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तंत्र सिद्धियों का केन्द्र है मुंगेर का चंडिका स्थान

तंत्र सिद्धियों का केन्द्र है मुंगेर का चंडिका स्थान
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कुमार कृष्णन

देश में 52 शक्तिपीठ हैं, सभी शक्तिपीठों में देवी मां के शरीर का एक -एक हिस्सा गिरा था। जिसके कारण उन स्थानों पर मंदिर स्थापित हुए। ऐसा ही एकफ शक्तिपीठ बिहार के मुंगेर जिले से करीब 4 किमी दूर है। यहां देवी सती की बाईं आंख गिरी थी यह मंदिर को चंडिका स्थान और श्मशान चंडी के नाम से जाना जाता है।

मान्यताओं के अनुसार मंदिर में आने वाले श्रृद्धालुओं की हर मुराद पूरी होती है। इस स्थान को लेकर लोगों का कहना है की यहां आंखो से संबंधित हर रोग का इलाज होता है। जी हां, यहां खास काजल मिलता है जिसे आंखों में लगाने से व्यक्ति के आंख से संबंधित रोग दूर हो जाते हैं। वैसे तो यहां भारी संख्या में श्रृद्धालुओं का तांता लगा रहता है। लेकिन नवरात्रि में यहां भक्तों का सैलाब आ पड़ता है।चूंकि मंदिर के पूर्व और पश्चिम में श्मशान है और मंदिर गंगा किनारे स्थित है। जिसके कारण यहां तांत्रिक तंत्र सिद्धियों के लिए आते हैं।


शारदीय नवरात्र हो या वासंती नवरात्र। दोनो में तो इस स्थान का महत्व और भी बढ़ जाता है, बहुत सारे साधक तंत्र सिद्धियों को अंजाम देने यहां आते हैं। अष्टमी के दिन तो खास पूजा में भाग लेने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगता है। सुबह के समय मंदिर में तीन बजे देवी का पूजन शुरु होता है और शाम के समय भी श्रृंगार पूजन किया जाता है। श्रृद्धालुओं का मानना है की यहां देवी के दरबार में हाजिरी लगाने से हर मनोकामना पूरी हो जाती है। मंदिर प्रांगण में काल भैरव, शिव परिवार और बहुत सारे हिंदू देवी- देवताओं के मंदिर हैं।


कथा है कि भगवान शिव जब राजा दक्ष की पुत्री सती के जलते हुए शरीर को लेकर जब भ्रमण कर रहे थे, तब सती की बाईं आंख यहां गिरी थी। इस कारण यह 52 शक्तिपीठों में एक माना जाता है। जनश्रुतियों के मुताबिक, अंगराज कर्ण मां चंडिका के भक्त थे और रोजाना मां चंडिका के सामने खौलते हुए तेल की कड़ाह में अपनी जान दे मां की पूजा किया करते थे, जिससे मां प्रसन्न होकर राजा कर्ण को जीवित कर देती थी और सवा मन सोना रोजाना कर्ण को देती थीं। कर्ण उस सोने को मुंगेर के कर्ण चौरा पर ले जाकर लोगों को बांट देते थे।

कर्णचौरा के नाम से वह स्थान प्रसिद्ध है। आज इस इस स्थान पर बिहार योग विद्यालय है, जहां से पूरी दुनिया को योग का विद्या का दान होता है।

इस बात का पता जब उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के पड़ा तब वे वहां पहुंचे और उन्होंने अपनी आंखों से पूरा दृश्य देखा। एक दिन वह कर्ण से पहले मंदिर गए ब्रह्म मुहूर्त में गंगा स्नान कर स्वयं खौलते हुए तेल की कड़ाही में कूद गए। मां ने उन्हें जीवित कर दिया। वह तीन बार कड़ाही में कूदे और तीन बार मां ने उन्हें जीवनदान दिया। जब वह चौथी बार कूदने लगे तो मां ने उन्हें रोक दिया और मनचाहा वरदान मांगने को कहा। राजा विक्रमादित्य ने मां से सोना देने वाला थैला और अमृत कलश मांग लिया। मां ने भक्त की इच्छा पूरी करने के बाद कड़ाही को उलटा दिया और स्वयं उसके अंदर अंतर्ध्यान हो गई। आज भी मंदिर में कड़ाही उलटी हुई है। उसके अंदर मां की उपासना होती है। मंदिर में पूजन से पहले विक्रमादित्य का नाम लिया जाता है, फिर मां चंडिका का।

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