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जज साहब, जब कोरोना नहीं है, तो लॉकडाउन, मास्क और फिर जबरन टीकाकरण क्यों?

Desk Editor
15 Sep 2021 6:27 AM GMT
जज साहब, जब कोरोना नहीं है, तो लॉकडाउन, मास्क और फिर जबरन टीकाकरण क्यों?
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दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, अदालत ने फैसला सुनाया कि सरकार वायरस की उपस्थिति को साबित करने में विफल रही है।

कनाडा के नागरिकों ने कोरोना के खिलाफ कोर्ट की जंग जीत ली। कनाडा के अल्बर्टा प्रांत में, लॉकडाउन, मास्क और जबरन टीकाकरण सभी को समाप्त कर दिया गया है।

कोरोना को अब आधिकारिक "महामारी" के बजाय "फ्लू वायरस" के रूप में संदर्भित किया जा रहा है। कोर्ट के फैसले के बाद से पूरे प्रांत में दहशत खत्म हो गया है क्योंकि कोरोना का कोई अस्तित्व था ही नहीं।

क्या हुआ ?

दरअसल, कनाडा के नागरिक पैट्रिक किंग ने हजारों अन्य लोगों के साथ कोरोना के नाम पर जबरन लॉकडाउन, मास्क और टीकाकरण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था। सरकार ने सरकारी निर्देशों का उल्लंघन करने वालों पर नकेल कसी पकड़ धकड़ किया और जुर्माना लगाया। प्रांतीय स्वास्थ्य मंत्री द्वारा उल्लंघन के लिए पैट्रिक पर 1200 डॉलर का जुर्माना भी लगाया गया था।

कोरोना की पहचान की पूरी जानकारी रखने वाले पैट्रिक को पता था कि महामारी नकली है और उसका अस्तित्व ही नहीं है। उन्हें मौका मिला और वे कोरोना का पर्दाफाश करने के लिए अदालत गए।

पैट्रिक ने कोर्ट में स्टैंड लिया कि जज साहब, जब कोरोना का वजूद ही नहीं तो क्या पाबंदियां?? पैट्रिक ने सरकार को चुनौती दी कि पहले अदालत में साबित करें कि कोरोना का वैज्ञानिक अस्तित्व है, फिर मैं जुर्माना भरूंगा और मास्क पहनूंगा।

कोर्ट ने सरकार के स्वास्थ्य मंत्री को यह साबित करने का आदेश दिया कि कोरोना का वैज्ञानिक अस्तित्व है। यहां सरकार के गले में हड्डी फंस गई।

सरकार के मंत्री ने हार मान ली और स्वीकार किया कि कोरोना वायरस वैज्ञानिक रूप से मौजूद नहीं था क्योंकि हमने कभी वायरस को अलग नहीं किया था। यानी हमारे पास कोरोना को साबित करने के लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है.

पैट्रिक ने जवाब दिया: जज साहब, जब कोरोना नहीं है, तो लॉकडाउन, मास्क और फिर जबरन टीकाकरण क्यों?

याद रहे, विज्ञान की दुनिया में किसी भी वायरस को "आइसोलेट" किए बिना उसका टीकाकरण करना शत-प्रतिशत असंभव है, क्योंकि आइसोलेट करने के बाद ही वायरस का एबीसी पता लग सकता है कि यह कैसे काम करता है। उसके बाद ही इस गणना के अनुसार उसके खिलाफ दवा तैयार की जाती है। जबकि वर्तमान कोरोना को कभी अलग नहीं किया गया है, जो टीके विकसित किए गए हैं वे सभी मान्यताओं पर आधारित हैं जिन्हें किसी स्वतंत्र निकाय द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया है। संक्षेप में कहें तो विज्ञान का मूल उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से दुनिया पर राजनीति विज्ञान को वायरस को अलग करने के मुद्दे पर गोलबंद (क़ैद) करना है और इसके मद्देनजर सभी को जबरन टीका लगाने का एजेंडा पूरा किया जाना है।

परीक्षण में "राजनीति विज्ञान" बुरी तरह से उजागर हुआ था। इस तरह के विज्ञान का "वास्तविक विज्ञान" से कोई लेना-देना नहीं है।

पैट्रिक ने कहा: न्यायाधीश, जब वैज्ञानिकों ने कभी वायरस को अलग नहीं किया है, तो हमें मास्क क्यों पहनना चाहिए, हमें अपनी नौकरी क्यों छोड़नी चाहिए और हमें किस उद्देश्य से टीकाकरण करना चाहिए और वायरस को अलग किए बगैर उन्होंने टीका कैसे बनाया?

दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, अदालत ने फैसला सुनाया कि सरकार वायरस की उपस्थिति को साबित करने में विफल रही है।

तब से, कनाडा के अल्बर्टा प्रांत की प्रांतीय सरकार ने आधिकारिक स्तर पर सभी कर्फ्यू हटा लिया है।

एक बात तो तय है कि भारतीय मीडिया, सरकार और लिफाफा पत्रकार आपको इस खबर की सूचना नहीं देंगे, वे इसे आपसे छिपाएंगे क्योंकि वे आपको अनजान रखकर टीकाकरण के एजेंडे को पूरा करने में संयुक्त राष्ट्र के साथ हैं। इसलिए, यह आपकी और मेरी जिम्मेदारी है कि ज्यादा से ज्यादा इसे लोगों तक पहुंचाएं।

मुझे लगता है कि कोरोना के खिलाफ भारत में भी कानूनी जंग होनी चाहिए। गंभीर वकीलों को सरकार को कोरोना की उपस्थिति साबित करने के लिए अदालत में चुनौती देनी चाहिए कि कोरोना की उपस्थिति साबित करें वरना प्रतिबंध अवैध हैं। जब सरकार इसे साबित करने में नाकाम रहेगी तो कोरोना के सारे ड्रामे अपने आप धरातल पर आ जाएंगे, फिर कनाडा की सरकार की तरह यहां के लोग भी राहत की सांस ले सकेंगे।


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