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डॉ राकेश पाठक का प्रकाश झा और शाहरुख़ खान के नाम खुला खत, ख़ुद अपनी ज़ुबान कब खोलेंगे आप?

Shiv Kumar Mishra
28 Oct 2021 5:14 PM GMT
डॉ राकेश पाठक का प्रकाश झा और शाहरुख़ खान के नाम खुला खत, ख़ुद अपनी ज़ुबान कब खोलेंगे आप?
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देश के जाने माने गाँधी वादी पत्रकार डॉ राकेश पाठक फिल्म एक्टर शाहरुख़ खान और फिल्म निर्माता प्रकाश झा से सवाल किया है, उनके द्वारा किये गये सवाल का सीधा मतलब लिखा है कि क्योंकि 'लड़े बिना मर जाना ज़िंदगी और मौत दोनों को तौहीन है।'

प्रिय प्रकाश जी और शाहरुख़ जी

सादर वंदे,

यह इकजाई ख़त इस खुली दीवार पर इसलिये लिख रहा हूँ क्योंकि 'ख़ाकसार' का आप दोनों से सीधा कोई राबिता नहीं है। हां सिनेमा का आशिक़ होने के नाते आप दोनों का मुरीद हूँ। लेकिन यह खातो क़िताबत एक आम शहरी और मामूली ख़बरनवीस की हैसियत से कुछ बातें आप दोनों से कर रहा हूँ।

बीते दिनों आप दोनों के साथ अलग अलग वजह से जो कुछ हुआ उसे सारा मुल्क़ देख रहा है। लोग समझ भी रहे हैं कि हुक़ूमत और उसकी सरपरस्ती में चंद बेलागम लोग/महकमे किस तरह आप पर आफ़त बन कर टूटे हैं।

आप जानते ही हैं कि अब भी इस मुल्क़ में बहुतेरे ऐसे लोग ज़िंदा हैं जो हर तरह की नाइंसाफ़ी के खिलाफ़ आवाज़ बुलंद करते हैं। आप दोनों के साथ भी इस मुश्किल वक़्त में तमाम लोग खड़े रहे।

मेरा सवाल आप दोनों से सिर्फ़ इतना है कि आप दोनों ही अपने साथ हो रही नाइंसाफ़ी और ज़ुल्म के खिलाफ़ अब तक एक लफ्ज़ भी क्यों नहीं बोले? ऐसी क्या मज़बूरी है कि आपके साथ बहुतेरे लोग खड़े हैं फिर भी आप ख़ामोश हैं ?

#प्रकाश_जी,

आपके साथ तो सीधे सीधे बदसुलूकी हुई लेकिन आपने आज की तारीख़ तक कोई बयान जारी नहीं किया। सुना है आप उन असामाजिक तत्वों के दवाब में अपनी वेबसीरीज़ का नाम भी बदलने को तैयार हो गए हैं।

अब तक आपने उस दिन के उपद्रव को लेकर गुंडों के खिलाफ़ पुलिस में कोई रपट भी नहीं लिखाई है। आख़िर क्यों? हुक़ूमत की जी हुजूरी में आप पहले एक दफ़ा कह चुके हैं कि कहीं कोई असहिष्णुता नहीं है। क्या अपने सरे आम हुई बदसुलूकी के बाद भी आप अपने उस ख़याल पर क़ायम हैं?

बिगाड़ के डर से कब तक और कितना बेइज्जत होना चाहेंगे आप?

क्या सच में ईमान की बात कहने का माद्दा आपमें नहीं है?

#शाहरुख़_जी,

आपके बेटे आर्यन का मामला पेचीदा ज़रूर है फिर भी अब तक जो कुछ सामने आया है उससे लग रहा है कि यह आपको ब्लैकमेल करने की कोई बड़ी साज़िश है। अगर आपका बेटा क़ानून की निगाह में मुज़रिम साबित हो तो उसे सज़ा ज़रूर मिलना चाहिये।

फ़िलवक्त साफ़ दिख रहा है कि जिस मामले में आर्यन को एक दिन में ज़मानत मिलना थी उसमें आपको तीन हफ़्ते तक अदालत की चौखट पर सर पटकना पड़ा।

आप बेहतर जानते होंगे कि मुल्क़ में तमाम लोग ऐसे हैं जो पहले दिन से आपके और आर्यन के साथ हो रही ज्यादती के खिलाफ़ आपके साथ थे।

लेकिन हैरानी है कि आप ख़ुद अब तक ख़ामोश हैं।

एक सच्चे और ईमानदार हिंदुस्तानी होने के नाते आपका फर्ज़ है कि आप ख़ुद सामने आइये और मुल्क़ को बताइये कि आपके साथ आख़िर हो क्या रहा है...क्यों हो रहा है?

हो सके तो आप दोनों अपनी लड़ाई ख़ुद लड़ने का माद्दा पैदा कीजिये।

उठिए..सामने आइये...और अपने हक़ के लिये लड़ कर ज़िंदा होने का सुबूत पेश कीजिये..

क्योंकि 'लड़े बिना मर जाना ज़िंदगी और मौत दोनों को तौहीन है।'

अपना ख़याल रखिये।

ख़ाकसार

डॉ राकेश पाठक

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