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क्या आप जानते हैं गुरुग्रंथ क्या है जिसके कथित अपमान के नाम पर एक दलित सिख की इतनी निर्मम हत्या की जा सकती है!

Shiv Kumar Mishra
17 Oct 2021 10:11 AM GMT
क्या आप जानते हैं गुरुग्रंथ क्या है जिसके कथित अपमान के नाम पर एक दलित सिख की इतनी निर्मम हत्या की जा सकती है!
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प्यार और भाईचारा का रिश्ता इकतरफा नहीं होता। वैसे भी भारत भूमि पर जन्म लेकर जिसने राम को त्याग दिया वह कौन सा सिख और उससे कैसा रिश्ता?

संजय कुमार तिवारी विस्फोट

क्या आप जानते हैं गुरुग्रंथ क्या है जिसके कथित अपमान के नाम पर एक दलित सिख की इतनी निर्मम हत्या कर दी गयी। श्री गुरुग्रंथ साहब में सिक्ख गुरुओं की बाणी है। उनका उपदेश है। इसमें प्रथम पांच गुरु और नौंवे गुरु शामिल हैं। गुरु गोविन्द सिंह की वाणी को अलग से दशम ग्रंथ के रूप में संग्रहित किया गया है।

लेकिन इन सिक्ख गुरुओं के अलावा गुरुवाणी में ज्यादातर वैष्णव संतों की वाणियां हैं। वैष्णव संत रामानंदाचार्य के शिष्य कबीर दास के 224 शबद गुरुग्रंथ में मौजूद हैं। इसके बाद वैष्णव संत नामदेव के 61 शबद। वैष्णव संत रविदास के 40 शबद। वैष्णव संत त्रिलोचन के 4 शबद। इसके अलावा कई अन्य वैष्णव संत जैसे संत पीपा जी, संत धन्ना जी, संत रामानंद जी, संत जयदेव, सूरदास, भीखा, परमानंद, सैण, बैणी आदि के पद भी गुरुग्रंथ में शामिल किये गये हैं।

सूफी संत बाबा फरीद को छोड़ दें तो गुरुग्रंथ एक तरह से वैष्णव संतों की वाणियों का संग्रह है। जिन दिनों इन वाणियों को संग्रह किया जा रहा था तब कोई ऐसा सिक्ख संत और गियानी नहीं था जो ये कहता कि ये तो वैष्णव साधु संत हैं, इनकी वाणी या शबद को हम गुरुग्रंथ में क्यों शामिल करें। उस समय तक ऐसा कोई बंटवारा नहीं था। नानक परंपरा के इतर भी जो ख्यात वैष्णव साधु संत थे उनकी वाणियों को गुरुग्रंथ में शामिल किया गया और हर सिक्ख उसका श्रद्धा से पाठ भी करता है।

फिर गुरुग्रंथ पर अकेले सिक्ख कैसे दावा कर सकते हैं? ये जितना सिक्खों का ग्रंथ है उतना ही वैष्णवों का भी ग्रंथ है क्योंकि इसमें वैष्णव साधु संतों की वाणियां और शब्द समाहित है। और नानक साहब कौन से अलग थे? गुरु रामदास कौन से अलग थे? गुरु अर्जुन देव कौन से अलग थे? गुरु हर गोविन्द कौन से अलग थे? गुरु तेग बहादुर किस धर्म को बचाने के लिए लड़ रहे थे?

अलग अलग कुछ नहीं था। हिन्दू धर्म एक विशाल वटवृक्ष की तरह है। इसमें इतनी शाखाएं हैं कि इसकी कोई निश्चित परिभाषा हो ही नहीं सकती। मत, पंथ संप्रदाय अलग अलग होकर भी मूल तत्व वही एक है। परब्रह्म परमात्मा। लेकिन संभवत: अपने आप को अलग धर्म दिखाने के जुनून में सिखों ने बहुत सारे सच झूठ का सहारा लेना शुरु कर दिया। राम, गोविन्द, विश्वंभर, हरि शब्द तक से दूरी बनानी शुरु कर दी। इसे गुरुग्रंथ से तो नहीं निकाल सकते लेकिन गुरुग्रंथ का जो अनुवाद किया उसमें राम शब्द को राम न रहने दिया।

इसकी शुरुआत होती है एक ब्रिटिश अधिकारी मैक्लिफ से। मैक्लिफ ने गुरुग्रंथ का अंग्रेजी में अनुवाद किया और सिखों को बताया कि तुम हिन्दू नहीं हो। तुम अलग हो वरना नानक से लेकर गुरु गोविन्द सिंह तक ये बंटवारा किसी ने नहीं किया था। लेकिन मैक्लिफ के इस बंटवारे को सिक्खों के एक समुदाय ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। इसी बंटवारे का लाभ ISI ने उठाया और सिखों में खालिस्तानियों के लिए जगह बना दी।

खैर, ये एक लंबा इतिहास है। इसे एक फेसबुक पोस्ट में नहीं समेटा जा सकता। लेकिन समय आ गया है कि हिन्दू अब कम से कम खालिस्तान और भिंडरावाले समर्थक सिखों को अपना कहना बंद कर दें। इनके गुरुद्वारों और लंगरों से भी दूरी बनाना शुरु कर दें। कौन जाने कल को आप गुरुद्वारे जाएं और कोई निहंग ये कहकर आप पर हमला कर दे कि आपने उनके सिक्ख धर्म की तौहीन कर दिया है। अगर वो अपने आप को हिन्दू वटवृक्ष का हिस्सा नहीं मानना चाहते तो हमें भी उनका परित्याग शुरु कर देना चाहिए। प्यार और भाईचारा का रिश्ता इकतरफा नहीं होता। वैसे भी भारत भूमि पर जन्म लेकर जिसने राम को त्याग दिया वह कौन सा सिख और उससे कैसा रिश्ता?

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