उस समय तक समाप्त नहीं होगा जब तक कि समाज का वर्तमान ढाँचा समाप्त नहीं हो जाता...।"

आज विदेशी गुलामी से हम भले ही आज़ाद हैं लेकिन क्या शोषण के रूप आज भी जारी नहीं हैं? देश में पिछले सात दशक से कांग्रेस, भाजपा से लेकर विभिन्न गठबन्धनों और क्षेत्रीय पार्टियों की केन्द्र व राज्यों में तमाम सरकारें बन चुकी हैं किन्तु आम जनता की पहुँच शिक्षा, चिकित्सा और रोज़गार जैसे बुनियादी हक़ों से भी कोसों दूर है। भगतसिंह और उनके साथियों ने पहले ही बताया था कि कांग्रेस का रास्ता समझौते का रास्ता है। 15 अगस्त 1947 को हुआ भी यही कि लाखों-लाख जनता की क़ुर्बानियों की कीमत पर सत्ता हस्तान्तरण हुआ और शासन देसी पूँजीपतियों के हाथ में आ गया। भयंकर साम्प्रदायिक दंगों की आग में झुलसी खण्डित और अधूरी आज़ादी की आड़ में भगतसिंह जैसे महान शहीदों के समतामूलक और समाजवादी समाज के ख़्वाबों पर मिट्टी डाल दी गयी।

तरक्की और विकास के नारे के ढोल की पोल

1947 के बाद देश के शासक वर्ग ने पूँजीवादी विकास का जो रास्ता चुना उसने एक ऐसा समाज बनाया है जो सिर से पाँव तक सड़ रहा है। देश की आज़ादी को एक शायर ने जिस दाग-दाग उजाले की संज्ञा दी थी वह आज अमावस के घनघोर अँधेरे में बदल चुका है। पब्लिक सेक्टर पूँजीवाद की ज़रूरत ख़त्म होने के साथ ही शासन ने तथाकथित कल्याणकारी राज्य का चोला उतार फेंका है और जनता पर उदारीकरण-निजीकरण का बुल्डोज़र चढ़ा दिया है। गरीबी, महँगाई, बेरोज़गारी, कुपोषण, अकाल मृत्यु, लूट और दमन के नये-नये कीर्तिमान स्थापित हो रहे हैं। देश में 1990 के दशक के मध्य में सिर्फ़ 2 अरबपति (डॉलर अरबपति) थे, 2018 तक अरबपतियों की संख्या 119 तक पहुँच गयी। ऑक्सफैम की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के एक प्रतिशत अमीरों के पास देश के 70 प्रतिशत लोगों की कुल सम्पत्ति से भी चार गुना धन जमा हो चुका है। अक्टूबर 2020 के वैश्विक भूख सूचकांक में 107 देशों की सूची में हमारा देश 94वें स्थान पर आया है! सितम्बर 2020 में जारी मानव विकास सूचकांक में भारत 189 देशों की सूची में 131वें स्थान पर है। संयुक्त राष्ट्र संघ की बाल मृत्युदर अनुमान एजेंसी के अनुसार भारत में शिशु मृत्युदर के मामले भयावह हैं। साल 2019 के अन्तिम आँकड़ों के अनुसार यहाँ 8,24,000 शिशु मौत का शिकार हुए। यानी हर दो मिनट में तीन बच्चों की मौत! यही है पूँजीवादी व्यवस्था का सच जिसके जनद्रोही चरित्र के प्रति भगतसिंह और उनके साथी आगाह किया करते थे। आज सरकारों की भूमिका "पूँजीपति वर्ग की प्रबन्धकारिणी समिति" के तौर पर अधिकाधिक स्पष्ट होती जा रही है। वैसे तो कांग्रेस-भाजपा से लेकर अलग-अलग क्षेत्रीय चुनावबाज दलों की नीतियों में कोई गुणात्मक फर्क नहीं है यानी सत्ता किसी की भी हो जनता की लूट बदस्तूर जारी रही है, लेकिन रामनामी दुपट्टा ओढ़कर 2014 से सत्ता में बैठी भाजपा ने लूट और झूठ के कारोबार को नयी बुलन्दियों तक पहुँचा दिया है। बिकाऊ मीडिया सत्ता की गोदी में बैठकर स्याह को सफ़ेद करने में लगा हुआ है।

एफडीआई, नोटबन्दी, जीएसटी, श्रम कानूनों के ख़ात्मे और मौद्रीकरण की आम मेहनतकश जनता के खून-पसीने के दम पर खड़े किये गये सार्वजनिक क्षेत्रों को बेच-खाने जैसी पूँजीपरस्त नीतियों ने जनता का जीना दूभर कर दिया है। भाजपा पूँजीपति घरानों की सेवा में इस कदर लगी है कि इसने देश की अर्थव्यवस्था को मन्दी और बर्बादी की दलदल में धकेल दिया है। सार्वजनिक क्षेत्रों की बोलियाँ लग रही हैं और देशी-विदेशी पूँजीपति माल डकार रहे हैं। दूसरी ओर महँगाई, बेरोज़गारी, असमानता और श्रम की लूट से जनता बुरी तरह त्रस्त है। शिक्षा-चिकित्सा-रोज़गार जैसी अपनी ज़िम्मेदारियों से मोदी सरकार बड़ी ही बेशर्मी के साथ हाथ खींच रही है।

