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पुतिन का भारत आगमन — इतिहास, हित और भविष्य के संगम का निर्णायक क्षण

Shiv Kumar Mishra
5 Dec 2025 9:55 AM IST
पुतिन का भारत आगमन — इतिहास, हित और भविष्य के संगम का निर्णायक क्षण
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पुतिन का भारत आगमन — उभरते वैश्विक समीकरणों के बीच एक महत्वपूर्ण अध्याय

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का भारत आगमन उस समय हो रहा है जब विश्व-राजनीति तीव्र बदलावों से गुजर रही है। यूक्रेन युद्ध, वैश्विक शक्ति-संतुलन का पुनर्संगठन और ऊर्जा-मार्केट में उथल-पुथल ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों को नई दिशा दी है। ऐसे दौर में पुतिन की भारत यात्रा केवल कूटनीतिक औपचारिकता नहीं, बल्कि भारत–रूस संबंधों की स्थायित्व, प्रासंगिकता और सामरिक गहराई का पुनर्मूल्यांकन है।



भारत और रूस के संबंधों की जड़ें दशकों पुरानी हैं। 1971 की ऐतिहासिक इंडो–सोवियत शांति, मैत्री और सहयोग संधि ने दोनों देशों को एक-दूसरे के सबसे विश्वसनीय साझेदारों में बदल दिया। तब से लेकर आज तक—चाहे रक्षा सौदे हों, अंतरिक्ष कार्यक्रम हों या ऊर्जा सहयोग—रूस भारत का एक प्रमुख स्तंभ रहा है। इस पृष्ठभूमि में पुतिन का वर्तमान आगमन इस बात का संकेत है कि दोनों देश बदलते वैश्विक परिदृश्य में भी एक-दूसरे के हितों की कड़ी को संरक्षित रखना चाहते हैं।



आर्थिक सहयोग की बात करें तो वर्ष 2024–25 में भारत–रूस द्विपक्षीय व्यापार लगभग 65–70 अरब डॉलर तक पहुँच गया, जिसमें अधिकांश भाग रूस के तेल और ऊर्जा निर्यात का रहा। यह असंतुलन भारत के लिए चिंता का विषय रहा है, लेकिन अब इसे संतुलित करने की दिशा में कदम उठ रहे हैं। उर्वरक उत्पादन, निर्यात-वृद्धि और उद्योग-से-उद्योग साझेदारियों पर चर्चा इसी प्रयास का हिस्सा है। इसके अलावा, रूस के साथ संभावित लेबर-मोबिलिटी समझौता भारत के कार्यबल के लिए नए अवसर और रूस की जनसंख्या-संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक सहारा साबित हो सकता है।



दूसरी ओर, रक्षा सहयोग—जो दशकों से भारत–रूस संबंधों की रीढ़ रहा है—अब आधुनिकता और विविधीकरण के दौर से गुजर रहा है। जहाँ भारत ने हाल के वर्षों में रक्षा आयात में विविधता लाई है, वहीं रूस भारत को न केवल उपकरण, बल्कि संयुक्त उत्पादन और तकनीकी हस्तांतरण के नए मॉडल पेश कर रहा है। ब्रह्मोस मिसाइल, सुखोई–30MKI का आधुनिकीकरण, और एस-400 जैसी परियोजनाएँ आज भी इस सहयोग की मज़बूती को दर्शाती हैं।



अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह यात्रा और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। भारत आज "बहुध्रुवीय विश्व" का समर्थक है और अपनी विदेश नीति को किसी एक शक्ति के प्रभाव में नहीं बाँधना चाहता। पुतिन की यह यात्रा इस बात की पुष्टि है कि भारत—पश्चिम, रूस और एशियाई शक्तियों—सभी के साथ संतुलित, बहुआयामी और हित-आधारित संबंध रखना चाहता है। यह दृष्टिकोण भारत की उभरती वैश्विक भूमिका को और सुदृढ़ करता है।

अंततः, पुतिन का यह दौरा केवल वर्तमान का राजनीतिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि भारत–रूस संबंधों के अगले दशक का मार्गचित्र तैयार करने का अवसर है। ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक सहयोग, रणनीतिक स्वायत्तता और वैश्विक साझेदारी—इन सभी क्षेत्रों में इस यात्रा के परिणाम आने वाले वर्षों में महसूस किए जाएँगे। इतिहास, हित और भविष्य जब एक साथ मिलते हैं—तो वही क्षण किसी भी रिश्ते को स्थायी रूप से दिशा देने का आधार बनता है। पुतिन का भारत आगमन उसी दिशा में एक निर्णायक कदम है।

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