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राज्यपाल के खिलाफ यौन उत्पीड़न मामले में सुप्रीम कोर्ट पहुंची महिला कर्मचारी, जानिए पूरा मामला

Special Coverage Desk Editor
4 July 2024 12:41 PM IST
राज्यपाल के खिलाफ यौन उत्पीड़न मामले में सुप्रीम कोर्ट पहुंची महिला कर्मचारी, जानिए पूरा मामला
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2 जून को पश्चिम बंगाल के राजभवन में काम करने वाली एक महिला कर्मचारी ने राज्यपाल आनंद बोस पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे और अब इसे लेकर महिला ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. महिला ने सुप्रीम कोर्ट में राज्यपाल के खिलाफ याचिका दायर की है.

पश्चिम बंगाल के राजभवन में काम करने वाली एक अस्थायी महिला संविदा कर्मचारी ने 2 मई को राज्यपाल सीवी आनंद बोस के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. इस मामले को लेकर प्रदेश में राजनीतिक बयानबाजी भी हुई. खुद प्रदेश की मुखिया ममता बनर्जी ने राज्यपाल पर एक सभा को संबोधित करते हुए जमकर निशाना साधा. ममता बनर्जी ने राज्यपाल पर आरोप लगाते हुए कहा था कि अब कोई भी महिला कर्मचारी राजभवन में जाने से डरती है और इसकी शिकायत खुद उनसे महिला कर्मचारियों ने की है. साथ ही ममता बनर्जी ने संविदा महिला कर्मचारी के आरोपों का भी जिक्र किया था. जिसके बाद राज्यपाल आनंद बोस ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ मानहानि का केस दर्ज कराया था. इन सबके बीच महिला कर्मचारी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुए न्याय की गुहार लगाई है. साथ ही पूरे मामले में दखल देने की मांग करते हुए राज्यपाल को संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत आपराधिक केस में दिए जाने वाले छूट को भी चुनौती दी है.

सुप्रीम कोर्ट में राज्यपाल के खिलाफ दायर की याचिका

आपको बता दें कि राजभवन में काम करने वाली अस्थायी महिला संविदा कर्मचारी ने याचिका में कहा है कि जब वह अपनी नौकरी स्थायी करने की मांग को लेकर राज्यपाल से मिलने के लिए राजभवन पहुंची तो उसके साथ यौन उत्पीड़न किया गया. महिला ने राज्यपाल आनंद बोस पर यह आरोप 2 मई को लगाया था. जिसके खिलाफ महिला ने राज्यपाल पर कार्रवाई की मांग की है. साथ ही यह भी मांग की गई है कि बंगाल पुलिस को इसकी जांच के निर्देश दिए जाए और महिला न अपने और परिवार के लिए सुरक्षा की भी मांग की है. वहीं, मानहानि को लेकर सरकार से मुआवजे की भी मांग की गई है.

जानिए क्या होता है अनुच्छेद 361?

आपको बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत देश के राष्ट्रपति और राज्यपाल को संवैधानिक मुखिया मानते हुए उन्हें सिविल और क्रिमिनल मामलों में संवैधानिक सुरक्षा दी गई है. इसके अनुसार राष्ट्रपति और राज्यपाल के उनके कार्यकाल के दौरान किसी प्रकार का कोई आपराधिक कार्रवाई नहीं की जा सकती है ताकि वह बिनी किसी डर के ईमानदारी पूर्वक अपना काम कर सके.

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