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पुरुषों के लिए बड़ी खबर: कमाऊ पत्नी को तलाक के बाद उठाना होगा पति का खर्च!

Shiv Kumar Mishra
5 April 2022 4:52 AM GMT
पुरुषों के लिए बड़ी खबर: कमाऊ पत्नी को तलाक के बाद उठाना होगा पति का खर्च!
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पति भी कर सकते हैं मेंटेनेंस की डिमांड

तो क्या पत्नी देगी अपने पति को मेंटेनेंस यानी गुजारा भत्ता?

अक्सर आपने सुना होगा कि तलाक के बाद पति अपनी पत्नी को मेंटेनेंस देता है, लेकिन इस बार हाईकोर्ट ने पति के हक में फैसला करते हुए पत्नी को आदेश दिया है कि वो अपने तलाकशुदा पति को गुजारा भत्ता दे।

क्या था मामला?

बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने एक पत्नी को आदेश दिया कि वह अपने तलाकशुदा पति को हर महीने मेंटेनेंस दे। आप सोच रहे होंगे ऐसा क्यों? तो चलिए जानते हैं-

17 अप्रैल 1992 को एक महिला और पुरूष की शादी हुई। बाद में पत्नी ने क्रूरता को आधार बनाते हुए अपने पति से तलाक मांगा। साल 2015 में नांदेड़ की अदालत ने तलाक को मंजूरी दे दी थी।

पति ने निचली अदालत में एक याचिका लगाई और पत्नी से हर महीने 15 हजार रुपए पर्मानेंट मेंटेनेंस देने की मांग की।

पति ने कहा कि उसके पास कोई सोर्स ऑफ इनकम नहीं है। वहीं, उसकी पत्नी ने एमए और बीएड तक पढ़ाई की है और स्कूल टीचर है।

पति ने दावा किया…

उसने अपनी पत्नी को पढ़ाया है।

पत्नी हर महीने 30 हजार रुपए कमाती है।

पति की सेहत ठीक नहीं रहती है।

वह कोई नौकरी नहीं कर सकता है।

पत्नी के पास घर का सारा सामान और प्रॉपर्टी भी है।

पत्नी ने दावा खारिज करने के लिए कहा…

पति एक किराने की दुकान चला रहा है।

वह एक ऑटो रिक्शा का मालिक भी है।

रिक्शा किराए पर देकर पैसे कमाता है।

दोनों की एक बेटी है, जो मां पर निर्भर है।

कोर्ट ने क्या आदेश दिया?

दोनों पक्षों की इनकम और प्रॉपर्टी को देखते हुए कोर्ट ने पत्नी को आदेश दिया कि वो अपने पति को हर महीने 3 हजार रुपए मेंटेनेंस दे।

इस केस के बारे में जानने के बाद मेंटेनेंस को लेकर आपके मन में जितने भी सवाल आ रहे हैं उन सबका जवाब दे रहे हैं– एडवोकेट सचिन नायक और एडवोकेट डी.बी. गोस्वामी

सवाल: मेंटेनेंस का मतलब क्या है?

जवाब: जब एक व्यक्ति दूसरे को खाना, कपड़ा, घर, एजुकेशन और मेडिकल जैसी बेसिक जरूरत की चीजों के लिए फाइनेंशियल सपोर्ट देता है तो उसे मेंटेनेंस यानी गुजारा भत्ता कहते हैं।

सवाल: मेंटेनेंस की अर्जी कोर्ट में कब लगाई जा सकती है?

जवाब: अगर पति और पत्नी के रिश्ते खराब हो गए हैं और दोनों एक-दूसरे के साथ कानूनी तौर पर नहीं रहते हैं तो पति या पत्नी, दोनों में से कोई भी मेंटेनेंस की अर्जी कोर्ट में लगा सकता है।

सवाल: मेंटेनेंस की मांग कौन-कौन कर सकता है?

जवाब: शारीरिक या मानसिक तौर से कमजोर पति जो पैसे कमाने के लायक नहीं है।

तलाकशुदा पत्नी।

बुजुर्ग माता-पिता।

अविवाहित या विधवा बहन।

सबूत के बगैर नहीं बनेगी बात

पति ने अगर पत्नी से मेंटेनेंस लेने का दावा किया है। तो पति को कोर्ट में साबित करना होगा कि वो शारीरिक या मानसिक तौर पर कमाने के लायक नहीं है और उसकी पत्नी पैसे कमाती है।

सवाल: पति के मेंटेनेंस को लेकर कानून क्या कहता है?

जवाब: हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के अनुसार, पति और पत्नी दोनों एक-दूसरे से मेंटेनेंस की डिमांड कर सकते हैं।

धारा 24- अगर कोर्ट में पति-पत्नी का कोई केस चल रहा है और कार्यवाही के दौरान कोर्ट को ये पता लग जाए कि पति खुद की जरूरत पूरी नहीं कर पा रहा है। यहां तक की उसके पास इस कार्यवाही के लिए भी पैसे नहीं है तो कोर्ट पत्नी को आदेश दे सकता है कि वो अपने पति को मेंटेनेंस और कोर्ट केस में आने वाले खर्च के लिए पैसे दे। हालांकि, इसमें पत्नी के पास सोर्स ऑफ इनकम होना जरूरी है।

अगर पति के पास प्रॉपर्टी और कमाने की क्षमता है तो वो पत्नी से मेंटेनेंस का दावा नहीं कर सकता है। अगर पति ने कोर्ट में पत्नी से मेंटेनेंस लेने का दावा किया है तो उसे सबूत भी देना होगा कि वो शारीरिक और मानसिक तौर पर कमाने के लायक नहीं है।

धारा 25- पति को पर्मानेंट मेंटेनेंस और भरण-पोषण (alimony) मिलने का नियम शामिल है। इस परिस्थिति में कोर्ट पति और पत्नी दोनों की प्रॉपर्टी को ध्यान में रखकर विचार करता है। मान लीजिए कोर्ट ने पत्नी को आदेश दिया कि वो अपने पति को महीने में एक पर्मानेंट मेंटेनेंस या भरण-पोषण (alimony) दे। फिर कुछ समय बाद अगर पति कमाने लायक हो जाता है और काम करने लगता है तो पत्नी के दावे पर कोर्ट अपने फैसले को रद्द या बदल सकती है।

सवाल: इन सब के बीच बच्चों का खर्च देखा जाता है या नहीं?

जवाब: हिंदू मैरिज एक्ट की धारा-25 के तहत तलाक के वक्त एक साथ या फिर महीने के हिसाब से मेंटेनेंस तय किया जाता है। मान लीजिए अगर पति का वेतन 20 हजार है और पत्नी का 50 हजार। तो पूरे परिवार की इनकम 70 हजार मानी जाएगी। दोनों पार्टनर का अधिकार 35-35 हजार पर होगा। कोर्ट इस तरह से इनकम को ध्यान में रखकर फैसला सुनाता है। साथ ही ये भी देखता है कि बच्चे किसके साथ रहते हैं। उनके कितने खर्च हैं। उस आधार पर भी खर्चा तय होता है। पति के पास नौकरी न होने की स्थिति पर बच्चों की देखरेख का खर्च भी पत्नी के पास होता है अगर वह नौकरीपेशा है तब।

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