Top Stories

गए कनगते फूले अंड, अब को पूछे भूखे पण्ड!

अरुण दीक्षित
29 July 2021 5:01 AM GMT
गए कनगते फूले अंड, अब को पूछे भूखे पण्ड!
x

कई दिन से मुसद्दी भइया से बात नही हुई थी!मन में कुछ खुटका सा हुआ!धरमधुरी के साथ चाय पीकर कप रखा!फोन उठाया और भइया का नम्बर दबा दिया!कोविड कोरस खत्म होते ही भइया की आबाज कानों में गूंज गयी!साथ ही लम्बा आशीर्वाद भी!वह भी मेरे पालागन कहने से पहले!

मैंने हंसते हुए पूछा-क्या भइया आजकल आप हमें याद ही नही कर रहे!कितने दिन हो गये।कोई खबर-अतर नहीं! भइया ने जोर का ठहाका लगाया और बोले-अरे लल्ला ऐसी बात नही है!आजकल हम सब एक पुरानी फ़िल्म देख रहे हैं।यह फ़िल्म हर पांच साल बाद नए नाम के साथ आती है।

इसके पात्र बदल जाते हैं!लेकिन निदेशक और कहानी वही रहती है!एकाध डायलॉग भी नया जुड़ता है!लेकिन मूल कहानी जस की तस रहती है!यह बताते बताते मुसद्दी भइया थोड़े गंभीर से हो गए!

मैंने उन्हें रोकते हुए पूछा-भइया ऐसी कौन सी फ़िल्म है?जरा हमें भी तो बताइये!उखरा में फ़िल्म आ रही है और हमें पता तक नहीं!वह भी वह फ़िल्म जो कई साल से आ रही है!

इस पर भइया जोर से हंसे और बोले-अरे भाई तुम भी जानते हो इस फ़िल्म के बारे में! फ़िल्म का नाम है-बामन पूजा!पहली बार 2006-7 में रिलीज हुई थी।फ़िल्म की खासियत यह है कि इसमें लाइट कैमरा और एक्शन नही होता है!इसमें सब कुछ आमने सामने ,लाइव होता है।बड़ी धूमधाम होती है।अखबार और चैनल बाले पागलों की तरह इधर इधर दौड़ते रहते हैं!नए नारे और हेडिंग घड़ते हैं!नए नए चेहरे दिखाते हैं!कुछ महीनों तक यह फ़िल्म हर अखबार और चैनल में चलती है।फिर पांच साल के लिए गायब!

इन दिनों भी उत्तरप्रदेश में वही सब हो रहा है जो 15 साल पहले हुआ था!तब तिलक के नाम पर बामनों को जूते मारने वालों ने बामनों के पांव मंच पर बैठाकर पूजे थे!बहुत चर्चे हुए थे!उसका फल भी पाया था।लेकिन पूजा के बाद बामनों की वही हालत हुई जो समारोह के बाद फूलमालाओं की होती है।कुछ उत्साही चरणसेवक कौम के नाम पर इनाम इकराम पा गए!लेकिन कौम का कोई भला नही हुआ।

पिछले 15-16 साल में यह फ़िल्म चौथी बार आयी है।अब देखो कोई गुरुपूर्णिमा की आड़ में बामनों के पांव पखार रहा है!कोई उन्हें बुद्धिजीवी कह कर उनका सम्मान कर रहा है!कोई परशुराम जी के मंदिर बनबा रहा है!कोई बामनों पर अत्याचार की दुहाई दे रहा है!तो कोई उनके साथ राम के नाम पर धोखा हो जाने की बात कर रहा है।हर किसी का अलग अलग नारा है!इनकी माने तो आज बामन सबसे ज्यादा बेचारा है! बहुत ही मजेदार है ये फ़िल्म!

लेकिन अपने रघुनंदन पाँड़े कई दिन से अपना अलग राग अलाप रहे हैं!और दुनियां की खिसक (मजाक) उड़ाने वाले रामनिवास अलग रमतूला बजा रहे हैं।उधर दयाशंकर पंडित जी को लगता है कि ये फिल्में भर हैं!निजी जिंदगी में यह सम्भव नही है।वह पुरानी कहावत सुनाते हैं-बामन कुत्ता नाऊ.. जात देख गुर्राऊ!उनका साथ दे रहे मचले गुरू कहते हैं-बामन कुत्ता हाथी..कबहुँ न जात के साथी!

मतलब साफ है कि कुछ भी कर लो बामन एक नही हो सकते!बामनों को एक करना मेंढक तौलने जैसा ही है।अभी भी हर एक के मंच पर वे मौजूद हैं!अगर बामन यदुवंशियों की तरह झुंड में आ जाते तो ये फिल्में कैसे और क्यों चलती!

रघुनंदन पाँड़े की जजमानी कई गांव में है!उन्हें आजकल कनागत (पितृपक्ष) याद आ रहे हैं।वे अपनी मुस्कराहट के बीच धीरे से कहते हैं-आए कनगते फूले कांस!बामन ऊले नौ नौ हांथ!वे कहते हैं कि ये कनागत थोड़े अलग हैं।ये हर साल न आकर 5 साल में एक बार आते हैं!वाकी सब बात एक जैसी है।सालाना कनागत में बामनों का पेट भरके स्वर्गवासी पुरखों का आशीर्वाद लिया जाता है!और इन कनागतों में बामनों के पांव पखारकर,तिलक लगाकर,उनके अंदर का परशुराम जगाकर गद्दी हासिल की जाती है बस!

लेकिन रामनिवास अपना तबला इन सबसे अलग बजा रहे हैं!हमेशा उल्टे मंत्र सुनाने वाले रामनिवास कनागत खत्म होने के बाद की धुन सुना रहे हैं! वे कहते हैं-गए कनगते फूले अंड... कोई न पूछे भूखे पण्ड!!

अब तुम्ही बताओ कि इन तीनों में किसकी बात मानी जाय!हम तो इसी तमाशे में उलझे हैं!

अरुण दीक्षित

अरुण दीक्षित

Next Story