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Maharashtra: उद्धव सरकार को सुप्रीम कोर्ट में? देखिए क्या कहता है कानून और अभी तक फैसले?

महाराष्ट्र की सियासी फिल्म (Maharashtra Political Crisis) में जारी सस्पेंस से जल्द ही पर्दा उठने वाला है. राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी (Governor Bhagat Singh Koshyari) द्वारा फ्लोर टेस्ट का आदेश देने के बाद राजनीतिक हलचल तेज हो गई है. राज्यपाल के इस आदेश के खिलाफ उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए हैं. शिवसेना (Shiv Sena) का कहना है कि हमारे 16 विधायकों की अयोग्यता का मामला सुप्रीम कोर्ट (Shiv Sena) में लंबित है. ऐसे में राज्यपाल के फ्लोर टेस्ट के लिए बुलाना असंवैधानिक है. ये पहला मामला नहीं है जो सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. देश ऐसी घटनाओं को पहले भी देख चुका है. अब हम आपको बताते हैं कि राज्यपाल ने किस अधिकार के तहत फ्लोर टेस्ट के लिए बुलाया है और पहले ऐसे मामलों में कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया था?
राज्यपाल ने किस अधिकार का प्रयोग किया?
अब आप सोच रहे होंगे कि राज्यपाल को फ्लोर टेस्ट बुलाने का अधिकार है? जी हां, सरकार को फ्लोर टेस्ट के लिए बुलाने का राज्यपाल को पूरा अधिकार है. संविधान के 175 (2) में राज्यपाल को ऐसी स्थितियों से निपटने का अधिकार दिया गया है. अनुच्छेद 175 (2) के अनुसार राज्यपाल को यदि लगता है कि सरकार के पास पर्याप्त संख्याबल नहीं है तो वो विधानसभा का सत्र आहूत कर सकता है और सरकार को बहुमत साबित करने के लिए फ्लोर टेस्ट का आदेश जारी कर सकता है.
क्या राज्यपाल सीएम को बदल सकता है?
संविधान का अनुच्छेद 174 (2) (b) के तहत कैबिनेट की सलाह पर राज्यपाल विधानसभा को भंग कर सकता है. हालांक यदि उसे लगता है कि सरकार के पास बहुमत नहीं है और वो फिर भी विधानसभा भंग करना चाहती है, तो राज्यपाल अपने विवेक का अधिकार कर सकता है. जब कोई भी पार्टी को विधानसभा में बहुमत हासिल नहीं होता है तो राज्यपाल मुख्यमंत्री चुनने के लिए विशेषाधिकार का इस्तेमाल करता है. 2019 में देवेंद्र फडणवीस को वे इसी तरह से मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला चुके हैं.
क्या पहले ऐसे मामले सामने आए?
जी हां, महाराष्ट्र से पहले कर्नाटक, मध्य प्रदेश, गोवा, अरुणाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश में ऐसे मामले सामने आ चुके हैं. अरुणाचल प्रदेश का 'नबाम रेबिया' केस सबसे ज्यादा चर्चा में रहता है. शिवसेना के बागी विधायकों की ओर से भी इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में उठाया जा चुका है. कोर्ट में बागी विधायकों के वकील नीरज किशन कौल (Ad. Neeraj Kishan Kaul) का कहना है कि जब उन्हें हटाने का प्रस्ताव लंबित है तो उपाध्यक्ष अयोग्यता की कार्यवाही को आगे नहीं बढ़ा सकते हैं.
पहले के मामलों में क्या फैसले आए?
- अरुणाचल प्रदेश- महाराष्ट्र में जो स्थिति देखने को मिला है, ठीक ऐसा ही ड्रामा 2016 में अरुणाचल प्रदेश में देखने को मिला था. 2016 में मुख्यमंत्री नबाम तुकी को सत्ता संभाले हुए कुछ ही महीने हुए थे कि कांग्रेस पार्टी के विधायक बागी हो गए थे. विधायकों की बगावत पर स्पीकर नबाम रेबिया उनकी सदस्यता खत्म करने वाले थे. बागियों ने स्पीकर को हटाने के लिए राज्यपाल को चिट्ठी लिखी. राज्यपाल ने भी स्पीकर को हटाने के लिए सीएम की सलाह के बिना ही सत्र बुलाने का आदेश दिया. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के आदेश को असंवैधानिक बताया. हालांकि सीएम नबाम तुकी को फ्लोर टेस्ट का सामना करने का आदेश दिया. जिसमें उनकी सरकार गिर गई.
