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Earth Day special on 22 April: पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल पर विशेष: विनाश की ओर बढ़ रही है धरती - ज्ञानेन्द्र रावत

Shiv Kumar Mishra
22 April 2022 5:26 AM GMT
Earth Day special on 22 April: पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल पर विशेष: विनाश की ओर बढ़ रही है धरती - ज्ञानेन्द्र रावत
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Earth Day special on 22 April: आज धरती विनाश के कगार पर है। मानवीय स्वार्थ ने पृथ्वी, प्रकृति और पर्यावरण पर जो दुष्प्रभाव डाला है, उससे पृथ्वी बची रह पायेगी, आज यही मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ है। शोध और अध्ययन सबूत हैं कि अभी तक छह बार धरती का विनाश हो चुका है और अब धरती एक बार फिर सामूहिक विनाश की ओर बढ़ रही है। यदि बीते 500 सालों के इतिहास पर नजर डालें तो धरती पर तकरीब 13 फीसदी से ज्यादा प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं और हजारों की तादाद में प्रजातियां विलुप्ति की ओर अग्रसर हैं। यह जैव विविधता के गिरावट के भयावह संकट का संकेत है। इसका सबसे बडा़ कारण प्रकृति का बेतहाशा दोहन, शोषण और बढ़ता प्रदूषण है। जलवायु परिवर्तन ने इसमें अहम भूमिका निबाही है। यह कहना है वरिष्ठ पर्यावरणविद ज्ञानेन्द्र रावत का। उक्त विचार रावत ने विश्व पृथ्वी दिवस की पूर्व संध्या पर बातचीत के दौरान व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि जीव - जंतुओं की हजारों प्रजातियों, प्राकृतिक स्रोतों और वनस्पतियों की तेजी से हो रही विलुप्ति के चलते पृथ्वी दिन-ब-दिन असंतुलित हो रही है। आधुनिकीकरण के मोहपाश के बंधन के चलते दिनोंदिन बढ़ता तापमान, बेतहाशा हो रही प्रदूषण वृद्धि, पर्यावरण और ओजोन परत का बढ़ता ह्वास, प्राकृतिक संसाधनों का अति दोहन, ग्रीन हाउस गैसों का दुष्प्रभाव, तेजी से जहरीली और बंजर होती जा रही जमीन, वनस्पतियों की बढ़ती विषाक्तता आदि यह सब हमारी जीवनशैली में हो रहे बदलाव का भीषण दुष्परिणाम है। सच कहा जाये तो इसमें जनसंख्या वृद्धि के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। इसने पर्यावरण, प्रकृति और हमारी धरती के लिए भीषण खतरा पैदा कर दिया है।

दुखदायी बात यह है कि हम यह नहीं सोचते कि यदि प्राकृतिक संसाधन और हमारी जैव संपदा ही खत्म हो गयी तब क्या होगा? जैव विविधता के ह्वास की दिशा में यदि हम वैश्विक स्तर पर नजर डालें तो लैटिन अमरीका और कैरेबियन क्षेत्र सर्वाधिक प्रभावित हैं। क्योंकि 52 फीसदी कृषि उत्पादन से जुडी़ भूमि विकृत हो चुकी है, 70 फीसदी जैविक नुकसान में खाद्य उत्पादन से जुडे़ कारक जिम्मेवार हैं। 28 फीसदी ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए खाद्य प्रणाली जिम्मेवार है। 80 फीसदी वैश्विक वनों की कटाई के लिए हमारी कृषि जिम्मेवार है और 50 फीसदी मीठे पानी की प्रजातियों के नुकसान के लिए खाद्य उत्पादन से जुडे़ कारक जिम्मेवार हैं। यदि अब भी हम अपनी जैव विविधता को संरक्षित करने में नाकाम रहे और मानवीय गतिविधियां इसी तरह जारी रहीं तो मनुष्य का स्वास्थ्य तो प्रभावित होगा ही, विस्थापन बढे़गा, गरीब इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे, तकरीब 85 फीसदी आद्र भूमि का खात्मा हो जायेगा, कीट-पतंगों के साथ बडे़ प्राणियों पर सबसे ज्यादा खतरा मंडराने लगेगा और प्राकृतिक संपदा में 40 फीसदी से ज्यादा की कमी आ जायेगी। इसलिए समय की मांग है कि हम अपनी जीवन शैली में बदलाव लाएं, प्रकृति के साथ तादात्म्य स्थापित करें, सुविधावाद को तिलांजलि दे बढ़ते प्रदूषण पर अंकुश लगाएं अन्यथा मानव सभ्यता बची रह पायेगी, इसकी आशा बेमानी होगी।

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