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करीब 36 साल पहले का काशीराम जी का आकलन गलत हो गया।

Islam Hussain
1986 में मैंने काशीराम जी से लिए इंटरव्यू पर एक रिपोर्ट अपने अखबार को भेजी, अगले दिन अखबार में रिपोर्ट छपी तो अनेक मित्रों और पाठकों ने सख़्त, मज़ाक वाली और उपहास वाली प्रतिक्रिया दी। उस समय काशीराम जी को मीडिया वाले ज्यादा नहीं जानते थे बीएसपी का वह शुरुआती दौर था। खुद काशीराम जी भी मीडिया को तवज्जो नहीं देते थे। हमारे शहर में एक रैली में आए थे और तब उन्होंने मुझसे एक घंटे से ज्यादा बात की थी।
मेरी उस रिपोर्ट में सम्पादक जी कांटछांट कर दी थी, फिर भी कुछ बातें बहुसंख्यक के हजम करने वाली नहीं थी।
काशीराम जी ने कहा था हम अगले दस साल में यूपी में अपनी सरकार बना लेंगे। सरकार बना कर हम ब्राह्मणों और सवर्ण वर्ग को उनकी जनसंख्या के अनुसार आरक्षण देंगे। मेरी रिपोर्ट में काशीराम जी की इन दोनों बातों पर लोगों ने उपहास और मज़ाक बनाया था। यह बात दूसरी है कि अगले दस सालों में बीएसपी सरकार बनाने में सक्षम हो गई थी।
दूसरी बात सवर्ण वर्ग को आरक्षण देकर शेष वर्ग को ज्यादा प्रतिनिधित्व देने की बात पूरी नहीं हो सकी।
काशीराम जी का ब्राह्मणवाद के मुद्दे पर आंकलन भी ग़लत निकला। उनका मानना था कि कांग्रेस को ख़त्म करदो, तो ब्राह्मणवाद अपने आप ख़त्म हो जाएगा। आज कांग्रेस जैसे जैसे खत्म होती गई है या मेन फोल्ड से हट गई है तो ब्राह्मणवाद और मज़बूत होता गया है और आज वो उग्र हिन्दूवाद के ख़तरनाक वर्ज़न में हमारे सामने है।
काशीराम जी ने बसपा की स्थापना का एक मात्र लक्ष्य सत्ता प्राप्त करना या सत्ता में बहुजन ने की भागीदारी सुनिश्चित करना बताया था। लेकिन उसके लिए पार्टी की कोई सांगठनिक व्यवस्था नहीं की थी, और कहा था पार्टी का कोई संविधान नहीं है, पार्टी संविधान बाद की बात है। पहला लक्ष्य सत्ता प्राप्त करना है। इसका फल यह हुआ कि आज बीएसपी सांगठनिक रूप से कहीं नहीं है और न वो किसी संघर्ष के लिए बाकी बची है। टूटते-फूटते, कटते-छंटते वो एक ही नेता मायावती के आसपास रह गई है। और वो भी खुद के लिए नही किसी दूसरी पार्टी को हराने या जिताने के लिए रह गई है।
मीडिया से काशीराम जी को बहुत शिकायत थी और कहा था मीडिया ब्राह्मणों और कम्युनिस्टों के साथ में है, वह हमारे मुद्दे नहीं उठाता। इसके लिए भी उन्होंने कांग्रेस और कम्युनिस्टों को ओ दोषी बताया था। लेकिन आज मीडिया उससे भी बुरी हालत में है, तब मीडिया में जातिगत समाचार न छपते हों या कम छपते हों लेकिन गरीबी हटाने की बात होती थी। आज गरीबों और कमजोरों के मुद्दे पूरी तरह गायब है। और कमजोरों को टारगेट करना मीडिया का एकमात्र लक्ष्य यह गया है। काशीराम जी का यह आंकलन भी बहुजन को भारी पड़ा।