कोरोना काल और अनियोजित लॉकडाउन के दौरान तो आम लोगों को बिल्कुल ही तबाही, बर्बादी, भुखमरी और मौत के मुँह में धकेल दिया गया। केन्द्र व राज्य सरकारों ने महामारी के दौरान जिस लापरवाही का परिचय दिया है वह अक्षम्य है। सरकारों के जनविरोधी रवैये के कारण एक ओर जहाँ करोड़ों लोगों को अपनी नौकरी और आय के साधनों से हाथ धुलवाकर गरीबी की दलदल में पटक दिया गया वहीं दूसरी ओर भारत के 100 चोटी के अमीरों के धन में पिछले साल मार्च से इस साल मार्च तक 12,97,822 करोड़ रुपये की बढ़ोत्तरी दर्ज की गयी है। आज मज़दूर-ग़रीब किसान-कर्मचारी सरकारों की जनविरोधी नीतियों के तले पिस रहे हैं। भयंकर बेरोज़गारी के चलते छात्रों और युवाओं का भविष्य अँधेरे में है। इस सबके बावजूद जाति-धर्म के झगड़ों, नकली देशप्रेम और फ़र्जी राष्ट्रवाद को उभारकर नब्बे फीसदी लोगों की ज़िन्दगी के असली मुद्दों पर परदा डाला जा रहा है।

साथियो, कोई भी देश कागज़ पर बना हुआ नक्शा नहीं होता है बल्कि वहाँ के निवासियों से कोई देश देश बनता है। आम लोगों तक शिक्षा, चिकित्सा और रोज़गार की पहुँच ही तरक्की का असल पैमाना होता है। यदि करोड़ों मज़दूर, ग़रीब किसान, कारीगर और कमेरे लोग हाडतोड़ मेहनत करके भी लाचार हों तो भला उसे तरक्की कैसे कहा जाये? टैक्स का हमारा पैसा यदि धन्नासेठों की तिजोरियों में पहुँच जाये और नेताओं की ऐशगाहों की चकाचौंध बढ़ाये तो क्या हम उसे ही देश का विकास कहें? क्या जनता और देश के संसाधनों की पूँजीपतियों द्वारा हो रही सरेआम लूट को प्रधानमन्त्री मोदी के "आत्मनिर्भरता" और "विकास" जैसे जुमलों की आड़ में छिपाया जा सकता है? नहीं दोस्तो, हम तरक्की और विकास की ऐसी किसी परिभाषा को नहीं मानते हैं!

"एक सपने को टालते रहने से क्या होगा?"

आज का भारत भगतसिंह, राजगुरू, सुखदेव, चन्द्रशेखर आज़ाद, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक़उल्ला खान जैसे हमारे महान शहीदों के सपनों का भारत नहीं है। मौजूदा अन्यायी व्यवस्था के मानवद्रोही चरित्र के ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठाना भी भगतसिंह जैसे नायकों के अपमान के ही समान है। हमारे लिए भगतसिंह को याद करने का मकसद उनके सपनों, विचारों और अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ने के उनके शानदार जज़्बे की याददिहानी है। यदि हमारे दिलों में अपने शहीदों के प्रति इज्ज़त है तो 28 सितम्बर हमारे लिए भगतसिंह और उनके साथियों के विचारों को जानने-समझने और उन्हें पूरा करने का संकल्प लेने का दिन होना चाहिए।

दोस्तो, हम दिशा छात्र संगठन और नौजवान भारत सभा के बैनर तले पिछले काफ़ी समय से शहीदों के सपनों को जनमानस तक लेकर जा रहे हैं। हम शिक्षा-रोज़गार-चिकित्सा-आवास और जीवन से जुड़े बुनियादी मसलों पर संघर्षों को संगठित करते हुए जनता की एकजुटता भी कायम कर रहे हैं। हमारा विश्वास है कि ऐसा भारत बन सकता है जिसमें जाति-धर्म के दंगे न हों, श्रम का शोषण बन्द हो, लोग भूख से न मरें, स्त्रियों के लिए बराबरी हो, युवाओं को रोज़गार मिले, बच्चों का भविष्य बदहाल न हो और सभी को उनके हक़ मिलें। कोई भी व्यवस्था अजर-अमर नहीं होती और एक दिन जनता की संगठित ताक़त मौजूदा लुटेरे निज़ाम को भी पलट देगी।

भगतसिंह ने कहा है, "बम और पिस्तौल इन्क़लाब नहीं लाते बल्कि इन्क़लाब की तलवार विचारों की सान पर तेज़ होती है"। हम भी उनके विचारों पर चलते हुए जनसघर्षों में भागीदारी के साथ-साथ पुस्तकालयों, पत्र-पत्रिकाओं, पर्चों समेत विभिन्न सांस्कृतिक माध्यमों से क्रान्तिकारी विचारों को लोगों के बीच लेकर जा रहे हैं। हम यह भी जानते हैं कि व्यापक मेहनतकश जनता ही कोई वास्तविक बदलाव ला सकती है। देश के इंसाफ़पसन्द नागरिकों व उर्जावान युवाओं से हमारी अपील है कि हमारे विचारों पर अवश्य गौर करें! सहमति-असहमति के बिन्दुओं पर हमसे ज़रूर बातचीत करें। बात जँचे तो हमारे कारवां के साथ जुड़ें और बदलाव के हमराही बनें। शहीदों के जो ख़्वाब अधूरे, इसी सदी में होंगे पूरे! इसी सदी में नये वेग से, परिवर्तन का ज्वार उठेगा!!


: दिशा संगठन के इन्द्रजीत द्वारा जारी

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