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ओसमान चचा जीते-जागते कबीर हैं!

ओसमान चचा जीते-जागते कबीर हैं!
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ये जो Ankur और Nityanand के बीच में खड़े हैं, कच्छ के अपने दिशा-सूचक Osman चचा हैं जो जीते-जागते कबीर हैं, लखपत में इल्म के लखपति हैं और बीते हजार साल के इन्साइक्लोपीडिया भी हैं। यही उनका घर है लखपत किले के भीतर, जहां हम चार साल बाद दूसरी बार रुके। दस साल से इनसे मिलते रहे हैं और सीखते रहे हैं। कबीर, नानक, शाह अब्दुल भिटाई से लेकर संत मेकण और क्रॉमवेल तक कोई भी उस्मान चचा की याददाश्त से आज तक बाहर नहीं गया गोकि सेहत अब जवाब दे रही है। दुनिया भर में इनके चाहने वाले बरसों से हैं, लेकिन पहली बार गुजरात सरकार ने इन्हें "स्पेशल कन्ट्रीब्यूशन" का अवॉर्ड दिया है 25 तारीख को। तस्वीर देखिए। अब इन्होंने सारा इल्म अपने बेटे लियाकत में भर दिया है। श्रुति परंपरा से सारा ज्ञान अगली पीढ़ी तक जा चुका है।


23 की शाम लियाकत के साथ हम मांडवी जा रहे थे, तभी उसके पास अहमदाबाद से फोन आया। किसी अफसर का था। फोन रखने के बाद उसने बताया कि पापा का नाम पर्यटन में विशिष्ट योगदान के लिए भेजा था, उसी बारे में कॉल थी। हम लोग मान के चल रहे थे कि 25 को पुरस्कार मिलना ही है। मांडवी में पार्टी का मूड बन गया, लेकिन नखतराणा में गाड़ी जवाब दे गयी। बड़े उदास मन से हमें बीच में ही लियाकत से विदा लेनी पड़ी। 24 को वो पापा को लेकर अहमदाबाद निकल गया। आज सुबह जब उसने अवॉर्ड समारोह की तस्वीर भेजी, तो दिल खुश हो गया।


उस्मान चाचा को मिला अवॉर्ड शास्त्र पर लोक को मिली एक मान्यता समझिए। कच्छ में कच्छी अस्मिता ऐसे ही बची रही है सदियों से। न भाषा को मान्यता मिली, न तहज़ीब को। भूकंप के बहाने गुजरात का कब्जा कच्छ पर मुकम्मल हो गया लेकिन उस्मान अली जैसे लोग आज भी केवल अपनी जुबान और व्यवहार से लोक कला, साहित्य और संस्कृति को न केवल बचाए हुए हैं बल्कि उसका प्रसार भी कर रहे हैं। कच्छ के कबीर को दिल्ली का सलाम! अगली बार पार्टी का वादा रहा!!

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