- उत्तर प्रदेश- साल 1998 में यूपी में भी कुछ ऐसा ही मामला देखने को मिला था. यूपी में बीजेपी की सरकार थी और कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे. तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह को बर्खास्त करते हुए जगदंबिका पाल को शपथ दिला दी. हाईकोर्ट ने राज्यपाल के फैसले को असंवैधानिक करार करते हुए कल्याण सिंह की सरकार को दोबारा बहाल कर दिया. हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ जगदंबिका पाल ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फ्लोर टेस्ट के द्वारा ही इसका फैसला किया जा सकता है. फ्लोर टेस्ट तक दोनों को सीएम का दर्जा मिला. वहीं फ्लोर टेस्ट में कल्याण सिंह विजयी हुए और इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जगदंबिका पाल का नाम मुख्यमंत्रियों की लिस्ट से हटा दिया गया. उन्हें पूर्व सीएम का दर्जा भी नहीं दिया गया.
- कर्नाटक- साल 2018 में कर्नाटक में भी इसी तरह का नाटक देखने को मिला था. ऑपरेशन लोटस के सामने एचडी कुमारस्वामी के नेतृत्व में JDS-कांग्रेस गठबंधन वाली 14 महीने पुरानी सरकार धरासाई हो गई थी. कर्नाटक कांग्रेस और जेडीएस के 15 विधायकों द्वारा इस्तीफा देने से सरकार अल्पमत में आ गई थी. राज्यपाल के आदेश के बाद भी स्पीकर वोटिंग में देरी कर रहे थे. बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा रातभर विधानसभा में ही रुके रहे. मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट से वोटिंग कराने का आदेश मिला. आखिर में कुमारस्वामी को इस्तीफा देना पड़ा.
- मध्य प्रदेश- मध्य प्रदेश में राहुल गांधी के करीबी ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कमलनाथ के खिलाफ बगावत कर दी थी. सिंधिया के इशारे पर कांग्रेस के 22 विधायकों का इस्तीफा दे दिया. कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई. बीजेपी नेता शिवराज सिंह चौहान की सिफारिश पर राज्यपाल ने फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया. कांग्रेस इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई थी. कांग्रेस ने तर्क दिया कि राज्यपाल कैबिनेट की सिफारिश के बिना फ्लोर टेस्ट के लिए नहीं बुला सकते थे, खासकर तब जब विधायकों के इस्तीफे को स्पीकर ने स्वीकार नहीं किया था. जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल को फ्लोर टेस्ट का आदेश देने की शक्ति से वंचित नहीं किया जा सकता है.
- गोवा- साल 2017 में विधानसभा चुनावों में किसी को भी बहुमत नहीं मिला था. 17 विधायकों के साथ कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. बीजेपी के पास 13 विधायक थे. बीजेपी ने निर्दलीय विधायकों को साथ लेकर राज्यपाल से सरकार बनाने का दावा पेश किया. तत्कालीन राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने भी मनोहर पर्रिकर को सीएम पद की शपथ दिला दी और बहुमत साबित करने के लिए 15 दिन का समय दिया. राज्यपाल के फैसले के खिलाफ कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट चली गई. कोर्ट ने 24 घंटे के अंदर सरकार को फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया. हालांकि इसके बाद भी बीजेपी की सरकार बच गई, क्योंकि इससे पहले कांग्रेस के 10 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया.
- झारखंड- साल 2005 में झारखंड में पहली बार हुए विधानसभा चुनावों में किसी दल को बहुमत नहीं मिला. 30 सीटों के साथ बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. उसने जेडीयू और निर्दलीय विधायकों के साथ सरकार बनाने का दावा पेश किया, लेकिन तत्कालीन राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने झामुमो के 2 मार्च 2005 को शिबू सोरेन को सीएम पद की शपथ दिला दी और बहुमत के लिए 20 दिनों का समय दिया. बीजेपी नेता अर्जुन मुंडा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. कोर्ट ने 11 मार्च को फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया. सदन में शिबू सोरेन सरकार औंधे मुंह गिर गई. बीजेपी की ओर से अर्जुन मुंडा को सीएम बनाया गया.