Top Stories

पश्चिमी यूपी में जाटों का बीजेपी से मोहभंग, अजीत में दिखा रहे आस्था

Shiv Kumar Mishra
25 Feb 2021 7:06 AM GMT
पश्चिमी यूपी में जाटों का बीजेपी से मोहभंग, अजीत में दिखा रहे आस्था
x
जाट मतदाता फिर से यु टर्न लेकर राष्ट्रीय लोक दल की ओर मुड़ रहा है।

आकाश नागर

देशभर में फैले किसान आंदोलन ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की दिशा और दशा को परिवर्तित कर दिया है । केंद्र सरकार द्वारा तीन कृषि बिल लाने से पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा का वोट बैंक रिजर्व बताया जा रहा था। उम्मीद की जा रही थी कि 2022 के विधानसभा चुनाव में इस वोट बैंक के बलबूते एक बार फिर से उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनेगी।

लेकिन 26 जनवरी को हुई दिल्ली में ट्रैक्टर परेड रैली ने सारे समीकरण उलटफेर कर दिए। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जहां किसानों के पक्ष में हवा चल रही है । वहीं दूसरी तरफ भाजपा के विरोध में एक जबरदस्त लहर शुरू हो गई है। जिसका श्री गणेश पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटलैंड से हो गया है।

यहां के जाट बाहुल्य क्षेत्रों में भाजपा का विरोध होना शुरू हो गया है । 2 दिन पहले जब प्रदेश के कैबिनेट मंत्री संजीव बालियान शामली के गांव सौरम पहुंचे तो वहां किसानों ख़ासकर जाटों में उनका जबरदस्त विरोध किया। "संजीव बलियान वापस जाओ" के नारे के साथ ही मंत्री की गाड़ियों के काफिले की घेराबंदी कर दी गई।

इसके बाद मंत्री समर्थक और किसान आमने – सामने आ गए। इसके बाद आपस में झगड़ा भी हुआ । दोनों पक्षों में जमकर मारपीट हुई। यहां तक कि लाठी-डंडे भी चले । सूचना तो यह भी मिल रही है कि इस झगड़े में गोलियां भी चली। जिसमें सौरम गांव के 4 लोग घायल भी हो गए। बाद में थाने में रिपोर्ट भी दर्ज हुई । यह झगडा जाटों का भाजपा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहा है।

इस झगड़े के बाद लोकदल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जयंत चौधरी ने एक ट्वीट किया और कहा कि किसानों के पक्ष में बात नहीं होती तो कम से कम अपना व्यवहार तो अच्छा रखो। जयंत चौधरी का इशारा मंत्री संजीव बालियान की तरफ था । चौधरी और बालियान में 36 का आंकड़ा है।

संजीव बालियान वह सांसद है जिन्होंने जयंत चौधरी के पिता और लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह को लोकसभा चुनाव में हराया था । अजीत सिंह के साथ जयंत चौधरी भी लोकसभा का चुनाव हार गए थे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहले लोकदल का एकछत्र राज हुआ करता था। लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद यहां भाजपा ने जाटों में अपनी घुसपैठ कर दी । जिसके चलते जाट मतदाता चौधरी अजीत सिंह को छोड़कर भाजपा के पाले में चले गए।

उधर, भाजपा जाटों की तरफ से आश्वस्त थी कि जिस तरह 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में इस जाति के मतदाताओं ने भाजपा को एकमत होकर मतदान किया था ऐसा ही 2022 के विधानसभा चुनाव में भी होगा। लेकिन किसान नेता राकेश टिकैत के आंदोलन ने भाजपा की सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। फिलहाल, जाट मतदाता भी अब भाजपा का मोह छोड़ चौधरी अजीत सिंह की तरफ मुखातिब होता नजर आ रहा है। इससे चौधरी अजीत सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी गदगद है।

26 जनवरी से पहले किसान आंदोलन में चौधरी परिवार दूरी बनाए हुए था। लेकिन 28 जनवरी की शाम को जब किसान नेता राकेश टिकैत भावुक हुए और मीडिया के सामने रोने लगे तो सबसे पहले उनके समर्थन में लोक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी अजीत सिंह और जयंत चौधरी आए थे। अगले दिन मुजफ्फरनगर में हुई महापंचायत के दौरान जयंत चौधरी नरेश टिकैत के साथ मंचासीन हुए थे। तब जाट मतदाता ने पहली बार कहा कि भाजपा को वोट देकर उन्होंने बड़ी भूल की थी। यह भूल उनके लिए अब पश्चाताप बन रही है ।

यहां यह भी बताना जरूरी है कि भाजपा के तीन कृषि बिल कानून पर अड़े रहने के बाद जाट मतदाता अब चौधरी अजीत सिंह की तरफ से आस लगा रहा है। यह मतदाता अजीत सिंह की झोली से बाहर हो चुका था । इसमें राकेश टिकैत की भी अहम भूमिका रही थी । राजनीतिक सूत्र बताते हैं कि 2017 और 2019 के विधानसभा और लोकसभा चुनाव में जाटों का रूख भाजपा की तरफ कराने में राकेश टिकैत ने अहम भूमिका निभाई थी।

तब राकेश टिकैत का सॉफ्ट कॉर्नर चौधरी अजीत सिंह की तरफ ना होकर भाजपा के प्रति हो गया था । जिससे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा बहुमत में आ गई थी । जो बाद में राकेश टिकैत और चौधरी अजीत सिंह में राजनीतिक दुश्मनी का कारण बनी थी। 26 जनवरी के बाद यह राजनीतिक दुश्मनी दोस्ती में परिवर्तित होती हुई दिखाई दे रही है ।

अब टिकैत परिवार भी चौधरी अजीत सिंह के पास जाकर किसानों का समर्थन करने की उम्मीद कर रहा है । राष्ट्रीय लोक दल भी यही चाहता था कि उसका पुराना वोट बैंक जाट उसके वापस पास आ जाए। फिलहाल , राष्ट्रीय लोकदल की यह मनसा कामयाब होती हुई दिखाई दे रही है। जाट मतदाता फिर से यु टर्न लेकर राष्ट्रीय लोक दल की ओर मुड़ रहा है।

गौरतलब है कि 2017 के विधानसभा चुनावों में पश्चिम उत्तर प्रदेश की 126 सीटों में से बीजेपी ने 109 सीटें जीती थीं । जबकि सपा 20, कांग्रेस दो, बसपा 3 सीट जीती थी और एक सीट आरएलडी को मिली थी। किसान आंदोलन के चलते एक बार फिर गुर्जर, जाट-मुस्लिम सहित तमाम किसान जातियां एक साथ आती हुई दिखाई दे रही हैं । 2017 के विधानसभा चुनाव में पश्चिम उत्तर प्रदेश में एक तरफा भाजपा के पक्ष में माहौल था। लेकिन अब यह माहौल किसान आंदोलन के चलते पलटने लगा है।

साभार दा संडे पोस्ट

Next Story