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दिल की तकलीफ़ कम नहीं करते अब कोई शिकवा हम नहीं करते : जौन

दिल की तकलीफ़ कम नहीं करते
अब कोई शिकवा हम नहीं करते
जान-ए-जाँ तुझ को अब तिरी ख़ातिर
याद हम कोई दम नहीं करते
दूसरी हार की हवस है सो हम
सर-ए-तस्लीम ख़म नहीं करते
वो भी पढ़ता नहीं है अब दिल से
हम भी नाले को नम नहीं करते
जुर्म में हम कमी करें भी तो क्यूँ
तुम सज़ा भी तो कम नहीं करते
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