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Akhilesh Yadav in Azamgarh:आजमगढ़ मे बीजेपी ने अखिलेश यादव को घेरने के लिए उनके खास विधायक के बेटे को दिया एमएलसी का टिकिट

Akhilesh Yadav in Azamgarh: उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव मे समाजवादी पार्टी ने अपना वोट प्रतिशत डेढ़ गुणा कर लिया है जिससे भारतीय जनता पार्टी की नींद उडी हुई है चूंकि इस बार मायावती फैक्टर , ओवेसी फेकतर से बीजेपी ने अपनी जीत बरकरार रखी लेकिन बढ़े हुए वोट प्रतिशत के बावजूद अपनी सीटें बढ़ाने की जगह घटा बैठी जबकि वोट प्रतिशत मे इजाफा हुआ। इस बढ़े वोट के बाद भी सीटें घटना बीजेपी के लिए एक बड़ा सबक है ।
अब इस सबक से निपटने के लिए बीजेपी ने सपा के नेताओं पर डोरे डालने शुरू कर दिए है। चूंकि सपा अब पाँच साल तक सत्ता से दूर रहेगी तो नेताओं की दिलचस्पी भी सरकार के नजदीक रहने की बनी रहती है। सपा ने जिन लोगों ने जिला पंचायत मे बढ़िया परफ़ोर्मेंस दिखाई उन सबको टिकिट दिया जबकि जिनकी परफ़ोर्मेंस ठीक नहीं थी उन सबके टिकिट काट दिए। इसका खामियाजा उनको अपनी यादव बैलट मे भुगतना पड़ा । इसकी चलते उनके सबसे खास रहे एटा के एमएलसी रमेश बाबू यादव के बेटे ने बीजेपी का दामन कब थाम लिया पता ही नहीं चल सका । पता तब चला जब एमएलसी उम्मीदवार की सूची मे उनका नाम था। बीजेपी ने एटा कासगंज फर्रुखाबाद मैनपुरी फीरोजाबाद अलीगढ़ के आसपास के जिलों मे यादव वोट को साधने का प्रयास किया है। पहले उनके पास अकेले हरनाथ सिंह यादव थे जो अभी राज्यसभा सांसद है।
अब बीजेपी ने अखिलेश यादव के नव निर्वाचित विधायक रमाकांत यादव के बेटे अरुण यादव को एमएलसी का टिकिट देकर अखिलेश को सोचने पर मजबूर कर दिया है। अब आजमगढ़ छोड़ना नुकसान दायक होगा। फूलपुर-पवई से सपा विधायक रमाकांत यादव के पुत्र अरुण यादव को BJP ने आजमगढ़-मऊ से MLC का टिकट दिया। भाजपा चिंतक कैसे सोचते हैं-समझिये? भाजपा की ये 2 कदम पीछे कर 3 संसदीय सीट जीतने की तैयारी है। अब 2024 में अखिलेश यादव को आजमगढ़ से चुनाव लड़ने पर विचार करना होगा।
बता दें कि भाजपा ने आज़मगढ़ में रमाकांत यादव के बेटे अरुण यादव और एटा में रमेश बाबू यादव के बेटे आशीष यादव को एमएलसी का प्रत्याशी बना कर एक तीर से कई निशाने साधे हैं। इससे बीजेपी यादव बेल्ट के नए नेता तैयार कर रही है। सपा इस बार वोट बढ़ाकर जहां बीजेपी के सामने चुनौती बनकर उभरी है तो बीजेपी पाँच साल मे उसके सभी किले ध्वस्त करने की योजना पर निकल पड़ी है। अब सवाल यह है की आने वाले चुनाव तक अखिलेश यादव अपने पिलर बचा पाएंगे या फिर उनका किला भरभरा कर ढह जाएगा।




