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कल्याण सिंह की अधूरी रह गई है आखिरी इच्छा

कल्याण सिंह की अधूरी रह गई है आखिरी इच्छा
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प्रोफाइल फोटो

भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे दिवंगत कल्याण सिंह की पहली जयंती ( Kalyan Singh Birth Anniversary ) आज 'स्मृति दिवस' के रूप में मनाई जा रही है। बीजेपी के वरिष्ठ नेता रहे कल्याण सिंह (Kalyan Singh) साल 1932 में आज के ही दिन अतरौली में जन्मे थे. पूरे प्रदेश में कल्याण सिंह जैसा दिग्गज नेता के चर्चे रहे हैं. राम जन्भूमि को आज जो रूप मिला है, उसके लिए संघर्ष करने वालों में से एक कल्याण सिंह भी थे. वे हमेशा खुद से पहले अपने लोगों, अपने प्रदेश के बारे में सोचते थे.

वही 500 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद करोड़ों राम भक्तों की मुराद पूरी हो गई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण के लिए आधारशिला रखी. लेकिन इस सपने को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले शख्स की एक इच्छा अधूरी रह गई. जी हां हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की, जिनका 21 अगस्त 2021 को लखनऊ के एसजीपीजीआइएमएस में 89 वर्ष की उम्र में निधन हो गया.

वह कल्याण सिंह ही थे जिन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए 6 दिसंबर 1992 के एक फैसले से लाखों रामभक्तों का मनोरथ पूरा होने का रास्ता तो खोल दिया था. लाख दबाव पड़ने के बावजूद उन्होंने कारसेवकों पर गोली नहीं चलवाई. इसके लिए उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी लेकिन जीवन में इसका कभी रत्ती भर भी अफसोस नहीं किया. कई साक्षात्कारों में उन्होंने साफ-साफ शब्दों में कहा कि राम मंदिर के लिए मुझे 10 सरकारें भी कुर्बान करनी पड़ें तो मंजूर है.

जब पीएम मोदी ने राम मंदिर का शिलान्यास किया तो पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने इसे अपना सपना पूरा होना बताया था. वह अपने जीवनकाल में अयोध्या में भव्य राम मंदिर का दर्शन करना चाहते थे. मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा था कि श्री राम देश के करोड़ों लोगों की आस्था के केंद्र हैं. मैं भी उन्हीं करोड़ों लोगों में से एक हूं. मेरे यह आकांक्षा थी कि भव्य राम मंदिर बन जाए, जो बनने जा रहा है. अब मैं चैन से, बड़ी शांति से मृत्यु का वरण कर सकता हूं. यह इच्छा है कि मेरे जीवनकाल में भव्य राम मंदिर तैयार हो जाए.

6 दिसंबर, 1992 को हजारों कारसेवकों ने विवादित ढांचे पर चढ़ाई कर दी और उसे ढहाने लगे. केंद्रीय गृह मंत्रालय से बार-बार दबाव पड़ने के बाजजूद तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने पुलिस को कारसेवकों पर गोली चलाने की अनुमति नहीं दी. ढांचा विध्वंस होते ही इस घटना की पूरी जिम्मेदारी अपने ऊपर लेते हुए शाम को राजभवन पहुंचकर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. इस मामले में भाजपा सरकार को बर्खास्त कर दिया गया था.

एक इंटरव्यू में कल्याण सिंह ने कहा, ''मुझे अपने फैसले पर गर्व है. मेरे माथे पर एक भी रामभक्त की हत्या का कलंक नहीं है. इतिहासकार यह भी लिखेंगे कि राम मंदिर निर्माण की भूमिका 6 दिसंबर, 1992 को ही बन गई थी. मुझे लगता है कि ढांचा न गिरता तो न्यायालय से मंदिर को जमीन देने का निर्णय भी शायद न होता. वैसे भी किसी के प्रति श्रद्धा और समर्पण हो तो उसके लिए कोई भी बलिदान छोटा होता है. गोली चलवा देता तो जरूर मलाल होता.''

विवादित ढांचा विध्वंस मामले को लेकर मुकदमा चला. कल्याण सिंह, लालकृष्ण आडवाणी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार जैसे दिग्गज भाजपा नेताओं को मामले में आरोपी बनाया गया. बीते साल 5 अगस्त को राम मंदिर भूमिपूजन हुआ और 30 सितंबर को सीबीआई की विशेष अदालत ने बाबरी विध्वंस मामले में अपना फैसला सुनाया. 28 वर्ष बाद आए इस फैसले में सभी आरोपितों को बरी कर दिया गया.

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